<पी शैली ="टेक्स्ट-एलाइन: जस्टिफ़ाई करें;">17 जनवरी 2023 को बीजेपी ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक के जरिए इस साल 9 राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव और 20 अक्टूबर के चुनाव 2024 का आगाज कर दिया है। इस बैठक के दौरान पीएम ने पार्टी के सभी नेताओं से देश के लोगों को जोड़ने की बात कही।
उन्होंने कहा, ‘मुस्लिम समाज के बारे में गलत बयानबाजी न करें। मुस्लिम समुदाय के बोहरा, पसमांदा और पढ़े-लिखे लोगों तक सरकार तक पहुंचने को लेकर। समाज के सभी पहलुओं से जुड़ना और जुड़ना ही हमारा मकसद होना चाहिए’
उन्होंने कहा कि हमें पसमांदा और बोहरा समाज से धूम्रपान करना चाहिए। कोर्स के साथ इंटरेक्शन रहना होगा। समाज के सभी सदस्य बनें। चाहे वोट दें या ना दें, लेकिन मिलें। पार्टी के कई लोगों को अब भी लगता है कि संबंध में हैं। पार्टी के कई लोगों को मर्यादित भाषा बोलनी चाहिए।
इससे पहले साल 2022 में सिकंदर राष्ट्रीय कार्यकारिणी में पीएम ने घोषणा की थी कि पार्टी के मिशन को मुस्लिम के करीब पहुंचना चाहिए। इसका सबसे बड़ा उदाहरण कश्मीर के नेता दास अली खटाना राज्यसभा भी है। इस तरह का फैसला लेना ये साफ दिखाता है कि बीजेपी मुस्लिम से करीबी बढ़ाने की कोशिश शुरू हो गई है।
इन सभी दावों की दलाली और कोशिशों के बीच सवाल उठता है कि वास्तविक बीजेपी में पारंपरिक के प्रति आ रहे इस बदलाव का कारण क्या है? और चुनावी राजनीति में मुस्लिम और बाकी अल्पसंख्यकों का क्या रोल है?
पहले समझ की भारत में कुल जनसंख्या का कितना प्रतिशत है अल्पसंख्यक
- कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा 23 अक्टूबर 1993 को अल्पसंख्यक समुदायों के तौर पर 6 धार्मिक समुदायों मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, जैन और पारसी समुदायों को उजागर किया गया था।
- 27 जनवरी 2014 को केंद्र सरकार ने राष्ट्र के खाते (जी) के तहत प्राप्त अधिकारों का उपयोग करते हुए, जैन समुदाय को भी अल्पसंख्यक समुदाय के रूप में जोखिम दिया गया था।
< ली>साल 2011 में हुई जनगणना के अनुसार अल्पसंख्यकों की आबादी देश की कुल आबादी का लगभग 19.3 प्रतिशत है। जिनकी बहुसंख्यक मुस्लिम आबादी 14.2 प्रतिशत है। वहीं ईसाई 2.3 प्रतिशत, सिख 1.7 प्रतिशत, बौद्ध 0.7 प्रतिशत, जैन 0.4 प्रतिशत और पारसी 0.006 प्रतिशत है।
भारत में किन राज्यों में कितने मुस्लिम समुदाय के लोग हैं
अब जानते हैं कि देश के किस राज्य में मुस्लिम आबादी कितनी है, इससे हम ये भी आंदाजा पाएंगे की मौजूद पसमांदा मुस्लिमों की आबादी कितनी है।
- जम्मू कश्मीर- 68.31
- पंजाब- 1.93%
- हरियाणा- 7.03%
- राजस्थान- 9.07%
- गुजरात- 9.67%
- मध्य प्रदेश- 6.57%
- उत्तर प्रदेश – 19.26%
- बिहार- 16. 87
- बंगाल – 27.01
- दिल्ली- 12.86
- उत्तराखंड- 13.95
- हिमाचल प्रदेश- 2.18
- सिक्किम- 1.62
- असम- 34.22
- मेघालय- 4.40
- महाराष्ट्र- 11.54
- ओडिशा- 2.17%
- झारखंड- 14.53%
- मणिपुर- 8.40%
- नागालैंड- 2. 47%
- कर्नाटक- 12.92%
- तमिलनाडु- 5.86%
< ली>मिजोरम- 1.35%
< ली>लक्षद्वीप – 96.58%
यूपी में 8 वर्षीय मुस्लिम मतदाताओं ने किया बीजेपी को वोट
एक धारणा बनी है कि मुस्लिम मतदाता बीजेपी के खिलाफ मतदान करते हैं, लेकिन सीडीएस-लोकनीति के एक सर्वे में यूपी में हुए विधानसभा चुनाव में पार्टी कम से कम आठ प्रतिशत मुस्लिम वोट हासिल करने में सफल रही है। यूपी में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान 19.26 प्रतिशत मुस्लिम वोटों से समाजवादी पार्टी को लगभग 79 प्रतिशत वोट मिले और आठ प्रतिशत वोट बीजेपी को मिले, जो 2017 में चुनाव में एक प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
बिहार में दर्ज मुस्लिम मतदाता
2011 की जनगणना के अनुसार बिहार की कुल जनसंख्या 10,40,99,452 है। वहीं कुल आबादी में मुस्लिम का प्रतिशत 16.9 है। वर्तमान में इस राज्य में की कुल आबादी 1,75,5,78,09 है। जिसमें पुरुष 90,44,086 और महिला 85, 13,723 है।
गुजरात में बीजेपी का रिकॉर्ड तोड़ जीत के पीछे मुस्लिम आबादी का समर्थन
2022 में हुए विधानसभा चुनाव में गुजरात में भारतीय जनता की रिकॉर्ड तोड़ जीत को लेकर दिलचस्प पार्टी हो रही है कि पार्टी ने उन क्षेत्रों में जीत दर्ज की जहां अच्छी-खासी मुस्लिम की आबादी है। राज्य में पार्टी के प्रवक्ता यग्नेश दवे ने बीबीसी से बातचीत में दावा किया कि उनकी पार्टी का तलाक़ खत्म हो गया है और यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड का उल्लंघन हुआ है, जिसके कारण बड़े तादाद में मुस्लिम वोट मिले हैं। इन चुनावों में कांग्रेस ने छह और आम आदमी पार्टी ने चार मुस्लिम मुसलमानों को टिकट दिया था।
पासमांदा और बोहरा समुदाय गेमचेंजर का काम कर सकता है
पसमांदा मुस्लिमों के बीच काम कर रहे बीजेपी से जुड़े आतिफ रशीद कहते हैं, ‘यूपी के पिछले विधानसभा चुनाव के बाद पीएम मोदी को जो रिपोर्ट दी गई थी। इसमें एक पैरा को लेकर हाई लाइट चढ़ते हुए कहा गया कि पसमांदा मुस्लिम बहुल क्षेत्र से बीजेपी को उम्मीद से भी ज्यादा वोट मिले हैं। यह इस बात का संकेत है कि मुसलमानों का सबसे पिछड़ा वर्ग केंद्र सरकार की ओर से उदासीन है, जो स्थायी और भविष्य में भी उनकी स्थिरता की आवश्यकता है।
यही कारण है कि दिल्ली से पहले सिकंदराबाद में हुई बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में मोदी ने इस बात पर जोर दिया था कि पार्टी के सभी सांसद व विधायक पिछड़े मुस्लिमों के इलाके में जाएं देखें कि उन्हें केंद्र की सभी कल्याण योजनाओं का पूरा लाभ मिल रहा है या नहीं और अगर कोई कमी है तो उसे पूरा करने के लिए स्थानीय प्रशासन को सदस्यता निर्देश दें।
क्या है पसमांदा मुस्लिम का विज्ञान
इसमें कोई दो राय नहीं है कि यूपी या देश के दूसरे राज्य में वोट बैंक को कभी नहीं मिला। ये जरूर रहा है कि जिस पार्टी में भी बीजेपी ने जीत का दम दिखाया, उसमें मुस्लिम का एक मुश्त वोट मिला। लेकिन जहां ये वोटबैंक बर्मा बीजेपी को भी फायदा हुआ है। लेकिन बीजेपी ने भी इसे लेकर रणनीति बनाई है. इस हफ्ते चुनाव में यूपी के सभी 80 सीटों को जीतने के प्लान के साथ जोड़कर देखा जा रहा है।
पसमांदा मुस्लिम कौन हैं
पसमांदा शब्द मुस्लिम की उन जातियों के लिए जाना जाता है जो सामाजिक रूप से पिछड़ी हुई हैं या फिर कई अधिकारों से उन्हें विशेषाधिकार ही दिया गया। ये बैकवर्ड, जाली मुस्लिम मुस्लिम शामिल हैं। लेकिन मुस्लिम जातियों के ये हिंदू जातियों के विज्ञानों की तरह ही काफी उलझा हुआ है। और यहां भी सामाजिक सोच तय की जाती है।
साल 1998 में पहली बार ‘पसमांदा मुस्लिम’ का इस्तेमाल मर्सी किया था। जब पूर्व सांसद अली अनवर अंसारी ने पसमांदा मुस्लिम महाज का गठन किया था। उसी समय ये मांग उठनी थी कि सभी अल्पसंख्यक मुस्लिमों की पहचान अलग से हो और उन्हें ओबीसी के तहत रखा जाए।