दूध की कीमत में वृद्धि: 2022 में कमर तोड़कर हमला करने से वैसे ही आम लोगों के घरों का बजट टूट जाता है। लेकिन सबसे ज्यादा बजट की कमी का काम महंगा दूध ने किया है। 27 दिसंबर से मदर का दूध महंगा हो गया है। लेकिन बांधों में अटकने का ये कोई पहला मौका नहीं है। मौजूदा साल में मदर दायरे ने पांच बार दूध के दामों में बकाया की है। ठीक उसी प्रकार मूल ने भी चार गुना दूध बढ़ाये हैं। किसी अजीबोगरीब मामले को देखें तो मदर क्षेत्र 20 प्रतिशत तक दूध के बांधों में फटा हुआ है। घना दूध का प्रभाव केवल दूध के बांधों तक सीमित नहीं है बल्कि इसकी वजह से घिसावट, खोआ से लेकर दही लस्सी तक अंधा हो गया है।
20 फीसदी तक महंगा हुआ दूध!
दूध के दामों में इतिहास पर रोना डालें तो 1 जुलाई 2021 से पहले मदर दायरे का पूरा क्रीम दूघ 55 रुपये प्रति लीटर में मिल रहा था जो अब 66 रुपये प्रति लीटर में मिल रहा है। टोंड मिल पहले 47 रुपये लीटर में मिल रहा था वो अब 53 रुपये लीटर में मिल रहा है। एक लिपिक दूध 42 रुपये प्रति लीटर में मिल रहा था जो अब 50 रुपये प्रति लीटर में मिल रहा है। और गाय का दूध जहां 49 रुपये प्रति लीटर में मिल रहा था वो अब 55 रुपये लीटर में मिल रहा है। यानी दूध के दामों में 10 फीसदी लेकर 20 फीसदी तक की वजह इस अवधि में देखने को मिली है।
स्थिर दूध का असर
पिछले लदान वर्षों में बंधक ने लागत का हवाला देते हुए कई बार दूध के दाम बढ़ाये हैं। घृत दूध के कारण खोआ-पनीर, छेना, घिसाव, दही के बांध बनते हैं। दूध से बनती है तो इसकी चमक दूध से बनने वाली चीजों की निशानी पर पड़ती है। दूध के दाम में औसत 15 से 20 प्रतिशत तक का बकाया पिछले लदान सालों में देखने को मिलता है। घूस दूध के प्रकोप से घिरे हुए बांधों में जबरदस्त लुक देखने को मिलता है। एक साल पहले 400 से 450 रुपये प्रति किलो में मिलने वाला घिसा अब 550 से 600 रुपये प्रति किलो में मिल रहा है। चाहे ब्रांडेड नारी हो या गैर ब्रांडेड दोनों ही के दाम बनते हैं। पिछले साल 350 रुपये प्रति किलो में मिल रहा है अब 400 से 450 रुपये प्रति किलो में मिल रहा है। और अब माना जा रहा है कि दूध का बांध बढ़ने के कारण घास की परत के बांध और भी क्षतिग्रस्त हो सकते हैं।
बच्चों के आहार पर आफत!
दूध को लेकर बच्चों को लेकर बड़ी-बड़ी रोड़ें सभी के लिए खारे पानी को आहार के रूप में देखा जाता है। हर घर में दूध की खपत होती है। लेकिन दूध के बांधों में भारी बोझकम के बाद आम लोगों की मुश्किलें बढ़ गई हैं। मेहनत को दूध देने के लिए दूसरी चीजों में खर्च किए जाने का अनुमान लगाया जा रहा है। साग-सब्जी, फल वैसे ही फीके पड़ रहे हैं अब महंगे दूध वाले लोगों के घरों का बजट अधूरा है।
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