शालिग्राम से बनेगी रामलला-माता सीता की मूर्तियां: उत्तर प्रदेश की अयोध्या (अयोध्या) में राम मंदिर (राम मंदिर) का निर्माण जोरों पर है। रामलला (बाल रूप भगवान राम) और माता सीता की परत के लिए विशेष रूप से शालिग्राम (शालिग्राम) पत्थर नेपाल (नेपाल) से अयोध्या के रूप में देखे गए हैं। शालिग्राम पत्थर से ही सियाराम की मूर्ति क्यों बनीं, ऐसी जिज्ञासा कई लोगों के मन में है।
सनातन धर्म की धार्मिक और पौराणिक धारणा के अनुसार, शालिग्राम पत्थर पवित्र और भगवान विष्णु का निवास स्थान भी होता है। पौराणिक ग्रंथों में माता तुलसी और भगवान शालिग्राम का उल्लेख है। कई लोग शिवलिंग के रूप में भी इसकी पूजा करते हैं। हिंदू धर्म में शालिग्राम की स्थापना करते हैं और इसके माध्यम से भगवान के गण बनाने के विशेष नियम भी हैं। यही कारण है कि शालिग्राम पत्थरों से बने भगवान राम और माता सीता की मूर्तियां मंदिर के गर्भगृह में स्थापित की गईं। बताया जा रहा है कि अयोध्या लाई गई शालिग्राम शिलाएं करीब छह करोड़ साल पुरानी हैं।
40 टन के शिलाखंडों से बनेंगी सियाराम की मूर्तियां
शालिग्राम पत्थर काफी दुर्लभ होते हैं, जो हर जगह नहीं मिलते हैं। ये नेपाल की काली गंडकी नदी में पाए जाते हैं। शालिग्राम पत्थर मिलने की जगह शालग्राम क्षेत्र को भी कहा जाता है। अयोध्या दृश्य पर शालिग्राम के दो बड़े शिलाखंडों का कुल भार 40 टन है। इनमें से एक का वजन 26 टन और दूसरे का भार 14 टन है। नेपाल से अयोध्या तक इन्हें आने में सात दिन का समय लग रहा है। इन्हें माता सीता के जन्मस्थान माने जाने वाले नेपाल के जनकपुर से अयोध्या लाई गई है।
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शालिग्राम के बारे में विज्ञान क्या कहता है?
विज्ञान में शालिग्राम को एक तरह का आकृति माना जाता है जोकि 33 प्रकार के होते हैं। विज्ञान के अनुसार, शालिग्राम ‘डेवोनियन-क्रिटेशियस सीक्वेंस’ का एक काले रंग का ‘एमोनॉइड शेल फॉसिल्स’ है। कहा जाता है कि डेवोनियन-क्रिटेशियस सीक्वेंस 6 करोड़ साल पहले था। यह वो समय था जब धरती के 85 प्रतिशत अंशों में पानी हुआ था।
क्या होता है आकृति?
आकृति दो शब्द जीव+अश्म से मिलकर बनी है। इसमें अश्म का अर्थ ‘पत्थर’ होता है। इस प्रकार विचार करें तो पेट्रोलियम का मलतब है कि ऐसा जीव जो पत्थर बन गया। अंग्रेजी में चित्र को फॉसिल (Fossil) कहते हैं। शालिग्राम पत्थर बेहद मजबूत होते हैं और शिल्पकार इनसे जुड़े हुए संलग्नक और आकर्षण हैं। शालिग्राम कई पत्थरों के होते हैं लेकिन सुवर्ण और ज्योतिर्मय शालिग्राम पत्थर सबसे दुर्लभ होता है।
शालिग्राम पत्थर का धार्मिक महत्व
शालिग्राम 33 प्रकार के होते हैं, जिनमें से 24 को भगवान विष्णु के 24 अवतारों से जोड़ा जाता है। यही कारण है कि शालिग्राम को भगवान विष्णु का ही रूप माना जाता है।
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शालिग्राम के आकार का क्या महत्व है?
धार्मिक कट्टरता के अनुसार, अगर शालिग्राम जाता है तो उसे भगवान विष्णु का गोपाल रूप माना जाता है। अगर यह मछली के आकार का है तो उसे मत्स्य अवतार का प्रतीक माना जाता है। कछुए के आकार के शालिग्राम को कुर्म और कच्छप अवतार का प्रतीक माना जाता है। शालिग्राम पर उभरते चक्र और चेहरे का भी विशेष महत्व बताया जाता है। पत्थर पर प्रकट चक्र और चेहरा को भगवान विष्णु के अन्य अवतार और रूप का प्रतीक माना जाता है क्योंकि विष्णु जी के गदाधर रूप में एक चक्र का चिह्न होता है। लक्ष्मीनारायण रूप में दो, त्रिविक्रम रूप में तीन, चतुर्व्यूह रूप में चार और वासुदेव में पांच चिन्ह होते हैं।
महाभारत में भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर को शालिग्राम के गुण धारण किए थे। वैष्णवों के अनुसार शालिग्राम ‘भगवान विष्णु का निवास स्थान’ है और जो कोई भी इसे रखता है, उसकी प्रतिदिन पूजा करनी चाहिए।
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कहाँ-कहां हैं शालिग्राम से बनीं मूर्तियां?
भारत के 4 बड़े मंदिरों की मूर्तियां भी शालिग्राम शिला से बनाई गई हैं। इनमें उडुपी का कृष्ण मठ, वृंदावन का राधा रमण मंदिर, तिरुवनंतपुरम का पद्मनाभस्वामी मंदिर और बद्रीनाथ मंदिर शामिल हैं। बता दें कि अयोध्या में रामलला की मूर्ति 5 से साढ़े 5 फीट की तैयार की जाएगी। बताया जा रहा है कि रामनवमी के दिन सूर्य की किरणें सीधी रामलला के माथे पर आएंगी।