केंद्रीय बजट 2023-24 में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार अधिनियम यानि मनरेगा योजना के लिए केवल 60,000 करोड़ रुपये दिए गए। इसके बाद तय किए गए केंद्र सरकार पर आरोप लगाए गए कि सरकार बजट आवटन में चयन करके ग्रामीण रोजगार योजनाओं को समाप्त कर रही है। वहीं केंद्र सरकार का कहना है कि बाद में ग्रामीण रोजगार की मांग के आधार पर इसे संसोधित किया जाएगा। हाँ। साल के अंत में, ग्रामीण विकास मंत्रालय ने मनरेगा योजना में कमी को दूर करने के लिए अतिरिक्त 25,000 करोड़ रुपये की मांग की थी। वित्त मंत्रालय ने केवल 16,000 करोड़ रुपये को मंजूरी दी, जिससे इस वित्तीय वर्ष के लिए आकर्षक बजट 89,000 करोड़ रुपये हो गया।
देश भर में मजदूर किसान मनरेगा के तहत काम करते हैं लेकिन इस वित्तीय वर्ष में मनरेगा योजना का लाभ उठाने वाले परिवार का औसत पांच साल में सबसे निचले स्तर पर है।
इस योजना से जुड़ी कुछ जानकारियां
वर्ष 2006-07 में इस योजना के शुरू होने के बाद वर्ष 2020 -21 में मनरेगा के काम करने वाले का पात्र 11 करोड़ पार किया गया था। यानी 2020 -21 में ऐसा पहला मौका आया जब मनरेगा की संख्या इतनी ज्यादा मिली। वहीं साल 2019-20 में करीब 7.88 करोड़ लेने के लिए मनरेगा के तहत काम किया। मतलब साल 2020 -21 में साल 2019-20 का प्रचार लगभग 41.75 प्रतिशत ज्यादा लाया गया है। : 17, 43,381 और 15,14,306 मजदूरों ने मनरेगा योजना के तहत काम किया। वहीं साल 2019- 20 में जुड़ना: 15, 14, 306 और 16,93, 973 लोगों ने मनरेगा योजना के तहत काम किया।
त्रिपुरा में साल 2018-19 में 30, 15,57 लोगों ने मनरेगा उसी के तहत काम किया साल 2019-20 में 35,53, 35 लोगों ने मनरेगा योजना के तहत काम किया। अलग-अलग राज्यों के आंकड़े भी इसी तरह के होते हैं, आंकड़े आंकड़े होते हैं।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान पूरे देश में 11 करोड़ से ज्यादा लोगों ने मनरेगा के तहत काम किया।
अब उन राज्यों का डेटा, जहां इस साल चुनाव है
- मेघालय में साल 2017 से 18 के बीच मनरेगा पर टिके रहने वाले लोगों की संख्या 177009 थी। साल 2018 से 19 के बीच ये निकासी कर सकते हैं 175100 पहुंच गए . वहीं साल 2019 से 20 के बीच ये पात्र कर 205120 तक पहुंच गया।
- मिजोरम में ये पात्र वर्ष 2017 से 18 के बीच 186204 था। साल 2018 से 19 के बीच मनरेगा पर लगातार रहने वाले लोगों की संख्या 123048 तक सीमित हुई। फिर 2019 से 20 में ये पात्र बढ़ा की 194602 तक पहुंच गया।
- नागालैंड में साल 2017 से 18 के बीच मनरेगा पर लगातार रहने वाले लोगों की संख्या 19574 थी. साल 2018 से 19 के बीच ये बैंक बढ़ा और 65066 तक पहुंच गया। 2019 से 20 के बीच ये पात्र 42163 तक हो गया। साल 2018 से 19 के बीच ये पात्र घट कर 301557 हो गया। साल 2019 से 20 के बीच ये पात्र पीर बढ़ा और 355335 हो गया।
- छत्तीसगढ़ की बात करें तो साल 2017-18 के बीच मनरेगा पर स्थायी रहने वाले लोगों की संख्या 345446 थी। साल 2018 से 19 के बीच ये फिक्सिंग कर 420244 हो गई है। साल 2018 से 19 के बीच ये संख्या घटे घटे और 516470 के करीब पहुंच गए। वर्ष 2019 से 20 के बीच ये आंकड़े और घटे और 470312 तक सीमित हो गए। सरकार ने बजट में मनरेगा के लिए कम राशि क्यों आंवटित की है ।
कोरोना काल से दी जाती है मनरेगा की मांग
डाउन टू अर्थ के प्रबंध संपादक रिचर्ड महापात्रा ने एक रिपोर्ट में बताया कि कोरोना वायरस महामारी के चरम पर होने के दौरान इस योजना के तहत लगातार इसकी मांग की जाती है। मांग को देखते हुए सरकार ने 111,500 करोड़ रुपए खर्च किए थे। ये पैसे मनरेगा के नहीं थे। रिचर्ड महापात्रा ने बताया कि इस तरह से राशि खर्च करने पर मनरेगा बजटीय व्यय पर कोई फर्क नहीं पड़ता है।
नरेगा संघर्ष मोर्चा के सदस्य देबमाल्य नंदी ने कहा कि महामारी ने ये किया कि देश रोजगार में मनरेगा पर भारी काम है। इसलिए सरकार को इस योजना को आगे बढ़ाने के लिए बहुत सारी कोशिशें करने की जरूरत है।
देबमाल्य नंदी ने ये भी कहा कि भारत सरकार ने बजट आवंटन में कमी करके वर्तमान ग्रामीण रोजगार संकट को पूरी तरह से अदृश्य कर दिया है दिया है। जबकि स्थिति की स्थिति को देखते हुए मनरेगा में निवेश को बढ़ाने की जरूरत थी.
रोजगार के दायरे को सीमित करेगा सरकार का फैसला
नरेगा संघर्ष मोर्चा के सदस्य देबमाल्य नंदी ने ये कहा कि सरकार की तरफ से जिस तरह से मनरेगा में कम पैसे आंवटित किए गए हैं उससे यह साफ होता है कि यह रोजगार के दायरे को सीमित करेगा। नतिजतन आने वाले साल में ज्यादा के भूगतान में भी देरी होगी।पीपुल्स एक्शन फॉर एम्प्लॉयमेंट ऑफर और नरेगा संघर्ष मोर्चा के तहत काम करने वाले शिक्षा और शिक्षा के लिए एक संघ का कहना है कि चालू वर्ष इस योजना के लिए 2.72 लाख करोड़ रुपये के दावे की जरूरत है .
पीपुल्स एक्शन फॉर एंप्लॉयमेंट ऑफर में काम करने वाले कर्मचारियों का ये भी कहना है कि मनरेगा से जुड़े सभी पहलुओं को 40 दिनों के काम का पैसा देने के लिए 1.24 लाख करोड़ रुपये की जरूरत होगी। जो फर्स्ट आंवटिंत किए गए रकम से दोगुणे से भी ज्यादा है।
नरेगा संघर्ष मोर्चा के तहत काम करने वाले आरक्षण ने ये कहा कि इस तरह के कम बोलने का मकसद मनरेगा योजना को पूरी तरह से खत्म करें जैसा सहज होता है। मजदूर किसान शक्ति संगठन के संस्थापक निखिल दिवस का कहना है कि यह न्यूनतम सीमा को भी पूरा नहीं करता है।
बदतर है मनरेगा योजना में दी जाने वाली सुनिश्चित करें
जमीनी स्तर पर अगर राज्य उत्तराधिकारी को केंद्र सरकार की ओर से मनरेगा योजना के लिए राशी नहीं मिलेगी राज्यों में मनरेगा संबंधी अनुमान होंगे।
ताजा रिपोर्ट ये यह भी बताता है कि केंद्र सरकार ने राज्य को अपनी ओर से दी जाने वाली राशी नहीं सूचित किया है। इस राशि को मदर मजूमरी भी कहा जाता है। मदर मंजूरी ना मिलने से पीक सीजन में लाने के काम पर अकेला असर पड़ा है।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश और केंद्रीय वित्त मंत्रालय की पहल और जीओ (एक तरह का सरकारी आदेश) के बावजूद एमआईएस में अभी तक ले जाने के काम के पैसे देर से देने पर कोई प्रावधान नहीं किया गया है। अब भी मनरेगा योजना के भुगतान में काफी देरी हो जाती है। अब जब सरकार ने बजट में कम राशि का आवंटन किया तो इससे समझौते की परेशानियां बढ़ेंगी।