रूस-यूक्रेन युद्ध: रूस (रूस) और यूक्रेन (यूक्रेन) के बीच युद्ध शुरू होने को लगभग 1 साल होने को हैं। दोनों के बीच पिछले साल 24 फरवरी को जंग शुरू हुई थी। इस बीच रूस और यूक्रेन को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ा है। दोनों देशों को अरबों डॉलर का वित्तीय नुकसान हुआ है। जान और माले का नुकसान हुआ है। इसके बावजूद दोनों के बीच लड़ाई खत्म होने के आसार भी नहीं दिख रहे हैं। रूस और यूक्रेन के युद्ध के बीच दोनों देशों के सहयोगी मित्रों ने भी मदद की है। दोनों देशों के मुखिया चाहे वो यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की हो या रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन समय-समय पर सहयोगी देशों से सहयोग की बात कर रहे हैं।
यूक्रेन की बात की जाए तो उनके राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की (वलोडिमिर ज़ेलेंस्की) लगातार दूसरे देशों के दौरे पर जा रहे हैं और सीधे तौर पर आर्थिक सहायता के अलावा आपूर्ति की मांग की और उन्हें भी पहुंचाया।
वहीं इसका उल्ट रूस को सहायता नहीं मिल रही है, इसकी एक खास वजह यह भी है कि रूस पहले से एक ताकतवर देश है, जिसके पास धीमी की कोई कमी नहीं है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार रूस यूक्रेन का दावा 7 गुना ज्यादा समृद्ध है। रूस के पास तेल का भंडार है, जिसका इस्तेमाल वो कारोबार के तौर पर करता है।
आर्थिक मामलों में नुकसान उठाना पड़ा
रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध शुरू होने के पहले दिन से ही रूस को आर्थिक मामलों में नुकसान उठाना पड़ा। रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिया गया। देश के शेयर बाजार में 39 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई थी। रूस के राष्ट्रीय रिकॉर्ड में लेवल की गिरावट दर्ज की गई। युद्ध के शुरुआती दो सप्ताह में 24 फरवरी से लेकर 18 मार्च 2022 तक मॉस्को और पीटर्सबर्ग सेंट में स्टॉक एक्सचेंजों को एसएमएस कर दिया गया था, जो रूस के इतिहास में सबसे लंबे समय तक बंद रहने वाला समय था।
वैश्विक रेटिंग ने रूसी सरकार की क्रेडिट रेटिंग को जंक में डाउनग्रेड कर दिया, जिसके कारण रूसी ऋण को डंप करने के लिए निवेश-ग्रेड बांड की आवश्यकता वाले फंडों ने रूस के लिए और ऋण लेना बहुत मुश्किल बना दिया।
रूस का अंतर्राष्ट्रीय डिप्लोमैटिक रिलेशन
रूस के इंटरनेशनल डिप्लो रिलेशन की बात करें तो उसके रिश्ते चीन, ईरान और भारत के साथ अच्छे हैं। विशेष रूप से भारत (भारत) और रूस (रूस) के संबंधों की बात की जाए तो खुल कर किसी भी पक्ष के समर्थन में नहीं दिखाएं। भारत और रूस के बीच, जिस तरह के रिश्ते हैं, वो भी जाहिर है। रूस अतीत में भारत के बहुत काम आया है, चाहे वो 1971 के युद्ध की बात हो जब अमेरिकी नौसेना से रूस (उस समय का लाइटर) भारत के काम आया और कश्मीर मुद्दों पर भी रूस ने भारत का पक्ष लिया।
वहीं भारत का नजरिया रूस-यूक्रेन (रूस-यूक्रेन) युद्ध में मिला-जुला रहा है। इसका एक उदाहरण उस समय देखा गया, जब 24 फरवरी को युद्ध शुरू हुआ, तो भारत ने यूक्रेन की सुंदरता का समर्थन करने में तेजी से दिखाई दिया, लेकिन भारत ने संयुक्त राष्ट्र में मास्को की कारवाइयों की निंदा करने से भी परहेज किया। ये सभी चीजें भारत के एलियंस के रहने का एक उदाहरण के तौर पर भी देखी गईं। पिछले एक साल के युद्ध के दौरान भारत रूस के साथ अप्रत्यक्ष तरीके से झंडे लगा रहा है और अपनी दोस्ती वाली छवि को दोहरा भी रहा है।
भारत के राजदूत कैसे
हाल ही में भारत ने रूस के साथ रिकॉर्ड स्तर पर तेल भरा, जिसका परिणाम यह रहा कि भारत को बहुत कम बाधाओं पर रूस ने कच्चे तेल का रास्ता दिखा दिया। हाल ही में एनर्जी कार्गो ट्रैकर वोर्टेक्सा के आंकड़ों के अनुसार, रूस से भारत का चार्ट तेल का आयात दिसंबर 2022 में और बढ़ा, जो पहली बार 1 मिलियन मुंबई प्रति दिन से अधिक हो गया, क्योंकि रूस लगातार पिछले साल अक्टूबर से दिसंबर के महीने में तक भारत को तेल देने में अव्वल रहा है। रूस से तेल आयात के मुद्दों पर पश्चिमी देशों ने सवाल भी खड़े किए, जिसकी मीडिया रिपोर्ट के अनुसार भारत के विदेश मंत्री सुब्रह्मण्यम जयशंकर ने तर्क दिया था कि वह दूसरे लोगों की हस्ताक्षर को पूरा करने की कोशिश नहीं कर रहे हैं। उन्होंने कहा था कि कभी-कभी मैं उन चीजों के साथ रहता हूं जो आपने (पश्चिमी देशों को संदेश देते हुए) किया था और आप पश्चिमी देशों को भी भारत की नीति के अनुसार दृष्टिकोण रखते हैं।
उसी तरह जैसे-जैसे युद्ध तेज हुआ है, वैसे ग्लोबल एनर्जी और फूड की कमी भारत को रूस के प्रति अपने प्रतिबंधात्मक रुख का पुनर्मूल्यांकन करने के लिए भी प्रेरित कर रहा है। पिछले साल सितंबर में उज्बेकिस्तान के समरकंद में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन के दौरान मोदी ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से कहा था कि मैं जानता हूं कि आज का युग युद्ध का युग नहीं है और मैं इस बारे में आपसे फोन पर बात करता हूं है। वहीं दूसरी तरफ 14 नवंबर 2022 को संयुक्त राष्ट्र ने रूस की तरफ यूक्रेन को हुए युद्ध में नुकसान के लिए मुआवजा देने के लिए वोटिंग कराई थी। इस वोटिंग में रूस के पक्ष में मात्र 14 वोट गए और यूक्रेन के पक्ष में 94 वोट।
सबसे गौर करने वाली बात ये रही कि 73 देश वोटिंग के दौरान चुनाव में घूम रहे थे, जिसमें भारत भी शामिल था। ये सारी बातें इस तरफ इशारा करती है कि भारत रूस के प्रति अपनी वफादारी को कम नहीं करता है और राजनयिक तरीके से अपने सबसे पुराने दोस्त के साथ ब्रांडेड है।