भारत में भ्रष्टाचार: देश में भ्रष्टाचार को लेकर आए दिन बनते हैं लेकिन इसके लिए ठोस कदम नहीं माने जाते हैं। ऐसे में इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (24 फरवरी) को अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि भारत में आम आदमी रिश्वत से भरोसा है और सभी स्तरों पर रेटिंग तय करने की जरूरत है। कोर्ट ने यह टिप्पणी की कि याचिका पर सुनवाई करते हुए, जिन लोगों को चुनाव लड़ने से रोकने का अनुरोध किया गया है, जिनके खिलाफ आपराधिक मामलों में आरोप तय किए गए हैं।
शीर्ष अदालत ने कहा कि अगर भारत वास्तव में ऐसा होता है जिसके लिए वह प्रयास कर रहा है तो उसे अपने मूल मूल्यों की ओर लौटाना होगा। जस्टिस केएम जोसेफ एंड जस्टिस बीवी नागरत्ना ने याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा, ”भारत में आम आदमी भ्रष्टाचार से विश्वास है। किसी भी सरकारी घोषणा में जा दिया जाए, आप खराब अनुभव के बिना बाहर नहीं आ सकते। मशहूर न्यायविद नानी पालकीवाला ने अपनी किताब ‘वी द पीपल’ में इस बारे में बात की है। अगर आप वास्तव में ऐसा देश बनते हैं जिसके लिए हम प्रयास कर रहे हैं, तो हमें अपने मूल मूल्यों और चरित्र की ओर लौटना चाहिए। अगर हम अपने मूल्य पर लौटते हैं तो हमारा देश वैसा ही बनेगा जिसके लिए हम प्रयास कर रहे हैं।”
‘अपराधी चपरासी नहीं बन सकती लेकिन मंत्री बन जाती है’
जनहित याचिका दायर करने वाले वकील अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि जघन्य अपराध में जिस पर आरोप लगाए गए हैं, वह किसी सरकारी कार्यालय में चपरासी तक या पुलिस कांस्टेबल तक नहीं बन सकता है, लेकिन वही व्यक्ति मंत्री बन सकता है, चाहे उस पर जुर्माना हो अपहृत, हत्या जैसे दस्तावेज़ के मामले दर्ज क्यों नहीं हो सकते। डेस्कटॉप जोसेफ ने कहा कि लोकतंत्र के नाम पर जो हो रहा है वह उस पर कुछ नहीं कहेगा।
हर स्तर पर तय करने की जरूरत- सुप्रीम कोर्ट
उन्होंने कहा, ”मैं कोई कमेंट नहीं करूंगा। इस मुद्दे पर संवैधानिक पीठ का फैसला है और अदालत ने कहा है कि वह कानून में कुछ भी जोड़ नहीं सकता है और इस पर विचार करना सरकार का काम है।
चुनाव आयोग ने क्या कहा?
भारत निर्वाचन आयोग की ओर से वकील अमित शर्मा ने कहा कि निर्वाचन आयोग ने राजनीति के अपराधीकरण पर पहले ही चिंता आयोग की है और मौजूदा कानून के अगर कोई व्यक्ति किसी अपराध में दोषी पाया जाता है और उसे दो साल से अधिक की जेल हो जाती है है तो वह चुनाव लड़ने से रोक देता है। उस व्यक्ति को सजा की अवधि के दौरान और रिहा होने के छह साल बाद तक अपवर्जित घोषित किया जा सकता है।
उन्होंने कहा, ”इस याचिका में एक व्यक्ति को आरोप तय होने के चरण पर चुनाव लड़ने से रोकने का अनुरोध किया गया है…हमारा रुख यह है कि इस पर निर्णय लेने का अधिकार संसद के पास है।” वहीं, केंद्र की ओर से पेश वकील ने कहा कि उन्हें जनहित याचिका पर जवाब देने के लिए पैर जमाने की जरूरत है।
केंद्र सरकार ने क्या कहा?
उपाध्याय ने कहा कि उन्होंने भ्रष्टाचार से निपटने के लिए संपत्ति को आधार संख्या से जोड़ने का अनुरोध करते हुए एक अन्य जनहित याचिका दायर की है। उन्होंने कहा, ”मेरे हिसाब से देश में 80 प्रतिशत के करीब 500 रुपये या 2,000 रुपये के नोट नहीं हैं और 20 प्रतिशत लोग मानक कार्ड या क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल करते हैं। पूरी तरह से ‘नोटबंदी’ की जरूरत नहीं है कि ‘नोट बदली’ की।” पीठ ने मामले पर अंतिम सुनवाई के लिए 10 अप्रैल की तारीख तय करने और केंद्र तथा निर्वाचन आयोग को तीन सप्ताह के भीतर जवाब देने का निर्देश दिया।
ये भी पढ़ें: एक करोड़ रुपये, काली कमाई, एक न्याय और सीबीआइ का फंडा… इसे कहते हैं ‘चिराग टेल डार्क’