असम पुलिस ने पवन खेड़ा को गिरफ्तार किया: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर अभद्र टिप्पणी के आरोप में कांग्रेस के मीडिया चार्ज में पवन खेड़ा को दिल्ली एयरपोर्ट से गिरफ्तार कर लिया था। हालांकि, बाद में उन्हें सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल गई। इस मामले को लेकर कांग्रेस ने बीजेपी की जमकर आलोचना की और कहा कि डेमोक्रेसी में है। पवन खेड़ा के विरुद्ध कई राज्यों में दर्ज स्थिति में 153ए के अलावा अन्य विवरण का उल्लेख है।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और राजनीतिक उद्देश्यों को पूरा करने के लिए इन कानूनी दावों की बार-बार आलोचना की जाती है। वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने खेड़ा को फौरी राहत देते हुए निर्देश दिया कि उन्हें 28 फरवरी तक जमानत पर रिहा कर दिया जाए। सीजेआई दीवाना चंद्रचूड़ की बेंच ने कहा कि इस दौरान याचिकाकर्ता संबंधित अदालत में नियमित जमानत याचिका दायर कर सकते हैं। कोर्ट ने खेड़ा से यह भी कहा कि बातचीत का कोई स्तर होना चाहिए। तो आइए जानते हैं खेड़ा के ऊपर लगे सेक्शन 153ए के बारे में-
सेक्शन 153ए क्या कहता है
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार, भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 153A ‘धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास, भाषा, आदि के आधार पर विभिन्न लाइव के बीच शत्रुता को बढ़ावा देना और सद्भावना निराशा के मामले में फंसाया जाता है . इसमें 3 साल तक का कारावास, या जुर्माना, या दोनों का प्रावधान है। इसे 1898 में लागू किया गया था और मूल दंड संहिता का हिस्सा नहीं था। संशोधन के समय, वर्ग द्वेष को बढ़ावा देना राजद्रोह के अंग्रेजी कानून का एक हिस्सा था, लेकिन भारतीय कानून में शामिल नहीं था।
स्वतंत्रता से पहले रंगीला रसूल मामले में, पंजाब हाई कोर्ट ने एक हिंदू प्रकाशक को एक ट्रैक्टर से अलग कर दिया था, जिसने पैगम्बर के निजी जीवन के बारे में अपमानजनक टिप्पणी की थी और उसे धारा 153ए के तहत पंचर माना था। एडवोकेट गौतम भाटिया ने अपनी किताब ‘ऑफेंड, शॉक ओर्ब डिस्टर्ब: फ्री स्पीच अंडर द इंडियन कॉन्स्टिट्यूशन’ (ऑफेंड, शॉक ऑर डिस्टर्ब: फ्री स्पीच अंडर द इंडियन कॉन्स्टिट्यूशन) में लिखा है कि हाई कोर्ट ने ‘एक समुदाय पर आपत्तिजनक टिप्पणी और आपत्तिजनक टिप्पणी की है। उस समुदाय के विकलांग नेताओं ने ‘टिप्पणी’ के बीच अंतर किया।
पवन खेड़ा पर कौन सी धाराएं हैं?
जब इस तरह का एक और लेख फिर से प्रकाशित हुआ था, तो हाई कोर्ट ने कहा था कि ‘एक धार्मिक नेता पर अपमानजनक और गलत टिप्पणी प्रथम दृष्टया धारा 153ए के तहत आएगी- हालांकि हर आलोचना नहीं।’ पवन खेड़ा के खिलाफ स्थिति में उन पर आईपीसी की 153बी(1) (राष्ट्रीय एकता के विरोध का दावा); 295A (जानबूझकर और ग्रहणशील कार्य, जिसका उद्देश्य किसी भी वर्ग के धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान करके उसकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना है); 500 (मानहानि); और 504 (शांति भंग करने के इरादे से नज़रअंदाज़) धाराएँ फूटने लगीं।
कानून के नशे से कैसे बचा जाए?
अधिकतम को व्यापक रूप से परिभाषित किया गया है, इसके सेवन के आधार पर सुरक्षा उपाय हैं। उदाहरण के लिए, धारा 153ए और 153बी में आवश्यकता होती है, अभियोग शुरू करने के लिए सरकार से पूर्व स्वीकृति की आवश्यकता होती है लेकिन परीक्षण शुरू होने से पहले इसकी शुरुआत होती है, न कि प्रारंभिक जांच के चरण में। अंधाधुंध गिरफ्तारी पर टोकरे लगाने के लिए, सुप्रीम कोर्ट ने अर्नेश कुमार बनाम बिहार राज्य मामले में वर्ष 2014 के अपने फैसले में कुछ निर्देश दिए।
इन ग्रुप के मुताबिक, 7 साल से कम की सजा वाले फर्जी के लिए, पुलिस किसी पंच को जांच से पहले गिरफ्तार नहीं कर सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने साल 2021 के अपने एक फैसले में कहा कि धारा 153ए के तहत किसी सजा को लेकर राज्य को मंशा साबित किया जाएगा। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने द शिलॉन्ग टाइम्स के संपादक पेट्रीसिया इन्फॉर्मिम के खिलाफ कथित रूप से एक फेसबुक पोस्ट के माध्यम से सांप्रदायिक वैमनस्य पैदा करने के लिए दर्ज प्राथमिकी को रद्द कर दिया था।
क्या कहा था सुप्रीम कोर्ट ने?
शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा था, ‘अराजकता पैदा करने या लोगों को हिंसा के लिए उकसाने का इरादा IPC की धारा 153A के तहत अपराध का अहम हिस्सा है और अभियोजन पक्ष को इसके तहत सजा के लिए यह साबित करना होगा कि उसका मंशा अराजकता पैदा करना या लोगों को हिंसा के लिए उत्तेजित करना था।’ अदालत ने आगे कहा, ‘कथित आपराधिक वक्तव्य में निर्धारित शब्दों को तर्कपूर्ण और मजबूत दिमाग, दृढ और डेयरडेविल व्यक्ति की नजर से आंका जाना चाहिए, न कि कमजोर और स्थिर दिमाग वाले किसी व्यक्ति की नजर से, जो अपनी हर आलोचना में शैतान को भांपते हैं।’
ये भी पढ़ें: कांग्रेस को समझ नहीं आता कि उसकी हर अनदेखी दोहरी ताकत बन जाती है!