उत्तर प्रदेश देश के सबसे बड़े राज्यों में से एक है। इस प्रदेश में कई विश्वविद्यालय, मेडिकल कॉलेज, इंजीनियरिंग कॉलेज और उच्च शिक्षण संस्थान हैं। लेकिन इस राज्य से देश के शीर्ष सौ विश्वविद्यालयों में से एक भी राज्य विश्वविद्यालय नहीं है। सीएजी की रिपोर्ट हाल ही में जब मुझे पता चला कि उत्तर प्रदेश के सभी स्टेट यूनिवर्सिटी देश के टॉप हंड्रेड यूनिवर्सिटी और कॉलेज की रैंकिंग से बाहर हैं। भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट हाल ही में सदन में पेश की गई थी।
सबसे खराब ये विश्वविद्यालय हैं
इस रिपोर्ट के अनुसार, सबसे खराब स्थिति में लखनऊ विश्वविद्यालय और वाराणसी की महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ है। इन विश्वविद्यालयों से हर साल करीब 60,000 छात्र पढ़ाई कर रहे हैं। लेकिन उनमें से सिर्फ एक हजार को ही आगे रोजगार मिल सकता है। यहां तक कि इन विवरणों के पास इस बात की भी जानकारी नहीं है कि पढ़ाई पूरी करने के बाद यहां से पढ़ने वाले छात्र और होस्ट क्या कर रहे हैं।
स्कॉलरशिप का उठा रहे हैं पूरा फायदा
सीएजी की इस रिपोर्ट के माने तो काशी विद्यापीठ के करीब 73 से 80 शेयर और लखनऊ विश्वविद्यालय के करीब 56 से 67 छात्र पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप का लाभ उठा रहे हैं। आपको बता दें कि यह स्कॉलरशिप सोशल वेलफेयर डिपार्टमेंट द्वारा दिया जाता है। इसी रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि मार्च 2020 तक काशी विद्यापीठ से कुल 341 और लखनऊ विश्वविद्यालय से कुल 171 कॉलेज एफिलिएट थे। इन शिकायत की संख्या देखकर स्पष्ट होता है कि स्वयंसेवी भ्रष्टाचार प्रमाणपत्रों की संख्या उत्तर प्रदेश में तेजी से बढ़ रही है।
छात्रों को क्यों नहीं मिल रहा रोजगार
इन साइन्स से पढ़ने वाले छात्रों को रोजगार ना मिलने का सबसे बड़ा कारण है कि उनके अंदर पकड़ की कमी है। यहां पढ़ने वाले ज़्यादातर छात्रों की शिकायत रहती है कि उनकी क्लास का समय नहीं चल रहा है और ना ही उन्हें इस तरह से किसी तरह का भ्रम फैलाया जाता है, जिससे वह पढ़ने के बाद कहीं भी काम करने में सक्षम हो जाते हैं।
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