सुप्रीम कोर्ट: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (3 मार्च) को 40 साल बाद पश्चिम बंगाल के एक व्यक्ति की पत्नी की हत्या के मामले में आरोप से अलग कर दिया। कोर्ट ने कहा कि सिर्फ इकबलिया बयान यानी एक्स्ट्रा जूडिशल कन्फेशन पर किसी को दोषसिद्धि को कायम नहीं रखा जा सकता क्योंकि यह कमजोर सबूत है।
अत्यधिक ज्यूडिशल कन्फेशन संदिग्ध होता है क्योंकि इसकी विश्वसनियता की आशंकाएं होती हैं। इस कारण यह अपना महत्व खो देता है। मर्डर 11 मार्च 1983 को पश्चिम बंगाल के बर्दवान जिले में हुआ था, इस मामले में ट्रायल कोर्ट ने दिसंबर पति निखिल चंद्र मोंडल को 31 मार्च 1987 को रिहा कर दिया था, लेकिन राज्य राज्य लेकर कोलकाता उच्च न्यायालय पहुंच गया। यहां मोंडल को 15 दिसंबर 2008 को मूल कारावास की सजा सुनाई गई।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
हाई कोर्ट के फैसले पर मोंडल ने 2010 में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। जज बी.आर. गवई और ब्रॉडकास्टिंग संजय करोल की याचिकाओं ने 1984 के आदेश का हवाला देते हुए उच्च न्यायालय के फैसले को रद्द कर दिया।
बेंच ने कहा, “यह कानून का स्थापित सिद्धांत है कि कितना गहरा और मजबूत क्यों नहीं हो सकता है, लेकिन यह सबूत की जगह नहीं ले सकता है। ‘न्यायालय के फैसले का एक्स्ट्रा ज्यूडिशल कन्फेशन पर आधारित था। कोर्ट ने आगे कहा कि गवाहों के बयानों में भी विपरीत है।
मामला क्या है?
केटूग्राम पुलिस स्टेशन में 11 मार्च 1983 को मामला दर्ज हुआ। इसमें बताया गया है कि 25 वर्षीय महिला का रेलवे ट्रैक पर है। पुलिस की जांच के दौरान पता चला कि पीड़िता को धारदार हथियार से मारा गया है। आखि़र बार मोंडल ही उसे और अपने बेटे को मील में लेकर गया था। इसके बाद दोनों लापता हो गए।
पुलिस ने दावा किया कि मोंडल ने तीन सिद्धांतिक पाल, प्रवत कुमार मिश्रा और कनई साहा के सामने कबूल किया कि उसने अपनी पत्नी की हत्या उसी स्थान पर की थी, जहां से उसका शव मिला था।
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