वित्तीय समावेशन: वुमन फास्ट से इंडस्ट्री के विभिन्न स्कीमों में योगदान दे रहे हैं। अब वे केवल घरों की देहरी तक सीमित नहीं हैं, बल्कि गतिविधि से हर क्षेत्र में सहभागी बन रहे हैं। हालांकि इसके बाद भी बैंकिंग में उनका कनेक्शन बहुत कम है। पिछले कुछ समय के दौरान वित्तीय समावेशन पर ध्यान देने से तस्वीर कुछ अच्छी है, लेकिन अभी भी यह समान रूप से पीछे है। ताजा सरकारी आंकड़ों में यह बात निकलकर सामने आई है।
डिपॉजिट में भी है निगरानी
आंकड़ों के अनुसार, पिछले कुछ समय के दौरान बैंक अकाउंट्स और डिपॉजिट दोनों मामलों में महिलाओं की भागीदारी मिलती है। हालांकि महामारी के बाद महिलाओं ने पुरुषों की तुलना में समझदार लोगों में कम पैसे रखे हैं। अभी कुल बैंक खाते में महिला खाताधारकों की संख्या 35 प्रतिशत है, वहीं कुल जाम में उनका अंधेरा बस 20 प्रतिशत है। यानी करीब एक तिहाई खाताधारक महिलाएं हैं, लेकिन उनके पास कुल जमा का सिर्फ रमजान का हिस्सा ही है।
कर्मचारियों का हिस्सा बस एक-गठबंधन
ये जानकरियां ‘भारत में महिला और पुरुष 2022’ नामक रिपोर्ट में मिली हैं, जिसे मंत्रालय ने हाल ही में जारी किया है। रिपोर्ट के अनुसार, साक्षरता में काम करने वाले कर्मचरियों में भी महिलाओं की नजर अभी बहुत कम है। अभी भी हर चार में से एक कर्मचारी महिला है। ऐसे मामलों में कुल कर्मचारियों में महिलाओं की नज़र 25 प्रतिशत ही है।
महिलाओं के पास इतनी रकम है
रिपोर्ट के मुताबिक, जनवरी 2023 तक के आंकड़ों के मुताबिक, संबंधित लोगों के पास कुल जमा राशि की संख्या 225.5 करोड़ है। इनमें से 79 करोड़ के करीब बैंक खाते महिलाओं के हैं। सभी खुले डिपॉजिट अकाउंट्स में अभी 170 लाख करोड़ रुपये जमा हैं, जबकि महिला खाताधारकों के अकाउंट्स में करीब 34 लाख करोड़ रुपये सागर हैं।
सूचनाओं में हुआ बेहतर सुधार
मार्च 2019 में कुल खातों में कुल खाते करीब 31 प्रतिशत और कुल जमा राशि में करीब 18 प्रतिशत थे। इससे पता चलता है कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान महिला खाताधारकों की संख्या दी गई है और साथ ही इन लाभों में जमा राशि में भी धोखा हुआ है। शहरों की तुलना में महिलाओं की वित्तीय समावेशन बेहतर तरीके से होता है, क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में कुल जमाकर्ताओं में महिलाओं की शहरों की तुलना में डबल तेजी से मिलती है।
ये भी पढ़ें: तीन सप्ताह में 50% से ज्यादा अडानी की नेटवर्थ, टॉप20 से बस एक कदम दूर