विमुद्रीकरण पर असदुद्दीन ओवैसी: नोटबंदी को लेकर अक्सर ही पीएम मोदी पर हमला करते हैं। वहीं सुप्रीम कोर्ट से प्रधानमंत्री को इस मामले में बड़ी राहत मिली है. सुप्रीम कोर्ट ने 4-1 से नोटबंदी को सही ठहराया है। हालांकि, AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी अब भी नोटबंदी को सही नहीं मानते हैं. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ओवैसी ने मोदी सरकार को नोटबंदी का जश्न मनाने की चुनौती दी है।
ओवैसी ने नोटबंदी की वजह से 50 लाख लोगों की नौकरी जाने का दावा किया। इसलिए ही नहीं उन्होंने जीडीपी गिरने के पीछे भी नोटबंदी का हाथ बताया। मोदी सरकार को चुनौती दे रहा है कि नोटबंदी दिवस मनाकर दिखा रहा है। ओवैसी ने कहा, “नोटबंदी इतनी बड़ी सफलता है तो बीजेपी इसे सिलब्रेट क्यों नहीं करती?”
नोटबंदी पर ओवैसी का वार
ओवैसी ने कहा, “आप क्या भूल गए जो प्रधान मंत्री ने भाषण में कहा था? शादी है और घर में पैसा नहीं है। सारा मुल्क रो रहा है, प्रधान मंत्री हंस रहे हैं। नोटबंदी का जो भ्रष्टाचार खत्म हुआ था उसका उदेश्य, वो सब एक मजाक में लाइन में दौड़ ही कई लोगों ने अपनी जान जला दी।” उन्होंने आगे कहा, “अजीम प्रेम जी यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट कहती है कि नोटबंदी के बाद 50 लाख लोगों ने अपनी नौकरी पर कब्जा कर लिया। नोटबंदी के बाद तो और ज्यादा लोगों ने कर्ज लिया है। मैं तो बीजेपी को चुनौती देता हूं, ये नोट लोगबंदी को सेलिब्रेट करके शो।”
कोर्ट ने 4-1 से सही ठहराने का फैसला किया
बता दें कि सोमवार (02 जनवरी) को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एस नजीर की अध्यक्षता वाली याचिका ने नोटबंदी के फैसले को 4-1 से सही ठहराया। पीठ में जस्ट वन जस्टिस ने इस फैसले पर अपना तर्क दिया और उन्होंने नोटबंदी के अभियोग को “गैरकानूनी” बताया। शीर्ष अदालत का फैसला नोटबंदी के पक्ष में आने के बाद भारतीय जनता इसे बड़ी जीत मान रही पार्टी है। बीजेपी नेताओं ने कहा कि यह फैसला देशहित में किया गया था और आज कोर्ट ने इस फैसले को सही पाया है।
नए साल के पहले ही दिन हमला बोला
ओवैसी ने रविवार यानी रविवार को नए साल के पहले ही दिन मोदी सरकार पर हमला बोल दिया। उन्होंने मोदी सरकार पर रस्सियों के राशन में बंटने का आरोप लगाया था। ओवैसी ने ट्वीट किया था, “मोदी सरकार ने 81 करोड़ राशन का राशन 50% कम कर दिया। 10 किलो की जगह अब सिर्फ 5 किलो राशन मिलेगा। इसमें एक गरीब परिवार कैसे अपना गुजारा कर सकता है? राशन राशन का हक है, खैरात नहीं। नौकरी और दावे की मार पर पकड़ की बजाय सरकार की पकड़ की मुश्किलें बढ़ रही हैं।”
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