डॉलर की सर्वोच्चता को चुनौती: रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर वाइट का एक बयान जिसमें उन्होंने कहा कि रूस अब एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के साथ होने वाले व्यापार के लिए डॉलर की जगह चीनी युआन के इस्तेमाल का समर्थन करता है और ये सब तब हुआ जब चीन के राष्ट्रपति शीपिंग रूस का दौरा पड़ा था। लेकिन आख़िर क्यों दुनिया भर के कई देशों ने व्यापार के लिए डॉलर के विकल्प की तलाश शुरू कर दी है? वो क्या कारण हैं जिसके चलते डॉलर के प्रभुत्व को कम करने का प्रयास जोरों पर किया जा रहा है?
रूस यूक्रेन युद्ध की शुरुआत के बाद जिस तरह से अमेरिका और दूसरे देशों ने रूस पर आर्थिक पश्चिमी मानकों को सही करते हुए अमेरिका पर ये आरोप लगाना शुरू कर दिया कि वो डॉलर का इस्तेमाल हथियार के तौर पर कर रहा है। क्योंकि ग्लोबल सेंट्रल बैंक में डॉलर का शेयर 60 फीसदी और दुनिया भर में होने वाले 70% प्रतिशत व्यापार अमेरिकी डॉलर में होते हैं और इसी वित्तीय शक्ति के लिए अमेरिका दूसरे देशों पर सख्त प्रतिबंध लगा रहा है। रूस सहित अन्य देशों पर आर्थिक उदार अन्य देशों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि भविष्य में अमेरिका किन्ही कारणों से उन पर भी आर्थिक प्रतिबंध लग सकता है और जिस तरह से रूस की अर्थव्यवस्था में तेजी से गिरावट आई है वो उनके साथ भी हो सकता है। रूस पर आर्थिक प्रतिबंध ये स्पष्ट रूप से स्पष्ट है कि दुनिया में किसी देश की करंसी का प्रभुत्व होने के कारण उस देश को कितनी शक्ति दी जा सकती है।
रूस दुनिया का सबसे बड़ा तेल, कोयला, और गैस उत्पादकों में से एक है और जिस तरह से उस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाया गया है, उसका असर न सिर्फ रूस पर बल्कि उसके साथ व्यापार करने वाले दूसरे देशों पर भी पड़ा है। रूस ने अमेरिका और दूसरे पश्चिमी देशों ने स्विफ्ट सिस्टम से बाहर कर दिया। ये वो सिस्टम है जिसके जरिए एक देश दूसरे देश के साथ अपना ट्रांजिशन एक्शन करते हैं और इसका ट्रांजिशन ज्यादातर डॉलर में होता है और यही वजह है कि अमेरिका आये दिन इस सिस्टम से चार्ज करने वाले देशों पर अपना मन मनी करता है।
आपको बता दें कि रूस से पहले अमेरिका ने 2012 में ईरान की परमाणु घटना के कारण उसे इस सिस्टम से बाहर कर दिया था, जिसकी वजह से ईरान ने जिन देशों को तेल कवर किया था, उसे भुगतान नहीं मिला और ईरान की उद्योग चरमरा गई।
डॉलर के प्रभाव को कम करने की कवायद
वैसे तो रूस ने डी-डॉलर के आकार की दिशा में कदम पहले ही बढ़ा दिया था। ‘डी-डॉलरीकरण’ का मतलब अंतरराष्ट्रीय बाजार में डॉलर के प्रभाव को कम करना है। साल 2014 में जब क्रीमिया पर कब्ज़े के लिए उस पर लगे प्रतिबंध को उसी के बाद रूस ने डॉलर के विकल्प की तलाश शुरू कर दी थी। रूस ने साल 2021 तक डॉलर से जुड़ी अपनी संलग्नता में कटौती लगभग 16% कर ली थी। SWIFT को बायपास करते हुए रूस ने SPFS यानी वित्तीय संदेशों के हस्तांतरण के लिए सिस्टम और चीन CIPS क्रॉस-बॉर्डर इंटरबैंक भुगतान प्रणाली के माध्यम से तेज़ी से आगे बढ़ रहे हैं। चीन के इस स्वामित्व प्रणाली में अब तक 690 बैंक शामिल हो गए हैं जो स्पष्ट रूप से वैश्विक देशों ने ये मान लिया है कि केवल डॉलर में ही व्यापार करना अब पूरी तरह से सुरक्षित नहीं है।
आपको याद होगा कि रूस पर प्रतिबंध लगाने के बाद भी भारत रूस के साथ व्यापार करना बंद नहीं किया। जिसके बाद अमेरिका समेत कई देशों ने इस पर आपत्ति जताई थी। जिसका जवाब विदेश मंत्री जयशंकर ने दुनिया के कई मंचों पर स्पष्ट कर दिया कि भारत की जिम्मेदारी उनके नागरिकों के प्रति है और वो इसके पीछे नहीं हटेगा। सिस्टम पर प्रतिबंध के बाद भारत ने रूस के साथ रूप-रोमन में व्यापार किया। ये बात का स्पष्ट संकेत देता है कि यदि रूपी-युआन या रूप रोमानी ट्रांजिशन मैकेनिज्म सफल हुआ तो इसमें कोई दो राय नहीं आने वाले समय में दूसरा देश भी इस ओर तेजी से कदम बढ़ाएंगे।
आपको बता दें कि सऊदी अरब ने चीन से तेल के मालिकाना हक को युआन में लेने पर राजी हो गया है 48 साल में ये पहली बार होगा जब सौदी अरब डॉलर की बजाय दूसरी करंसी में ट्रेड करेगा। इसके साथ ही संयुक्त अरब अमीरात ने भारत से आरोपों के लिए सहमति जताई है। डॉलर के प्रभाव को कम करने के लिए चीन भी एशियाई, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के देशों को राजी करने में लगता है कि वो अपना व्यापार डॉलर की बजाय युआन में कर लें। भारत रूस के साथ पहले ही रोमानी रूप में व्यापार को बढ़ाने की दिशा में काम कर रहे हैं। ब्रिक्स को रूस के एक्सपोर्ट में अमेरिकी डॉलर का उपयोग वर्ष 2013 में लगभग 95% घटकर वर्ष 2020 में 10% से भी कम हो गया है। रूस ने भी पश्चिमी देशों पर गैस आपूर्ति के बदले में डॉलर की जगह रोमानी करने का दबाव बनाया है…….. इसके अलावा ब्राजील और अर्जेंटीना ने दक्षिण अमेरिका की दो सबसे बड़ी कंपनियों के लिए आम मुद्रा व्यापार पर सहमति बनाई बहाना है। सिंगापुर में हुए एक सम्मेलन में, कई दक्षिण पूर्व एशियाई अधिकारियों ने डी-डॉलरीकरण के बारे में चर्चा की है।
रूस युआन व्यापार को अपना पूरा समर्थन दे रहा है, इसके साथ ही पूरी दुनिया की माफी के 15 प्रतिशत के छिपाने वाला चीन दुनिया का सबसे बड़ा मैन्युफैक्चरिंग करने वाला देश होने के साथ सबसे बड़ा एक्सपोर्टर है, जिसके चलते वो अमेरिकी डॉलर को खुले तौर पर देखते हैं चुनौती दे रहा है। IMF ने सबसे पहले साल 2016 में युआन को अपने स्पेशल ड्रॉइंग राइट्स- SDR आर्किटेक्चर में शामिल किया है। आज दुनिया के 125 देश चीन के साथ प्रमुख ट्रेड पार्टनर के तौर पर हैं और ये सभी युआन में ही ट्रेड करते हैं इसके साथ ही डॉलर को रिप्लेस करने के लिए चीन को दुनिया के बाकी दूसरे देशों के अंदर अपने भरोसे को बढ़ाना होगा इसके साथ ही डॉलर की तरह एक मजबूत मौद्रिक व्यवस्था प्रणाली का निर्माण करना होगा। अपने व्यापारिक संबंधों को एक दिन में पूरा किया जा रहा है और लड़का युवा में ही व्यापार करने के लिए राजी भी हो रहा है जिसके कारण इस बात की संभावना बढ़ गई है कि युआन डॉलर का एक विकल्प हो सकता है।
क्या युआन ले सकता है डॉलर की जगह ?
मौजूदा समय में अमेरिका के पास सबसे सिक्कोर फाइंनेंशियल मार्केट है, इसके अलावा डॉलर की ट्रांसपेरेंसी भी है। लम्बे समय से डॉलर के एक स्टेटबेल करंसी होने के नाते रिश्तेदारों का भरोसा बरकार है लेकिन जब बात चीनी युआन की ग्लोबल करंसी बनने की आती है तो पहला सवाल खड़ा होता है चीन को दूसरे देशों की सीमाओं में लगातार दखल देना, अघोषित हिटलरशाही शासन, और कमजोर देशों को अपने जाल में फंसाने की लगातार कोशिश के चलते इस देश पर देनदार सख्त नजर आते हैं। इसके साथ ही युआन को पहले भी डिवैल्यूएशन किया जाता है। इस करंसी का कंट्रोल चीन पर शासन करने वाली पार्टी CCP के हाथ में ही है, जिसके कारण एक चीनी युआन के वैश्विक करंसी बनने के रास्ते में कई पात्र दिखाई देते हैं।
इसके साथ ही ये बात भी साफ है कि जब तक डॉलर को दूसरी करंसी से मुश्किल चुनौती नहीं बनेगी तब तक अमेरिका दूसरे देशों पर अपना मनमानी करेगा . और नशे के साथ अगर अमेरिका ने अपने इस तरह के बदलाव में बदलाव नहीं किया है तो भविष्य में उसकी अधीनता को सबसे बड़ी चुनौती मिल सकती है।
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