पहली अलार्म घड़ी: आज हम सभी स्मार्टफोन में अलार्म सेट करने के लिए क्लॉक का स्टैंडिंग है। हम जब भी देर तक परेशान रहते हैं तो अलमक को सेट कर सकते हैं। लेकिन जब पहली बार अलमक क्लॉक या अलमक मैकेनिकल सिस्टम की खोज की गई तो ये केवल 4 ही सुबह बजता था। यानी जो पहला मैकेनिकल सिस्टम डिजाइन किया गया वह केवल सुबह 4 बजे ही एक बार बजता था। इसके बाद कोई आवाज नहीं आती थी। आज हम आपको ये झूठ कि ऐसा क्यों था।
पहला विद्युत अलार्म 1890 में बना
दुनिया का पहला अलमक सिस्टम न्यू हैम्पशायर के कॉनकॉर्ड में रहने वाले लेवी हचिन्स ने 1787 में बनाया था। इस मैकेनिकल अलमक सिस्टम का ये निर्माण हुआ था कि ये सुबह 4 बजे ही बजता था। वास्तव में, लेवी हचिन्स ने इसे इसलिए बनाया था ताकि वह 4 बजे के बाद न मिले क्योंकि ये उनकी फर्मों का रूल था कि सूरज के उगने से पहले वे उठ जाते हैं। वे केवल अपने डर के लिए तैयार थे और इसकी यांत्रिक प्रणाली इस तरह बनाई गई थी कि ये केवल 4:00 बजे ही रिंग करें। आज भले ही हम मैनुअली अपने होश को ठीक कर लेते हैं लेकिन दुनिया का पहला अलार्म सिस्टम ऐसा नहीं था। इसके बाद अलमीटर सिस्टम पर काम चल रहा है और 1847 में फ्रेंच आविष्कारक एंटोनी रेडियर ने पहला एडजेस्टेबल मेमन अल क्लॉक बनाया और इसका पेटेंट कराया। इसमें आसानी से अलार्म को अपने होश से सेट किया जा सकता था। इसके बाद कई और लोगों ने अलमक क्लॉक पर काम किया और अलग-अलग डिजाइन के क्लॉक बनाए। बता दें, दुनिया का पहला इलेक्ट्रिक अलमक क्लॉक 1890 में बनाया गया था।
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टेलीफोन रिसीवर से आया ईयरफोन/हेडफोन का
आज हेडफोन और ईयरफोन बेहद कॉमन हो गए हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसकी शुरुआत कैसे हुई थी? दरअसल, टेलीफोन के रिसीवर वाले हिस्से से ही ईयरफोन या हेडफोन का आईडिया टूटा और 1880 में पहला ईयरफोन एक टेलीफोन द्वारा इस्तेमाल किया गया था जिसे एज्रा गुइलिलैंड ने बनाया था। इसे ईयरफोन नहीं कहा जा सकता था क्योंकि इसमें सुनने के लिए एक ही ईयरपीस होता था जबकि सेकेंड साइड शोल्डर में ईयरपीस का रिसीवर होता था। इस हेडफोन का वजन 4.5 किलोग्राम था। 1891 में एक फ्रेंच इंजीनियर अर्नेस्ट मर्कैडियर ने ईयरफोन पर काम करना शुरू किया और कई प्रयोग करने के बाद उन्होंने एक छोटा ईयरफोन बनाने में कामयाबी हासिल की, जिसे उन्होंने “द्वि-टेलीफोन” के नाम से पेटेंट करार दिया। इसे ही दुनिया का पहला ईयरफोन कहा गया है।