।शिक्षा का अधिकार हमारे देश में सभी को है। हर साल अलग-अलग बोर्ड की ओर से आयोजित परीक्षा में लाखों की संख्या में छात्र-छात्राएं शामिल होते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि 10वीं के बाद 11वीं से लेकर 35 लाख तक के बच्चे पढ़ने के लिए उपयुक्त नहीं हैं। ये आंकड़े और इसके पीछे की वजह हैरान करने वाली है।
शिक्षा मंत्रालय की ओर से किए गए 10वीं और 12वीं की छत के ऊपर लगे होने के कारण 27.5 लाख छात्र फेल हो रहे हैं और 7.5 लाख छात्र 10वीं की परीक्षा में शामिल नहीं हो रहे हैं। इन रिजल्ट में अंतर देखते हुए शिक्षा मंत्रालय अध्ययन योजनाओं में बदलाव पर विचार कर रहा है। एक रिपोर्ट में कहा गया है कि 11वीं कक्षा तक 10वीं कक्षा के लाखों छात्र नहीं पहुंच रहे हैं, 27.5 लाख छात्र फेल हो रहे हैं और 7.5 लाख छात्र परीक्षा में शामिल नहीं हो रहे हैं।
अलग-अलग शिक्षा बोर्डों के छात्रों के प्रदर्शन में बड़े अंतर, पास प्रतिशत में अंतर और मानकों को देखते हुए छात्रों के लिए समान अवसर शिक्षा मंत्रालय की ओर से बहुमत की ओर नहीं है। स्कूल शिक्षा सचिव संजय कुमार के अनुसार सभी मुख्यालयों ने देश के अलग-अलग राज्यों के सभी 60 स्कूल बोर्डों के लिए मूल्यांकन का मानकीकरण किया है।
11 राज्यों का सबसे ज्यादा योगदान
रिपोर्ट में कहा गया है कि ओपन बोर्ड के साथ नियमित राज्य बोर्डों के रहने वाले छात्र (लगभग 46 लाख) की एक्टिंग और एक्टसेट-प्रमोट से शिक्षा प्रणाली में छात्रों को लंबी अवधि के लिए ट्रैक करने और बनाए रखने में मदद मिल सकती है। लेकिन फिल्हाल में केवल 10 लाख छात्र ही ओपन स्कूल के जरिए रजिस्ट्रेशन कर रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक देश के 11 स्टेट स्कूल में 85 प्रतिशत का योगदान देते हैं। इनमें उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, गुजरात, तमिलनाडु, राजस्थान, कर्नाटक, असम, पश्चिम बंगाल, हरियाणा और छत्तीसगढ़ शामिल हैं।
केवल तीन केंद्रीय बोर्ड
बता दें कि वर्तमान देश में केवल तीन सेंट्रल बोर्ड हैं। जो कि केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई), काउंसिल फॉर इंडियन अकाउंट स्कूल नामांकन (सीआईएससीई) और राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान (एनआईओएस) हैं।
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