शरद यादव मृत्यु: एक इंजीनियर जो मध्य प्रदेश में पैदा हुआ, लेकिन उसकी शिनाख्त बिहार के बड़े नेता के रूप में हुई। एक नेता, जो तीन-तीन राज्यों से चुनाव लड़ रहा है और कुल सात बार लोकसभा सदस्य है, जो तीन बार राज्यसभा से सांसद रहा है, जो वीपी सिंह पर दबाव बोर्ड कमीशन को लागू करते हैं, जो बाबरी विध्वंस के बाद सोलहवीं में दांव लगाना देते हैं -टिप्पणी की तो चंद्रशेखर ने अपनी सात मौके को देख लेने की धमकी दी, जिसने घोटाले का आरोप लगाने के बाद भी बचाव के लिए कोई वकील नहीं किया और सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा ने कहा कि हां उसने पार्टी के लिए पैसे लिए हैं, जो लोकदल , जनता दल, जदयू और आर जुडी जैसी पार्टियां बदलने के बाद भी अपने अंतिम समय तक समाजवादी रहे, जो केंद्र में मंत्री रहने के बाद भी राजनीति के उस शिखर को नहीं पाया जिसका वो हकदार था। उस नेता का नाम शरद यादव है, जिन्होंने गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में गुरुवार रात 10 बजे के आसपास अपनी सांसें लीं।
ऐसी हुई थी राजनीति में शरद यादव की शुरुआत
शरद यादव ने अपनी राजनीति की शुरुआत जयप्रकाश नारायण (जयप्रकाश नारायण) के आंदोलन से जुड़ने की की थी। 1974 में जब जेपी का आंदोलन अपने उरूज पर था, मध्य प्रदेश (मध्य प्रदेश) की जबलपुर-सातवीं सीट पर उपचुनाव हुआ था। तब उस सीट से चार बार के सांसद रहे वरिष्ठ कांग्रेसी नेता सेठ गोविंद दास का निधन हो गया था। उस उपचुनाव के लिए जय प्रकाश नारायण ने खुद भारतीय लोकदल के बहाने के तौर पर शरद यादव के नाम का चुनाव किया और शरद यादव (शरद यादव) जीत गए। लेकिन आपात स्थिति के दौरान जब इंशियरा गांधी ने कल का कार्यकाल पांच से छह साल तक बढ़ाया तो दो सांसदों ने इस्तीफा दे दिया।
मधुर लिमये के साथ इस्तीफा देने वालों में दूसरे सांसद शरद यादव ही थे। आपातकाल के बाद भी जब 1977 में उस सीट से चुनाव हुए तो शरद यादव ने वहां से वापसी कर जीत हासिल की। लेकिन इंस्पिरेशन गांधी के खिलाफ जनता पार्टी का प्रयोग हो गया तो शरद यादव ने चौधरी चरण सिंह का हाथ थामा और चरण सिंह के अंतिम वक्त तक उनके साथ ही रहे। अमेठी से सांसद रहे संजय गांधी की मृत्यु के बाद जब उपचुनाव हुए तो कांग्रेस के सहयोगी राजीव गांधी थे। लेकिन चौधरी चरण सिंह ने अमेठी (अमेठी) में राजीव गांधी (राजीव गांधी) का मुकाबला करने के लिए शरद यादव को उम्मीदवार बनाया।
शरद यादव चुनाव हार गए
हालांकि शरद यादव वो चुनाव बुरी तरह से हार गए। 1984 के विधानसभा चुनाव में चरण सिंह ने शरद यादव को बदायूं से उम्मीदवार बनाया। लेकिन शरद यादव वो चुनाव भी हार गए। कांग्रेस नेता सलीम इकबाल शेरवानी ने वहां से जीत दर्ज की। हालांकि चरण सिंह की झलक का फायदा शरद यादव को मिला और वोया राज्यसभा संसद पहुंच गए। जब वीपी सिंह ने राजीव गांधी के खिलाफ मामला दर्ज किया और पूरे देश में घूमते-घूमकर राजीव गांधी के खिलाफ माहौल बना लिया। बो फोर्स ऐसा था, जिसने राजीव गांधी की छवि को पूरी तरह से डेंट कर दिया।
2 अक्टूबर, 1988 को मद्रास में एक रैली हुई। इस रैली में कुल सात दलों के लोग शामिल थे, जिनका नेतृत्व कर रहे थे क्षेत्रों के सदस्य एनटी रामाराव। जनमोर्चा, जनता पार्टी, कांग्रेस (सोशलिस्ट), असम गण परिषद, तेलुगू देशम, डीजेके और लोकदल (बहुगुणा), इन सात मतदाताओं ने एक साथ एक मोर्चों के तहत आने की घोषणा की और इसका नाम दिया राष्ट्रीय मोर्चा। इसके बाद 11 अक्टूबर, 1988 को जेपीजी की जयंती थी। जनमोर्चा, जनता पार्टी, लोकदल और कांग्रेस (एस) के विलय से एक नई पार्टी जिसका नाम रखा गया जनता दल।
शरद यादव ने फिर से चुनाव में लड़ाई लड़ी
शरद यादव जनता दल के साथ आ गए. 1989 में शरद यादव ने जनता दल के उम्मीदवार के तौर पर फिर से चुनाव लड़ने और कांग्रेस विरोधी लहर में जीत दर्ज की। लेकिन यही जीत और वी.पी. सिंह का यही कारण है कि शरद यादव के करियर में सबसे बड़ा रोड़ा बन गया। हुआ ये कि जनता दल को कुल 143 सीट्स मिलीं. कांग्रेस 198 पर सिमट गई। इसके बाद बीजेपी और लेफ्ट ने जनता दल का समर्थन किया और एक राष्ट्रीय मोर्चा बना दिया। अब चुनाव के बाद प्रधानमंत्री चुने गए थे।
इस कड़ी में सबसे पहला नाम विश्वनाथ प्रताप सिंह का था, जिन्होंने बॉडी फ़ोर्सेज़ की सीवी जीवी की सलाहत को चुनौती दी थी। दूसरे थे चंद्रशेखर, सन जनता पार्टी का जनता दल में विलय हुआ था। जनता दल का सबसे बड़ा घटक दल जनता पार्टी ही थी और चंद्रशेखर इसके अध्यक्ष थे, तो उनकी भी प्राथमिकता स्वभाविक थी। तीसरे नंबर पर हरियाणा के शेयर और अपने लोगों में ताऊ के नाम से मशहूर चौधरी देवीलाल भी थीं। ऐन टाइम पर 1 दिसंबर को जब पार्टी की मीटिंग हुई तो चौधरी देवीलाल ने वीपी सिंह को प्रधानमंत्री के रूप में पेश किया।
‘शरद को आगे नहीं बढ़ना है’
शरद यादव भी वी.पी. सिंह के साथ हैं। और इसकी वजह से चंद्रशेखर (चंद्रशेखर) के मन में एक किंक पड़ गई कि अब शरद यादव को आगे नहीं बढ़ना है। लेकिन अब वी.पी. (विश्वनाथ प्रताप सिंह) प्रधानमंत्री थे और शरद यादव उनके कैबिनेट मंत्री थे। लेकिन जिस देवीलाल ने वीपी सिंह का नाम प्रधानमंत्री पद के लिए प्रस्तावित किया था, वैसे भी देवीलाल से वीपी सिंह की अनबन हो गई। और अपनी सरकार में उपप्रधानमंत्री रहे देवीलाल को वीपी सिंह ने सरकार से बाहर का रास्ता दिखाया।
सरकार गिराने के लिए देवीलाल ने रैली का आयोजन किया
देवीलाल (देवी लाल) ने तय किया कि वो सरकार बनेगी। और इसके लिए उन्होंने 9 अगस्त 1990 को दिल्ली के बोट क्लब में एक रैली की योजना बनाई। वहीं वीपी सिंह और शरद यादव को ये भी पता था कि इलाहाबाद में हुई धर्म संसद में बीजेपी के नेता कृष्ण लाल आडवाणी अपनी यात्रा की तैयारी कर चुके हैं, जो गुजरात के सोमनाथ से लेकर अयोध्या तक जाएंगे। शरद यादव ऐसे नेता थे, जिन्हें वीपी सिंह अपने साथ रखना चाहते थे और ताऊ देवीलाल अपने साथ। ऐसे में शरद यादव ने वी.पी. सिंह के साथ रहना चुना, लेकिन उनकी एक शर्त थी। और शर्त ये थी कि अगर वीपी सिंह मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू करते हैं तो शरद यादव साथ नहीं रहेंगे तो वो देवीलाल के साथ चले जाएंगे।
इसके अलावा तब के जनता दल में लालू यादव से लेकर आक्रोश सिंह यादव जैसे लेटसी रेसेस के बड़े नेता थे, जो मंडल कमीशन लागू करवाना चाहते थे लेकिन फ्रैंक कभी इस बात को लेकर नजर नहीं रखते थे। शरद यादव के पास मौका था कि वो मंडल आयोग करवा कर खुद पिछड़ी जातियों के सबसे बड़े नेताओं में शुमार हो जाएं और इसके लिए उन्होंने वीपी सिंह पर दबाव डाला। वी.पी. सिंह ने तब कहा कि वो 15 अगस्त को लाल किले से मंडल कमीशन लागू करने का ऐलान करेंगे। लेकिन शरद यादव ने कहा कि 9 अगस्त को चौधरी देवीलाल की रैली वीपी का इतना नुकसान होगा कि उनका बहिष्कार मुश्किल है।
शरद यादव को पूरा क्रेडिट नहीं मिला
पीएम वीपी को बात समझ में आई। आनन-फानन में 7 अगस्त को कैबिनेट की बैठक बुलाई गई और मंडल की नियुक्ति को लागू कर दिया गया। इस मंडली के कमीशन के लागू होने के बाद इसकी श्रेय सभी लोगों ने ली है। मतदाताओं से लेकर लालू यादव और राम विलास पासवान तक ने कहा कि उनके कहने पर वीपी सिंह ने मंडल कमीशन लागू किया था, लेकिन दिलचस्पी ये है कि शरद यादव का दबाव मंडल आयोग लागू करने की सबसे बड़ी वजहों में से एक था।
खुद शरद यादव ने इस बारे में कहा था कि उन्होंने वीपी सिंह की गर्दन पकड़कर मंडल कमीशन को संपादित किया था। हालांकि शरद यादव को पूरा क्रेडिट नहीं मिला, क्योंकि बिहार और उत्तर प्रदेश जो इस पर बने रहने की वजह से सबसे ज्यादा प्रभावित हुए, वहां दो अन्य यादव नेता थे।
आप में चमक सिंह यादव और बिहार में लालू प्रसाद यादव। और इन दोनों को बनाने में सबसे बड़ा हाथ चंद्रशेखर का था, जिन्होंने वी.पी. ऐसे में शरद यादव उस मुकाम पर नहीं पहुंचे, जिसके वो हकदार थे। रही-सही तरीके से पूरी तरह 1991 के दशक के चुनाव में हो गई। 1991 के विधानसभा चुनाव में शरद बादायूं से सातवीं के चुनाव में हार गए। और वह ठीक फोड़ा चंद्रशेखर और व्यस्त पर।
कहा गया कि चंद्रशेखर के कहने पर जाम ने बादायूं के डीएम से देश वोटिंग से एक दिन पहले लाठीचार्ज करवा दिया, जिससे शरद यादव के मतदाता छिटक गए और वो हार गए। हालांकि शरद यादव ने बिहार के मधेपुरा से भी चुनाव लड़ा था और वहां से वो जीतकर संसद पहुंचे थे।
‘अटल बिहारी टैग स्टेटमेंट को स्पीकिंग शेयर’
6 दिसंबर, 1992 को जब विधानसभा का मुख्यमंत्री गिरा तो उस वक्त संसद का सत्र चल रहा था। 7 दिसंबर को संसद में जब अटल बिहारी अटकलों के बयान देने के लिए सदन में मौजूद शरद यादव और राम विलास पासवान ने खूब टिप्पणी की। तब चंद्रशेखर उठे और उन्होंने यादव शरद-राम विलास पासवान को डांटने के अंदाज में कहा कि पोर्ट्रेट जी को स्पीकिंग शेयर करें। शरद यादव चंद्रशेखर को अध्यक्ष जी कहते थे। और भी जनता दल के सभी नेता चंद्रशेखर को अध्यक्ष जी ही कहते थे।
तो शरद यादव ने कहा कि अध्यक्ष जी आप इस मुद्दे पर मत बोलिए। आप इस बीच मत पड़िए। चंद्रशेखर और शरद यादव के बीच बात इतनी बिगड़ी कि चंद्रशेखर ने कहा कि यही बात 12 दिसंबर को बोलकर दिखाओ तो तुम पीढ़ियां गुंडागर्दी भूलने की धारणाएं। आज सुबह से बाहर निकलकर शरद यादव ने चंद्रशेखर से जोक भी मांग ली थी।
हालांकि आज की राजनीति में ऐसा होना बहुत मुश्किल है। और ये बहुत मुश्किल है कहने कि हां, मुझे पार्टी चलाने के लिए कोई पांच लाख रुपये दिए गए तो वो मैंने रख लिए थे। विशेष जैन प्रसंग कांड में जब शरद यादव का भी नाम आया तो उन्होंने अपने बचाव के लिए किसी वकील को नहीं रखा।
शरद यादव ने सोलहवीं से इस्तीफा दे दिया और सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर कहा कि हां मुझे कोई पार्टी फंड के नाम पर पांच लाख देकर गया था तो वो पैसे मैं रखता था और आज भी सुप्रीम कोर्ट के गेट पर भी मुझे कोई पार्टी फंड के नाम पर पैसे तो मैं रखूंगा। ये बेबाकी थी शरद यादव की, जिन्होंने घोटाले के आरोप लगने के बाद भी उन्हें माना, लेकिन बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इस घोटाले को खारिज कर दिया।
जनता दल के अध्यक्ष बने शरद यादव
करिट स्कैट में जब बिहार के नंबर लाल यादव खराब तरह के हो गए। तब उन्हें लगा कि अब उलझन के अलावा कोई विकल्प नहीं है। तो लालू ने फिर जनता दल के सामने प्रस्ताव रखा कि भले ही उनकी अध्यक्षता छोड़ दी जाए, लेकिन अध्यक्ष उन्हें ही रहने दिया जाए लेकिन शरद यादव माने नहीं। और 1997 के लिए जनता दल के अध्यक्ष के चुनाव में शरद यादव अध्यक्ष चुने गए। शरद यादव को इसका खामियाजा भी मोटा हो गया है।
शरद यादव ने ली अपनी आखिरी सांसें
1998 के विधानसभा चुनाव में मधेपुरा से लालू यादव ने उन्हें चुनाव में मात दे दी। हालांकि 1999 में शरद यादव ने लालू यादव को मधेपुरा से हरा दिया और खुद फिर से सांसद बन गए। इसके बाद वोटिंग सरकार में मंत्री बनें। जेडीयू और बीजेपी के साथ आई तो वो एनडीए के कमिश्नर बन गए और जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी. 2017 में जब निकुंक कुमार महागठबंधन से अलग बीबीसी के साथ गए तो शरद यादव ने इसका विरोध किया। और नतीजा यह हुआ कि उन्हें जदयू से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।
उन्होंने अपनी पार्टी डेमोक्रेटिक जनता दल भी बनाया, जिसका बाद में आर.जे.डी के साथ विलय कर दिया। 2019 में मधेपुरा से लोकसभा चुनाव हारने के बाद शरद यादव राजनीतिक अवसान की तरफ चले गए और 12 जनवरी, 2023 को उन्होंने गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में अपनी आखिरी सांस ली।