भारतीय संविधान के 73 वर्ष: विश्व के पटल पर दशा और निखरते भारत की मूल बुनियाद 26 जनवरी 1950 को तय हुई, जब संविधान सभा के तैयार किए गए संविधान को अपने ऊपर लागू किया गया। इसी फैसले के साथ ही भारतीय संविधान दुनिया का सबसे बड़ा संविधान लिखा गया।
इस संविधान की खास बात यह है कि इसकी शुरुआत हम लोगों से होती है, जहां देश के सभी नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक, वैचारिक, धार्मिक स्वतंत्रता होगी। सभी नागरिकों से संविधान ने वादा किया कि वह प्रतिष्ठा और अवसर की समानता भी प्रदान करेगा। इसके साथ ही ये किताब, सिर्फ संविधान नहीं हो रही है, बल्कि भारत की तकदीर बन गई है, जिससे सभी प्रश्नों को राजशाही मिलती है।
आयरलैंड से भारत के नीति निदेशक तत्व हैं, राष्ट्रपति के निर्वाचन की व्यवस्था ली है, और उनके राज्यसभा में मनोनीत किए जाने वाले 12 सदस्य भी हैं। हम आपको इसके बारे में विस्तार से जुड़ते हैं।
नीति निदेशक क्या होते हैं
किसी भी आजाद देश को बनाने के लिए दो यूनिट बहुत जरूरी हैं, पहला मूल अधिकार (मौलिक अधिकार) और दूसरा राज्य के नीति निदेशक तत्व (निर्देशक सिद्धांत)। नीति निदेशक तत्व ही यह निर्धारित करते हैं कि एक देश कल्याण राज्य होगा या नहीं।
ब्रिटेन से मित्रता मिलने के बाद आयरलैंड ने जब अपना संविधान बनाया तो उसने अपने संविधान में सबसे पहले नीति निदेशक तत्वों को स्थान दिया। भारत के संविधान सभा और अध्यक्ष बाबा साहेब भी इन नीति निदेशक तत्वों से प्रभावित हुए और उन्होंने भारत के संविधान में शामिल करने का निर्णय लिया।
भारत के संविधान के लेखे 36 से लेकर 51 तक राज्य के नीति निदेशक तत्वों के बारे में जानकारी दी गई है। भारत के संविधान की नीति के निदेशक तत्वों को किसी देश के किसी भी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है।
भारत के संविधान के नीति निर्देशक तत्व क्या है?
भारत के पहले नीति निदेशक तत्व के अनुसार भारत एक कल्याणकारी देश होगा, यानी वह अपने नागरिकों की आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक स्थिति की बेहतरी के लिए कानून और निर्णय करेगा।
समान कार्य के समान धन: नीति निदेशक तत्वों के अनुसार, भारत एक देश के रूप में महिलाओं, पुरुषों और समाज के बाकी हिस्सों की भलाई के लिए बिना किसी भेदभाव के काम करेगा और गठबंधन करेगा। जिनमें महिलाओं और पुरुषों को समान काम के लिए समान वेतन दिया जाता है और बच्चों को एक उम्र से पहले काम पर नजर नहीं रखी जा सकती है।
समान न्याय: भारत के नीति निदेशक तत्व के अनुसार देश के सभी नागरिकों को न्याय का अधिकार होगा और उनके अधिकार बिना किसी भेदभाव के दिए जाएंगे।
हर गांव में पंचायतों का निर्माण : नीति निदेशक तत्व के अनुसार राज्य इसके लिए कदम उठाएंगे कि वह हर गांव में ग्राम पंचायतों का गठन करे और उनकी ऐसी शक्तियां और अधिकार दे कि वह स्व-शासन की छोटी इकाइयों के रूप में काम कर सके।
सार्वजनिक : सहायता निदेशक तत्व के अनुसार, राज्य, अपनी आर्थिक क्षमता और सीमाओं के भीतर विकास, रोजगार के अधिकार को सुरक्षित करने की नीति के प्रावधान बनाने की बात कर रहा है। वह शिक्षा, रोजगार, वृद्धावस्था और बीमारी के मामलों में सार्वजनिक सहायता के लिए प्रावधान करता है।
न्यूनतम वेतन की सीमा : राज्य के नीति निदेशक तत्वों के अनुसार राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि वह अपने सभी नागरिकों के लिए सुरक्षित, उपयुक्त कानून या आर्थिक संगठन या किसी अन्य तरीके से उसकी अक्षमता से काम करने वाले लोगों को निष्पक्ष वेतन निश्चित रूप से देगा।
सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता: राज्य के नीति निदेशक तत्वों के अनुसार राज्य का प्रयास होगा कि वह सभी नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता बनाए।
पिछड़े, कमजोर तबकों को बढ़ावा देना : राज्य की नीति के निदेशक तत्वों के अनुसार राज्य अपनी धीमी, कमजोर नागरिकों की सामाजिक, आर्थिक और दृश्यता के लिए विशेष ध्यान देंगे। वह जाति, जनजाति और अन्य कमजोर शैक्षणिक और आर्थिक पूर्वाग्रहों को बढ़ावा देने का काम करेगा।
सरकार और ब्यूरोक्रेसी से अलग होगी न्यायपालिका : राज्य की नीति के निदेशक तत्वों के अनुसार राज्य न्यायपालिका को स्वतंत्र रखने के लिए काम करेंगे। वह सरकार, राज्य की सार्वजनिक सेवाओं को ब्यूरोक्रेसी से अलग-अलग रूप में लेती है।
अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देंगे : राज्य के नीति निदेशक तत्वों के अनुसार भारत दुनिया भर में अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देना, देशों के बीच न्यायोचित और एक-दूसरे के संबंध बनाए रखना, एक दूसरे के साथ अंतरराष्ट्रीय कानून और संधि के दायित्वों को पूरा करना और कार्यकाल को जारी रखेंगे।
गणतंत्र के 73 साल: क्या है भारत के संविधान का राजनीतिक दर्शन?