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- नई दिल्ली
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर व्लादिमीर ने यूक्रेन युद्ध के लिए पश्चिमी देशों को दोषी करार दिया है।
मंगलवार को कहा, “मैं इस बात को दोहराना चाहता हूं कि युद्ध के दायित्व और गुनगार वो लोग हैं और हम इसे रोकने के लिए ताकत महसूस कर रहे हैं।”
स्पॉटलाइट ने ये भाषण दिया है कि यूक्रेन युद्ध को एक साल पूरा होने को है। रूस ने पिछले साल 24 फरवरी को यूक्रेन पर हमला किया था। सोलर ने मंगलवार को एक बार फिर इस अभियान को ‘स्पेशल ऑपरेशन’ बताया।
रूस की राजधानी मॉस्को में मौजूद बीबीसी संवाददाता विल वेरनॉन के अनुसार मतदाताओं के भाषणों की बातें थीं। उन्होंने रस को ‘पीड़ित’ के तौर पर पेश किया
उन्होंने सभी को कवर किया और बाद में कहा कि रूस अमेरिका के साथ अहम परमाणु हथियार समझौते को निलंबित कर रहा है।
‘न्यू स्टार्ट’ नाम की इस संधि में परमाणु सीमाओं की अधिकतम संख्या की सीमा तय करने के साथ परमाणु संयंत्रों की जांच की अनुमति देना शामिल था।
रूस के राष्ट्रपति ने चेतावनी दी है कि अगर अमेरिका परमाणु परीक्षण करता है तो रूस भी इसे दोबारा शुरू कर देगा। अमेरिका ने हाल में दावा किया था कि रूस ने जांच की इजाजत देने से इनकार करते हुए संधि का उल्लंघन किया था।
प्रत्यक्ष ने यूक्रेन की सेना की ओर से खेरसोन शहर से रूसी सैनिकों को बाहर खदेड़े जाने का कोई जिक्र नहीं किया।
रूस की राजधानी मॉस्को में मौजूद वरिष्ठ पत्रकार विनय शुक्ल ने बीबीसी से कहा कि पूरी दुनिया रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर के भाषण को ध्यान से सुन रही थी. हर कोई जानना चाहता था कि आगे क्या होगा?
जेनयू के प्रोफेसर संजय पांडेय भी मानते हैं कि मंगलवार के भाषण के जरिए लोग दुनिया भर के लोगों के सामने अपना पक्ष रख रहे थे।
पांडेय ने बीबीसी से कहा, “मिन्पुट का भाषण अपनी जनता के लिए था। ये अमेरिका और नेटो के लिए था और बाकी दुनिया के लिए भी था। ये बताने के लिए कि इस युद्ध के लिए जिम्मेदार रूस की नहीं है, ये अमेरिका और नेटो जिम्मेदार कि नौबत यहां तक आई.”
चिंता का मामला
रूस के अमेरिका के साथ परमाणु संधि को लेकर प्रोफेसर पांडेय दुनिया के लिए चिंता का मामला मानते हैं।
वो कहते हैं, “इससे अमेरिका पर कोई दबाव नहीं पड़ता, ऐसा नहीं लगता लेकिन (संधि की वजह से) जो संतुलन बना था, वो अब नहीं रहा। जाहिर है कि रूस के संसाधन सीमित हैं, उन्होंने इस संधि को निलंबित कर दिया है , ऐसे में धीमी की नई दौड़ शुरू हो सकती है, ये चिंता का विषय है।”
इलेक्ट्रोलाइट ने यूक्रेन युद्ध के लिए पश्चिमी देशों को कठघरे में खड़ा किया। रूसी राष्ट्रपति के इस दावे पर प्रोफेसर पांडेय की राय है कि उन्हें पूरी तरह से गलत नहीं ठहराया जा सकता है।
प्रोफेसर पांडेय कहते हैं, “अमेरिका और नेटो के सदस्यों में एक तरह का रूसोफोबिया हो रहा है। ये शीतयुद्ध का दौर है, जो आगे बढ़ता जा रहा है। वर्ना 90 के दशक में जब रूस सोवियत संघ से निकला था और पूरी तरह से पश्चिम की ओर के साथ मिलने को तैयार था और उनकी जैसी ही राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्था की बात कर रहा था, उस दौरान नेटो के प्रसार की बात करना, उसके लिए क्या मायने रखता है।”
वो आगे कहते हैं, “फरवरी 1997 में अमेरिकी चिंतक जॉर्ज केनन ने न्यूयॉर्क टाइम्स के अपने दस्तावेज़ में कहा था कि नेटो का प्रसार बहुत नासमझ होगा। इससे रूस में धुर राष्ट्रवाद बढ़ेगा। लोकतंत्र पीछे जाएगा। 26 साल पहले एक अमेरिकी राजनीतिक चिंतक कह रहा था था कि नेटो का प्रसार नासमझ है और ये बात पश्चिम अमेरिका को समझ में नहीं आ रही थी।”
‘घर में बढ़ा समर्थन’
वरिष्ठ पत्रकार विनय शुक्ला का कहना है कि यूक्रेन को लेकर अमेरिका और नेटो की नीति की वजह से रूस में लोगों की सोच बदल रही है।
वो कहते हैं, “अब लोगों की सोच बदल गई है। पहले लोग सोचते थे कि बिना किसी कारण के बर्बाद हो गए (युद्ध शुरू) हो गए, घटनाएं आगे बढ़ने के बाद लोग सोचते हैं कि उनके (पुतिन के) तर्कों में जान गए हैं। मेरे कुछ उदारवादी दोस्त भी हैं, जो शुरू में अलग राय रखते थे, उन्होंने अपने बच्चों को बाहर भेज दिया था लेकिन अब वो लोगों के पक्ष में आ गए हैं।”
शुक्ला आगे कहते हैं, “अमेरिका और नेटो के प्रयासों से (रूस के) लोगों की एकता बढ़ी है।”
भारत की क्या भूमिका होगी
हालांकि, वो मानते हैं कि इस घटना से दुनिया की व्यवस्था में कोई बड़ा बदलाव नहीं आएगा।
शुक्ला कहते हैं, “अभी तो अफरा तफरा की स्थिति है। इसके बीच चीन और रूस का गुटका ऐसा नहीं है। बहुध्रुवीय दुनिया का सवाल नहीं है। दुनिया में दो ही ध्रुव होंगे। एक तरफ अमेरिका होगा और दूसरी तरफ चीन होगा।” “
वो आगे कहते हैं, “भारत, रूस और बाकी देश अपनी क्षमता के मुताबिक भूमिका निभाएंगे।”
इस मामले में प्रोफेसर संजय पांडेय की राय अलग है।
वो कहते हैं, “आगे कौन सी व्यवस्था सामने आएगी ये कहना मुश्किल है। रूस और चीन तो एक साथ ब्रेक दिख रहे हैं। भारत सहित जी 20 के कई देश हैं, जिनमें इंडोनेशिया, सऊदी अरब और तुर्की शामिल हैं। ये देश इन दोनों में से किसी पक्ष के साथ पूरी तरह से रुकना नहीं चाहते।”
पांडेय कहते हैं, “आगे विश्व क्रम क्या होगा, इसमें इन देशों की भूमिका क्या होगी, ये अभी नहीं कहा जा सकता है। जो देश तटस्थ रहना चाहते हैं और अपनी स्वतंत्र विदेश नीति बनाना चाहते हैं, वो कहते हैं कि हम अपनी सोच और अपने राष्ट्रीय आधार पर अपनी नीति तय करेगी।”
पांडेय की राय में भारत की भी यही सोच दृष्टि है।
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