<पी शैली ="टेक्स्ट-एलाइन: जस्टिफ़ाई करें;"> पिछले साल यानी साल 2022 में शुरू हुए रूस यूक्रेन युद्ध ने दुनिया के ज्यादातर देशों को दो हिस्सों में बांट दिया है। इन दो हिस्सों में जहां रूस लगभग अकेला है वहीं यूक्रेन के साथ देने के लिए अमेरिका के अगुआई में नाटो और यूरोप के कई देश शामिल हैं।
यूरोप के कई देशों को लगता है कि उन्हें इन दो देशों को लेकर दिए जाने वाले किसी भी तरह के फैसले और बयानों को बहुत ही सोच समझ कर देना चाहिए। ताकि किसी से भी छोटी गलती के कारण यूरोप एक और विश्व युद्ध की आग में ना झुलसे। लेकिन उन्होंने हाल ही में एक ऐसा बयान दिया जिसने रूस को भड़का दिया और रूस नेपोलियन की याद में यह आरोप लगाया कि वे दोहरे द्विपक्षीय अपना रहे हैं।
क्या कहा मैसारिक ने कहा
दरअसल दिन रविवार यानी 19 फरवरी को फ्रांस के राष्ट्रपति एमैनुअल मैजर ने कहा था कि वह रूस को हारते देखना चाहते हैं। इस बयान से भड़के रूस ने फ्रांस पर दोहरे ग्लोब का आरोप भी लगाया। रूस ने कहा कि नेपोलियन बोनापार्ट को फ्रांस फिर से याद कर ले और वही दोहरा सकता है।
मैक्रो ने फ्रांस के एक स्थानीय पेपर ली जर्नल डू डिमांचे में कहा था कि फ्रांस चाहता है रूस यूक्रेन में तो हार जाएं लेकिन वह कभी नहीं चाहता है कि उसे बुरी हार मिले। रूस के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मारिया जाखारोवा ने कहा, ‘मुझे ऐसा लगता है कि फ्रांस के राष्ट्रपति दोहरा राजनयिक अपना रहे हैं। उन्हें नेपोलियन बोनापार्ट का काम याद नहीं है, लेकिन पूरी दुनिया को जरूर याद है। उन्होंने नेपोलियन का उल्लेख इसलिए किया, क्योंकि नेपोलियन ने 1812 में रूस पर हमला किया था। नेपोलियन इस युद्ध में बुरी तरह हारे थे।
1812 में नेपोलियन ने 6 लाख सैनिकों को लेकर रूस पर चढ़ाई की। इसका स्पष्ट उद्देश्य ब्रिटेन की आर्थिक नाकाबंदी के लिए रूस को राज करना था। उस वक्त रूस में शासन कर रहे जार अलेक्जेंडर-1 ने ऐसे स्ट्रैटजी अपना के नेपोलियन भी गच्चा खा गए।
मॉस्को के जीतने के बाद भी नोपोलियन रूस जीत नहीं पाया। रूस में इतनी सर्दी थी कि 4 दिसंबर 1812 को नेपोलियन केवल 95,000 सैनिकों को लेकर फ्रांस वापस लौटा। नेपोलियन के इस जिद की वजह से फ्रांस में 5 लाख से ज्यादा सैनिकों को गिरना पड़ा।
आखिर नेपोलियन ने रूस पर हमला क्यों किया?
नेपोलियन ने रूस को वर्ष 1807 में दूसरी बार हराया था। इस लड़ाई को बैटल ऑफ फ्रीडलैंड के नाम से जाना जाता है। इसके बाद रूस के जार अलेक्जेंडर-1 के साथ नेपोलियन ने तिलसिट की संधि की। जिसमें तय किया गया था कि दोनों एम्पायर मुश्किल की घड़ी में एक दूसरे का साथ देंगे।
इस संधि में दोनों देशों के विशेष तौर पर ब्रिटेन की आर्थिक नाकेबंदी में साथ देना था। हालांकि इस धारणा से रूस की अर्थव्यवस्था को काफी नुकसान पहुंचेगा। यही कारण था कि वर्ष 1810 में जाह्न अलेक्जेंडर-1 ने नेपोलियन के साथ मिलकर तिलसिट की संधि को तोड़ दिया और ब्रिटेन के साथ खुले तौर पर व्यापार करने के लिए मजबूर हो गए।
इस समझौते के टूटने पर नेपोलियन नाराज हो गए और दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ने लगा। फ्रांस और रूस के बीच इतना तनाव बढ़ गया कि बातचीत की पूरी कोशिश नाकाम हो रही है। आख़िरी जून 1812 में नेपोलियन ने अपनी ग्रैंड आर्मी के 6,00,000 सैनिकों को रूस पर कब्जा करने के लिए भेज दिया।
आक्रमण सफल क्यों नहीं हुआ?
उस ज़बरदस्त नेपोलियन की योजना थी कि 20 दिनों के बाद रूस पर कब्जा कर लिया जाए। नेपोलियन ने कहा था कि वह अलेक्जेंडर को जानता है। अलेक्जेंडर इतनी बड़ी सेना को देखेंगे सरेंडर कर देंगे, लेकिन ऐसा नहीं होता है तो भी ब्रिटेन की नफरत से रूस को कुचल दिया जाएगा।
‘द ब्रिटिश आर्मी एजेंट नेपोलियन: फैक्ट्स, लिस्ट्स और ट्रिविया 1805- 1815’ के लेखक रॉबर्ट बर्नहैम के अनुसार नेपोलियन इस युद्ध को जीतने के लिए अपने सैनिकों को पहले प्रमुख स्थानों पर कब्जा करने और फिर दुश्मनों को नष्ट करने की अपनी समान रणनीति पर भरोसा करते हैं, लेकिन जब ग्रैंड आर्मी रूसी क्षेत्र में पहुंचती है तो जाह की सेना काफी पीछे हट गई।
जिसके कारण नेपोलियन की सेना को बहुत लंबी दूरी तय की गई। लंबी दूरी के कारण सेना के पास भोजन और अन्य साजोसामान की कमी हो गई है।
बर्टो बर्नहैम का दावा है कि रूसी सैनिकों की यह रणनीति बहुत हद तक साबित हुई है। वहीं दूसरी तरफ रूसी सेना ने खाने से पहले ही पीछे हट गए और सभी गंभीर दुर्घटनाएं जलाकर नष्ट कर दी थीं। इसके चलते नेपोलियन की सैनिक भूख, थकान और डायरिया जैसी बीमारियों से जकड़न लग गई। वे और भी बीमार सैनिक बीमारी और थकावट के कारण अस्पताल में भर्ती हो गए थे। जब फ्रांस पहुंचने के बाद जार ने कुछ हप्तों तक नेपोलियन की बातचीत का जवाब नहीं दिया तो फ्रांसीसी एम्परर ने अपने सैनिकों को वापस फ्रांस लौटने का आदेश दिया।
एक महीने बाद यानी अक्टूबर के बीच में फ्रांसीसी सेना स्वदेश लौटा उसी वक्त मास्को में काफी सर्दी शुरू हो गई। उस समय का तापमान माइनस 22 डिग्री सेलियन हो गया था। इस वजह से फिश साइन की ठंड से मौत होने लगी। बर्नहैम ने अपनी किताब में लिखा है कि दिसंबर की शुरुआत में जब नेपोलियन की सेना का पोलैंड पहुंचा था, तब तक 6 लाख सैनिकों में से सिर्फ 95 हजार सैनिक बच गए थे।
इस हार का नेपोलियन पर क्या असर पड़ा? रूस और ब्रिटेन ने इसमें प्रमुख भूमिका निभाई थी। रूस से नेपोलियन की हार के बाद वर्ष 1813 में ऑस्ट्रिया, प्रशिया, रूस, स्पेन, ब्रिटेन, पुर्तगाल, स्वीडन और जर्मनी ने फ्रांस के खिलाफ युद्ध का ऐलान किया। 1814 में पेरिस को घसीटा गया और नेपोलियन ने अपना गद्दी से हाथ खींचा। नेपोलियन को एल्बा नाम के जजीरे पर कैद कर लिया गया और फ्रांस के गुग्गी लुई 16वें स्थान पर पहुंच गए। उसने कैद में रहते हुए भी फ्रांस पर रुके टिकाई रखी और 1815 में वो कैद से भाग निकला और पेरिस पहुंच गया। इसके बाद उन्होंने अपने सिद्धांतों को अपने पाले में करने के लिए संविधान में कई बदलाव किए।
हालांकि 1815 में एक बार फिर यूरोप के कई देशों ने मिलकर नेपोलियन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। नेपोलियन ने जून में बेल्जियम पर हमला किया और 18 जून को वाटरलू की लड़ाई में ड्यूक ऑफ वेलिंगटन ने उसे हरा दिया। इसके बाद में नेपोलियन रिकॉर्ड में ही रहे। ब्रिटेन ने उसे दक्षिणी अटलांटिक स्थित सेंट हेलेना द्वीप पर रखा था। वहां उन्होंने 6 साल अकेले गुजारे और साल 1821 में पेट के कैंसर से नेपोलियन की मौत हो गई।
पिछले एक साल से रूस यूक्रेन युद्ध चल रहा है
रूस और यूक्रेन के बीच शुरू युद्ध को पूरा एक साल हो जाता है। यह युद्ध पिछले साल 24 फरवरी 2022 को दोनों देशों के बीच शुरू हुआ था। और ये जंग अभी भी जारी है। वर्तमान में ऐसी स्थिति है कि कोई भी देश पीछे हटने को तैयार नहीं है।