- विकास पाण्डेय
- बीबीसी संवाददाता
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भारत पिछले कुछ वर्षों से खुद को ‘ग्लोबल साउथ’ से विकसित देशों के रूप में उभरने की कोशिश कर रहा है।
इस दिशा में भारत को G-20 सम्मेलन की अध्यक्षता करने से बेहतर अवसर नहीं मिल सकता था।
दुनिया के 19 सबसे अमीर देश और यूरोपीय संघ का वैश्विक आर्थिक उत्पादन 85 को तोड़ता है जबकि इन देशों में दुनिया की लगभग 66 अलग-अलग आबादी रहती है।
इनमें से कई देशों के विदेश मंत्री भारत की राजधानी नई दिल्ली में एक दूसरे से मुलाक़ात कर रहे हैं। आज भारतीय विदेश मंत्री ने ब्रिटेन समेत कई जी-20 देशों के कई मंत्रियों से मुलाक़ात की है।
यूक्रेन युद्ध का साया
लेकिन इन मुलाक़ातों में भारत को जिस तरह का एकॉर्ड होने की उम्मीद है, उन पर यूक्रेन युद्ध का साया स्पष्ट दिख रहा है।
पिछले साल इंडोनेशिया के बाली में जी-20 देशों के नेताओं की मुलाक़ात के दौरान ही रूस ने यूक्रेन के मुख्य ठिकानों पर ताबड़तोड़ मिसाइल हमले किए थे।
इसके बाद जारी किए गए साझा बयानों में भी स्पष्ट रूप से दिखाई दिया कि भारत, रूस और चीन इस आक्रमण की फ्रैंक स्पष्ट शब्दों में निंदा करने पर सहमति नहीं थी।
इस मामले में अब तक कुछ भी बदला नहीं है। युद्ध अभी भी जारी है। और शांति वार्ता शुरू होने के संकेत अब भी नहीं मिल रहे हैं। दुनिया अभी भी इस मुद्दे पर बंटी हुई है।
और कई बड़ी कंपनियां अभी भी इस जंग की चपेट में हैं।
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प्लॉट भरी वार्ताएं
इस हाल में देखें तो ये हैरानी वाली बात नहीं थी कि जी-20 देशों के वित्त मंत्री पिछले दौरे के दौरे में मिलने के बाद एक साझा बयान जारी नहीं कर सकते।
रूस और चीन ने एक साझा बयान के उन हिस्सों पर आपत्ति जताते हुए किसी रूसी आक्रमण की सराहना के शब्दों में निंदा की गई थी।
आख़िर में भारत को मीटिंग के प्रेसिडेंट होने के रिश्तेदार प्रेसिडेंट बॉन्ड जारी करना पड़ा जिसमें उसने यूक्रेन के मुकदमों पर सदस्यों के बीच विदेश उपस्थिति की बात दर्ज की।
इस बुधवार और गुरुवार को होने जा रही विदेश मंत्री स्तर की वार्ताओं से भी इन करोड़ का सामना करना पड़ सकता है।
विल्सन सेंटर थिंक टैंक के उप-निदेशक माइकल कुगेलमन कहते हैं, “भारत जी-20 सम्मेलन की अध्यक्षता को ग्रेविटास से लेकर जा रहा है। ऐसे में वह सभी प्रयास कर रहा है कि किसकी नियुक्ति को इस बैठक में सफल बनाया जा सके। लेकिन यूक्रेन इन प्रयासों का इन सभी प्रयासों पर वर्चस्व बना रहेगा।”
भारत उन मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना चाहता है जो विकासशील देशों के लिए अधिक विवरण और अहम हैं।
भारत ने एजेंडे में व्युत्पत्ति परिवर्तन, विकसित देशों पर बढ़ते कर्ज, डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन, व्यापक कवरेज और खाद्य एवं ऊर्जा सुरक्षा को शामिल किया है।
कई उद्योग अभी भी जोखिम और युद्ध की वजह से निश्चितता से निपटने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
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भारतीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के साथ रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर व्लादिमीर
पीएम मोदी का जादू होगा
विशेषज्ञ मानते हैं कि दिल्ली को इतनी शानदार रणनीति का इस्तेमाल करना होगा कि जी-20 देशों का समूह यूक्रेन युद्ध से आगे देख सके।
लेकिन उन मुद्दों पर समझौता होना संभव है जिन पर सीमा का दायरा नहीं है।
इस बंध से भारत इस दावे होने वाली वार्ताओं के रिकॉर्ड में सितंबर में होने जा रही शीर्ष नेताओं की बैठक के लिए माहौल तैयार करने की दिशा में काम शुरू करेगा।
पूर्व भारतीय राजनयिक जितेंद्र नाथ मिश्र कहते हैं, “भारत एक ऐसा आरोप तैयार करने की मांग करेगा जो किसी को पूरी तरह से निर्णय न करे लेकिन सभी को स्वीकार हो। लेकिन ऐसा करना आसान नहीं होगा। क्योंकि इस युद्ध के दोनों ओर देशों के समूह ने खड़ा किया है।” पिछले कुछ महीनों में रूख पहले से सख़्त ही हुआ है।”
इस मामले में भारत के रूख की भी आलोचना की जा रही है। भारत ने सीधे तौर पर रूस की निंदा करने से परहेज किया है। भारत और रूस के संबंध काफी पुराने हैं। और यूक्रेन युद्ध के दौरान भारत ने आलोचनाओं के बीच रूसी तेल खरीद जारी रखा है।
शुरुआत में पश्चिमी देशों को भारत की गुट-निरपेक्ष नीति पसंद नहीं आई थी। लेकिन अब ऐसा लगता है कि इसे लेकर एक तरह की समझ दिख रही है।
भारत ने सीधे तौर पर भले ही रूस की निंदा न की हो लेकिन यूक्रेन पर दिए गए बयानों में भारत ने यूएन चार्टर, अंतरराष्ट्रीय कानून और राज्यों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करने की बात कही है।
पीएम नरेंद्र मोदी ने शंघाई सहयोग संगठन कॉन्फ्रेंस के दौरान जो बयान दिया था, उसे रूस की ओर से निर्देश के रूप में देखा गया था।
पीएम मोदी ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर व्लादिमीर की मौजूदगी में कहा था – ‘ये युद्ध करने का दौर नहीं है।’
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रूस पर भारत के रुख में बदलाव?
कुगेलमन मानते हैं कि इस बात की गुंजाइश कम है कि भारत जी-20 के दबाव में आने के दौरान रूस को लेकर अपने रुख में सख़्ती लकीरें।
उनका कहना है कि चीन और भारत के संबंधों में बर्फ जमने की वजह से सीमा विवाद है। वहीं, अमेरिका और चीन के बीच स्पाई बैलून विवाद के चलते नए स्तर का तनाव देखने को मिल रहा है। और रूस और पश्चिमी देशों के बीच संबंध सबसे पहले खंगालते हैं।
ऐसे में जब दिल्ली में विरोधी हर तरह के शीर्ष राजनयिक मिलेंगे तो माहौल का रिश्ता कायम है।
विशेषज्ञ कहते हैं कि पीएम मोदी और विदेश मंत्री एस जयशंकर को अपने राजनयिक कौशल और निजी संबंधों के दम पर इस सम्मेलन के उद्देश्यों को समूह देशों के आपसी प्रतिद्वंद्विता से बचाना होगा।
कुगेलमन कहते हैं, “भारत प्रतिद्वंदियों के साथ अपने संबंधों को संतुलित रखने की क्षमता पर गर्व करता है। लेकिन जी-20 देशों के बीच इस समय जिस स्तर की कड़वाहट और भू-राजनीतिक तनाव है, उस झुका से भारत को काफ़ी मेहनत करनी होगी। लेकिन भारत ने पहली बार यह भी दिखाया है कि वह एक साथ कई भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के साथ तालमेल बिठाने में सक्षम है।”
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पीएम मोदी के नेतृत्व में भारत सरकार ये बताती है कि काफ़ी निवेश कर रही है कि जी-20 सम्मेलन लोकतंत्र को जन्म देने वाले देश में हो रहा है।
वह ये दिखाने की कोशिश करेंगी कि वह दुनिया में भारत की स्थिति को मजबूत करने में सक्षम हैं, खासकर तब से जब अगले साल भारत में आम चुनाव होते जा रहे हैं।
मिश्रित कहते हैं, “भारत सरकार अपनी पूरी कोशिश कर रही है कि जी-20 देशों की बैठकें पूरे देश में हों ताकि लोगों को जी-20 सम्मेलन के बारे में पता चल सके। ये सारे प्रयास अच्छे हैं। लेकिन इन प्रयासों से भारत की मूल समस्या हल नहीं हो सकती जो अपनी महत्वाकांक्षाओं को युद्ध के प्रभाव से बचाना है।”
कुगेलमन के मुताबिक, भारत खुद को विकसित और विकसित देशों के बीच की कड़ी के रूप में देखता है और जी-20 सम्मेलन की अध्यक्षता के लिए एक मिडिल पावर की भूमिका निभाना चाहता है।
वे कहते हैं, “अब हमारे पास एक ऐसा नेता है जो भारत को विश्व के चार्ट पर वैश्विक नेता के रूप में स्थापित कर सकता है। और वे जी-20 को इससे जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं।”
लेकिन उनका कहना है कि भारत के सामने एक बड़ी और स्पष्ट चुनौती कैसे है कि वह ज्वलनशील मसलों को उन मुद्दों से दूर कैसे रखता है जिन पर एकॉर्डर होना संभव है।
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