- रजनीश कुमार
- बीबीसी संवाददाता
दुनिया भर के 20 उद्योग जगत वाले देशों के विदेश मंत्री गुरुवार को नई दिल्ली में जत्थे थे।
भारत की डिप्लोमैसी के लिए यह परीक्षा की तरह थी कि इस बैठक का अंत सबकी सहमति से एक साझे अभिभाषकों के साथ हो। लेकिन यूक्रेन संकट के कारण ऐसा नहीं मिला।
इस साल भारत की अध्यक्षता में जी-20 देशों के मंत्रियों की यह दूसरी बैठक थी।
दोनों अधूरे समय में रूस और चीन को साझे बयानों पर सहमति नहीं मिली है। इस बार भी रूस और चीन के बयानों के बारे में दो पक्षों से सहमति नहीं थी।
इन दोनों पैरों में यूक्रेन पर रूस के हमले की बात थी। भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा कि यूक्रेन संकट पर यही बात कही गई थी जो पिछले साल इंडोनेशिया के बाली में हुए जी-20 समिट में कही गई थी।
बागची ने कहा कि बाली डिकलेरेशन का इरादा था लेकिन रूस और चीन तैयार नहीं थे।
भारतीय विदेश मंत्री सुब्रमण्यम जयशंकर ने बैठक से अलग अमेरिकी, चीनी और रूसी विदेश मंत्री से मुलाक़ात की थी ताकि एक साझे जमा पर सहमति बन सके।
लेकिन यूक्रेन युद्ध के कारण बैठक बुरी तरह से बंटी हुई दिखी। चीन और रूस के विदेश मंत्री को भारत सेज कंजेंस के लिए सहमति में विफलता।
जयशंकर ने इस बात को भी स्वीकार किया कि यूक्रेन युद्ध के कारण जी-20 में एकता टिकने के लिए जूझ रही है।
वर्ष 2023 के लिए जी-20 की अध्यक्षता में भारत वैश्विक नेता और उभरती हुई शक्ति बनने के अवसर के तौर पर ले रहा है।
भारत की कोशिश थी कि वह यूक्रेन संकट में पश्चिम और रूस के बीच सेतु का काम करे और साथ ही ग्लोबल साउथ के मामलों की तरह उभर रहा है। ग्लोबल साउथ में मुख्य रूप से दुनिया के गरीब और विकसित देश सामने आते हैं।
मोदी का ग्लोबल साउथ
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को जी-20 के विदेश मंत्री की बैठक की आगाज किया था।
पीएम मोदी ने इस बैठक को संदेश देते हुए कहा था, ”पिछले कुछ वर्षों का अनुभव है कि वित्तीय संकट, विनाश परिवर्तन, महामारी, आतंक और युद्ध को लेकर वैश्विक व्यवस्था नाकाम हो रही है.”
“हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि इस नाकामी का खामियाजा जुड़े हुए देश हैं। यूक्रेन युद्ध के कारण वैश्विक पराथी लोग हैं, लेकिन ये अच्छा होगा कि जी-20 में आएं विदेश मंत्री आपसी मतभेदों को संबंध दें।”
कई आँकड़े कहते हैं कि भारत को दुनिया के मंच पर ग्लोबल साउथ की आवाज़ बनाने की कोशिश कर रहा है।
लेकिन यूक्रेन पर रूस के हमलों के कारण जब दुनिया बुरी तरह से बंटी है, ऐसे में भारत क्या ग्लोबल साउथ की आवाज़ बन सकता है? कई लोग इसे भारत के लिए मौक़े के तौर पर भी देख रहे हैं। कहा जा रहा है कि भारत पश्चिम और रूस के बीच समझौते की भूमिका भी मंजूर कर सकता है।
वैश्विक स्थिति थिंक टैंक रैंड कॉर्पोरेशन में इंडो पैसिफिक के एनालिटिक्स डेरेक ग्रोसमैन ने लिखा है, ”मैं वाक़ई यह उठाता हूं कि भारत के पास अच्छा मौका है कि वह रूस और पश्चिम के बीच बातचीत। भारत ऐतिहासिक रूप से किसी अन्तरराष्ट्रीय गुट में नहीं रहा है। भारत की गुटनिरपेक्षता रेटिंग है। इस वजह से भारत एक अनुबंध की भूमिका निभा सकता है।”
साझे बयान पर भले सहमति नहीं बनी लेकिन नई दिल्ली में रूस और अमेरिका के विदेश मंत्री की मुलाक़ात हुई।
पिछले साल 24 रेटिंग को यूक्रेन पर रूस ने हमला किया था और तब से दोनों देशों के विदेश मंत्री की यह पहली मुलाक़ात थी। अमेरिकी न्यूज़ नेटवर्क सीएनएन से रूसी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मारिया ज़ज़रोवा ने इस मुलाक़ात की पुष्टि की थी। कहा जा रहा है कि दोनों विदेश मंत्री के बीच मुलाक़ात 10 मिनट तक चली थी लेकिन कोई बात नहीं बनी थी।
रूस के यूक्रेन पर हमले का यह दूसरा साल जारी है। इस दौरान भारत का रुख संतुलनवादी रहा। लेकिन भारत पर भी दबाव बढ़ रहा है कि वह यूक्रेन संकट में कोई ठोस रुख अपनाए. पिछले साल उज्बेकिस्तान के पीएम मोदी ने जब रूसी राष्ट्रपति ने कहा था कि यह युद्ध का दौर नहीं है तो इस टिप्पणी को पश्चिम के नेताओं ने हाथ उठाया था।
क्या भारत की कूटनीतिक विफलता है?
भारत में इस साल जी-20 के दो शेयरों में सहमति पर सहमति नहीं बन पाई है कि मोदी सरकार की कूटनीतिक नाकामी क्या है?
इस सवाल के जवाब में भारत में पाकिस्तान के उच्चायुक्त रहे अब्दुल बासित ने लिखा है, ”मैं नहीं हटा रहा हूं कि शेयर बयान जारी नहीं होना भारत की कोई राजनयिक नाकामी है। वास्तव में G-20 समिट राजनीतिक विषयों पर चर्चा के लिए नहीं था। भारत अपने फायदे के लिए दोनों हर तरफ से रहेंगे।”
कई देशों में भारत के डिप्लोमैट रहे सुरेंद्र कुमार मानते हैं कि जब G-20 के तीन ताकतवर देश अमेरिका, रूस और चीन से चैप्टर पर नहीं हैं।
सुरेंद्र कुमार कहते हैं, ”अमेरिका और यूरोप को भारत इस बात के लिए मना नहीं कर सकता कि वह यूक्रेन पर रूस की बात मान ले और रूस को भी मना नहीं कर सकता कि वह युद्ध खत्म कर दे।”
एक और दो मार्च को जी-20 के विदेश मंत्री की बैठक में 40 देशों के प्रतिनिधि आए थे। भारत के विदेश सचिव विनय मोहन क्वात्रा ने कहा था कि यह जी-20 के विदेश मंत्री की अब तक की सबसे बड़ी बैठक थी।
पिछले साल बाली में जी-20 की बैठक के बाद शेयर बयान जारी हुआ था। जी-20 की बाली बैठक के साझे नेताओं में भी यूक्रेन पर रूसी हमलों को लेकर भाषा सख़्त थी लेकिन तब रूस और चीन आपत्तिजनक नहीं थे।
भारत ने भी सहमति बनाने में मदद की थी। अब वही रूस और चीन बाली वाले बयान को ही भारत में नकार रहे हैं।
सुरेंद्र कुमार का मानना है कि बाली से दिल्ली आते-आते बदल गए हैं। सुरेंद्र कुमार कहते हैं, ”अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन 20 रेटिंग को अचानक यूक्रेन पहुंचे थे. इससे रूस बहुत नाराज है। बाली के लिए बाइडन यूक्रेन नहीं गए थे। घने लगातार बदल रहे हैं और भारत हर चीज को नियंत्रित नहीं कर सकता है।”
क्या भारत ग्लोबल साउथ की सोच बन सकता है?
जी-20 के विदेश मंत्री की बैठक में पीएम मोदी और विदेश मंत्री एस जयशंकर दोनों ग्लोबल साउथ यानी पहुंच देशों की बात की।
भारत जी-20 बैठक को यूक्रेन संकट में खपने नहीं देना चाहता है। भारत की कोशिश है कि कभी-कभी ऊर्जा की सुरक्षा और जीवों में परिवर्तन पर भी बात हो।
इसी साल भारत ने 12 और 13 जनवरी को ‘वाइस ऑफ द ग्लोबल साउथ समिट’ का स्थान बनाया था। भारत ने इसमें 120 देशों को आमंत्रित किया था।
यह समिट था। इसमें बांग्लादेश के प्रधानमंत्री शेख हसीना और श्रीलंका के राष्ट्रपति रनिल विक्रमसिंघे सहित दुनिया और बड़े नेता शामिल थे।
इस स्मिट की अध्यक्षता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की थी। चीनी मीडिया में तब छपी थी कि इस बैठक में चीन को आमंत्रित नहीं किया गया था। चीन के अलावा पड़ोसी देश पाकिस्तान और जी-20 के एक और सदस्यों को भी नहीं बुलाया गया था।
चीनी अख़बारों में यह भी लिखा है कि चीन को भारत ने बुलावा नहीं दिया है, यह संदेश देने की कोशिश की है कि भारत विकसित दुनिया का नेता बनना चाहता है।
सात जनवरी को भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने जी-20 की अध्यक्षता में भारत के पास आने के बाद कहा था, ”आज की तारीख़ में तैयार देश तेल, खाद्य सामग्री और जानकारी की बढ़ती क़ीमतों से परेशान हैं। तय देशों पर बढ़ने वाले क़र्ज़ और ख्रीस्त अर्थव्यवस्था से भी चिंताएं बढ़ रही हैं। ऐसे में हमारा काम है कि हम ग्लोबल साउथ की संभावना बनाएंगे।”
भारत के पास जी-20 की प्रस्तुति ग्लोबल साउथ के ही देश इंडोनेशिया से आई है। भारत भी ग्लोबल साउथ का ही देश है। 2024 और 2025 में जी-20 की अध्यक्षता क्रमशः पत्राचार और दक्षिण अफ्रीका के पास होगी।
ये दोनों देश भी ग्लोबल साउथ के ही हैं। जब दुनिया के शक्तिशाली देशों के बीच टकराव चरम पर है, वैसे में G-20 की प्रस्तुति ग्लोबल साउथ के देशों के पास है। इस टकराव के कारण डर है कि जी-20 में बाकी के मुद्दों पर छूट नहीं दी जाएगी। जी-20 की अध्यक्षता भले ही इस साल भारत के पास है लेकिन बाकी के अहम नामांकन में भारत के पास कोई निर्णायक शक्ति नहीं है।
संयुक्त सुरक्षा राष्ट्र परिषद, आईएमएफ अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक में भारत का कोई प्रगतिशील हस्तक्षेप नहीं है। पिछले साल यूक्रेन यूक्रेन और रूस युद्ध की छाया से जी-20 की बैठक को स्वीकार किया जा सका।
रूस का अडंगा?
अब यही चुनौती भारत के सामने है कि वह G-20 में सहमति कैसे बनाए। जी-20 में भारत की उम्मीद रूस और चीन पर भी बहुत हद तक कायम रहेगी। चीन के साथ भारत के संबंध ठीक नहीं हैं और यूक्रेन पर हमले के बाद कहा जा रहा है कि रूस और चीन को कर्ज मिल रहा है? ऐसे में भारत इससे कैसे विवरण होगा?
तीन मार्च को नई दिल्ली में रायसीना डायलॉग में रूसी विदेश मंत्री सेर्गेई लावरोफ़ से यही पूछा गया कि चीन और रूस की दोस्ती से भारत और रूस की दोस्ती कैसे प्रभावित हो रही है?
इस सवाल के जवाब में लावरोफ़ ने कहा था, ”हम किसी के ख़िलाफ़ कभी दोस्त नहीं बनाते हैं. रूस के चीन से भी शानदार संबंध है और भारत से भी सबसे करीबी संबंध है। भारत और रूस के नेताओं ने जिन दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए हैं, उनमें से यह दावा किया गया है कि दोनों देशों के बीच सामरिक संबंध हैं। भारत के साथ जो संबंध है, वह किसी और के साथ नहीं है। भारत के साथ हर क्षेत्र में संबंध है। रूस चाहता है कि भारत और चीन दोस्त रहें. हम इसके लिए प्रयास भी कर रहे हैं। हमारे पूर्व येवगेनी प्रिमाकोव ने एरिक-रशा-इंडिया-चीन बनाया था। फिर मैंने ब्रिक्स मेड किया। अब ब्रिक्स का विस्तार हो रहा है। भारत अब एसएसआईओ का भी सदस्य है।”
रूस अगर भारत और चीन को साथ लाना चाहता है तो जी-20 की बैठक में साझे अभिमत पर सहमति बनाने में मदद क्यों नहीं की? क्या रूस भारत में जी-20 की स्थिति में अड़ंगा लगा रहा है?
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में मध्य एशिया और रूसी अध्ययन केंद्र में असोसिएट प्रोफेसर अमिताभ सिंह कहते हैं, ”बाली से दिल्ली आ-आते कई बार बदल गए हैं। अमेरिका ने चीन के ‘जासूसी नज़र’ को गिराया जो चीन को संसद नहीं आया और अमेरिका में चीनी ‘जासूसी चश्मा’ को धारण करना प्रशासन को पसंद नहीं आया। “
“इसके अलावा यूक्रेन और रूस के बीच शांति प्रस्ताव लेकर आया है। चीन नहीं चाहता कि रूस और यूक्रेन में शांति की शुरुआत में भारत की कोई भूमिका हो। दूसरी ओर पश्चिम क़तई नहीं चाहता कि चीन की कोई मध्य हो।”
अमिताभ सिंह कहते हैं, ”रूस अपने खिलाफ किसी प्रस्ताव पर सहमति नहीं दे सकता. जहां तक बाली की बात है तो बाली से लावरो नाराज होकर चले गए थे। उनके जाने के बाद प्रस्ताव पास हो गया था।”
“भारत को उम्मीद थी कि रूस साझे अभिमत पर सहमति बनाने में मदद करेगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ। रूस ने पूरी तरह से असहयोग दिखाया। यूक्रेन युद्ध के बाद रूस की क़रीबी चीन से दी है इसलिए भारत के लिए और मुश्किल स्थिति हो गई है। भारत रूस से उम्मीद है तो करता है लेकिन रूस के साथ चीन आएगा तभी वह भारत को मदद करेगा। मुझे लगता है कि भारत के लिए जी-20 की अध्यक्षता की चुनौती और बढ़ गई है।’
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