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दुनिया भर के 200 देशों के बीच एक समझौता हुआ है। जिसका नाम हाई सी ट्रीटी है। ये समझौता 20 साल के विचार विमर्श के बाद हुआ है। बताया जा रहा है कि इससे जीव जंतु के संरक्षण में अहम योगदान मिलेगा। समुद्र में आज भी लाखों वस्तु निवास करती है, लेकिन वर्षों से जुड़ी गतिविधियों की वजह से समुद्र और इसकी जैव विविधता को काफी नुकसान पहुंचता है।
अब उम्मीद जा रही है कि हाई सी ट्रीटी से समुद्र और समुद्री जीव- जंतु को सुरक्षा मिलेगी। लेकिन सवाल ये उठता है कि इस एकॉर्ड को अंतिम रूप देने में इतना समय क्यों लगा, इस एकॉर्ड में पूरी दुनिया के देश क्यों शामिल हुए, क्या धरती पर पालन देशों की तरह समुद्र की भी मानदंड होते हैं, कुल मिलाकर कहें तो ये होंगे कि सही समुद्र में कौन सा कानून काम करता है और इस संधि के बाद क्या कुछ बदलेगा। . आईये इन प्रश्नों के उत्तर जानने की कोशिश करते हैं। हो रहा है। ऐसे संबंध से मिलने के लिए संयुक्त राष्ट्र सालों से कोशिश कर रहा था कि वह सदस्य देशों को एक साथ लाकर इस खतरे से निपटने का उपाय करें। हाई सी ट्रीटी हो जाने के बाद अब कहीं जा कर संयुक्त राष्ट्र की इस परीक्षा को हासिल किया जा सकता है। देशों के बीच इस संधि को लेकर बीस साल से बातचीत हो रही थी। न्यूयार्क स्थित संयुक्त राष्ट्र के मुख्यालय में 38 घंटे तक विचार-विमर्श के बाद ये देश ‘हाई सीज ट्रीटी’ के लिए राजी हुए।
इस संधि के तहत वर्ष 2030 तक विश्व के 30 प्रतिशत महासागरों को संरक्षित किया जाएगा। साथ ही, संधि के अंतर्गत महासागरों में मौजूद समुद्री जीव-जंतुओं, वनस्पतियों, निशानों की सुरक्षा और उन्हें नया जीवन देने की भी कोशिश होगी। जिसके लिए संधि में शामिल सभी देश अपनी राष्ट्रीय सीमाओं से अन्य एक-दूसरे को संकेतेंगे।
5 हजार से अधिक समुद्री प्रजातियों पर मंडरा रहा है खतरा
खतरे में बताई गई चीजों के बारे में बताएं के लिए इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर यानी आईयूसीएन समय-समय पर आंकड़े जारी करते हैं। . खतरों में शामिल होने के लिए आईयूसीएन एक रेड लिस्ट जारी करता है। जारी किए गए इस सूची के अनुसार 5,652 समुद्री जीवों के अस्तित्व पर गहरा संकट मंडरा रहा है।
ये बात सभी देशों को इसलिए और भी ज्यादा परेशान करती है क्योंकि समुद्र बहुत विशाल और गहरा है। ऐसे में अभी ऐसी लाखों समुद्री संभावनाएं हो सकती हैं रविवार को हमें जानकारी ही न हो। ऐसे में ये संधि काफी ऐतिहासिक व्यक्ति जा रही है।
हाई सीज का मतलब क्या होता है और इसे रहस्यमयी क्यों माना जाता है
खुला समुद्री क्षेत्र बाई समुद्र का वो क्षेत्र जो किसी देश की सीमाओं के खत्म होने के बाद शुरू होता है। अमूमन ये क्षेत्र देश के तट से 200 समुद्री मील तक होता है। इसे ही हाई सीज कहा जाता है। यूं समझ लें कि पृथ्वी का आधा भाग ‘हाई सीज’ को कवर करता है.हाई सीज यानी खुला समुद्र जिसका उपयोग कोई भी देश कर सकता है , फिर चाहे वो समुद्री क्षेत्र उस देश के तट से लगता हो या ना भी लगता हो.  ;
परेशान करने वाली बात ये है कि इसका अभी महज 1.44 प्रतिशत हिस्सा ही महफूज है। इसी क्षेत्र में कई उग्र जीवों का प्राकृतिक आवास है। अभी भी इंसानों को इस क्षेत्र के बारे में बहुत ही कम जानकारी है इसलिए इसे याद रखा जाता है। अवैध तरीके से मछली पकड़ना, खनन, तेल और गैस उत्खनन, जमीन से प्रदूषण, हैबिटेट लॉस ऐसे कई कारण हैं जो आज वजह से उच्च सीज के लिए खतरे बढ़ रहे हैं।
अभी तक इस संधि के रास्ते में सबसे बड़ी रुकावट सदस्य देशों में फंडिंग की जिम्मेदारी और फिशिंग के अधिकारों को लेकर सहमति नहीं बन पाती थी। इसलिए जब दो दशक के बाद पहली बार ये देश ‘हाई सीज’ में जैवविविधता के संरक्षण के लिए इतनी बड़ी संधि पर सहमत हुए तो संयुक्त राष्ट्र ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व के लिए यह एक ऐतिहासिक अवसर बन गया है।
कैसे तय होते हैं समुद्र के दायरे में
सैकड़ों सालों तक, समुद्र के नियम और कानून से मुक्त था। लेकिन नशे के साथ तटीय देशों में राष्ट्रीय सुरक्षा और अपनी पारिस्थितिकी और समुद्री संसाधनों को लेकर पानी बढ़ता गया। नतीजतन, नेविगेशन की स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए एक संतुलन की आवश्यकता आवश्यक है। 10 दिसंबर, 1982 वो दिन बना जब समुद्र के कानून पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन ने अपना दस्तखत किया।
इसका मकसद समुद्र के कानून को अंतरराष्ट्रीय कानून से जोड़ रहा था। 1994 में 60 और देश इस पर सहमत हुए। 21वीं सदी से 150 से ज्यादा देशों ने इस कानून को सही माना और इसमें शामिल हुए। यही एक अंतरराष्ट्रीय समझौता है जिसके तहत महासागरीय महासागरों पर देशों की जिम्मेदारी और उनके अधिकारों को तय किया जाता है। इसी कानून के तहत किसी भी देश के अधिकार एक विशेष समुद्री क्षेत्र में लागू होते हैं।
इस कानून के तहत ही हाई सी ट्रीटी समझौता हुआ है। इसमें समुद्र के हिस्सों को तीन घटकों में जोड़ा गया है। प्रथम प्रादेशिक सी. इस आतंकवाद से संबंधित देश का पूरा अधिकार है। इसमे 12 समुद्री मील का एक क्षेत्र आता है। इसे आप ऐसे समझ सकते हैं भारत के समुद्र से 12 समुद्री मील तक भारत के नियम और कायदे कानून लागू होंगे। ठीक यही कानून दूसरे देशों पर भी लागू होता है।
दूसरा जोन कॉन्टिग्स जोन है। ये क्षेत्र बेसलाइन जोन से 24 समुद्री मील यानी 44. 44 किलोमीटर तक का एरिया कवर करता है। इसके तहत भारत 44. 44 किलोमीटर तक समुद्र में बिजनेस करता है, कस्टम ड्यूटी और क्लियर-सफाई की जिम्मेदारी लेता है। ऐसा लगभग सभी देशों में है।तीसरा जोन एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक जोन है। इसके तहत 200 नॉटिकल यानी 379 किलोमीटर तक सभी संबंधित देशों को प्राकृतिक संसाधनों की खोज करना, वैज्ञानिक प्रयोग करने की आजादी है।
‘ब्लू इकोनॉमी’ को कैसे बढ़ाएंगे ये टोटी< /p>
ये तांत समुद्री जीवों के अलावा देशों को आर्थिक रूप से भी सूचित कर सकते हैं। इसे ऐसी समझ है कि अफ्रीका महाद्वीप के आसपास के समुद्रों में पूंजी और तकनीकी खर्च काफी अधिक है। किसकी मदद से वो अपने विशेष आर्थिक क्षेत्र (इलेक्ट्रिक जेड) यानी अंतरराष्ट्रीय महासागरों से भी मछली पकड़ते हैं। अगर ये देश कानून से बंधे होते तो वे ऐसा नहीं कर सकते थे। इसी तरह चीन और कुछ यूरोपीय देश भारत के एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक जोन से मछलियां पकड़ते आए हैं।
ऐसे में हाई सी ट्रीटी हमारे एसईजेड यानी एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक जोन के भीतर और बाहर मछली पकड़ने के लिए नियम एक तय करें देश की नीली इकोनॉमी को बढ़ावा मिलेगा। ये संधि देश में राजनीतिक राज्य सुरक्षा लाने में भी मदद कर सकती है। जैसे हिंद महासागर में चागोस द्वीप समूह को मौजूदा समय में ब्रिटिश ओसियन क्षेत्र का हिस्सा माना जाता है।
इसके पानी को निवेश प्रिजर्व और समुद्र के पूरे हिस्से को सुरक्षा माना जाता है। क्षेत्र में होना भी इसे खास बनाता है। इस समुद्र के आस-पास के इलाकों में अमेरिकी सैन्य अड्डे बनाए गए हैं। मछुआरे के लिए भी ये समुद्र मुख्य आकर्षण का केंद्र है। इनमें से सभी को देखते हुए ब्रिटेन और श्रीलंका के बीच हाल ही में हुई एक संधि के बाद चागोस द्वीप समूह में निगरानी बढ़ी।
कई मछुआरे इसी तरह समुद्र से लुप्त होने के दुर्लभ शार्क मछलियां भी पकड़ते हैं। ऐसे में हाई सी तड़ी समुद्र में से मछली पकड़ने के लिए जाने वाले जहाजों पर रोकटोकोंगी। यानी इस संधि की मदद से अलग-अलग देशों को एक-दूसरे के क्षेत्र में आने से पहले बातचीत करने की जरूरत है।
आने वाले समय में इस संधि के तहत हाई सीज और इसमें आने वाले सक्रिय जीवन को संरक्षित करने के लिए एक निकाय का गठन किया जाएगा। इसके अलावा समय-समय पर इसकी जांच करने के लिए टीम बनाई जाएगी। इसका मकसद यह पता लगाना होगा कि व्यावसायिक गतिविधियों से समुद्र को क्या-क्या नुकसान हो रहा है।
इस नुकसान को कैसे कम किया जा सकता है। संधि समुद्री जैविक प्रकृति, जैसे पौधे, पदार्थ, जीव-जंतु, औषधियां, माइक्रोब्स वगैरह से आने वाले रहस्यों के बंटवारे को भी अलग-अलग देशों के बीच तय अधिकार। कई जानकारियां अभी भी इस संधि को नाकाफी मान रहे हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह है संधि के तहत खुले समुद्री क्षेत्र का विशाल आकार।
संधि में शामिल देशों के पते तौर पर कम से कम दस मिलियन वर्ग किलोमीटर ‘संरक्षित समुद्री क्षेत्र यानी एमपीए’ की देखभाल की आवश्यकता होगी। परेशानी की दूसरी वजह ये है कि एमपीए में संरक्षण के लिए, संधि कुछ महासागरीय क्षेत्रों में मानवीय गतिविधियों को सीमित करने की बात करती है। जानकार इस बात पर भी चिंता जा रहे हैं कि ये तड़ी सागरों और महासागरों से जरूरत से ज्यादा मछली पकड़ना, शिकार करना और गहरे समुद्री खनन से बचाने में कितनी बांधना सिद्ध होगा।
गहन समुद्री खनन में कोबाल्ट, मैग्नीज, जमा और कई संपत्तियों का आवंटन किया जाता है। हालाँकि अभी तक किसी के व्यवसाय का लाइसेंस नहीं दिया गया है, लेकिन ये जाहिर है कि कई देश इन खनन पर अपनी नजर बनाए हुए हैं। आने वाले वक्त में ये देश इन खनन का मील जरूर उठा लेंगे। सभी देशों को अपने-अपने देश की संसद से छुट्टी लेनी होगी, तभी ये तड़ी अमल में लाई जा सकती है। इसे लागू करने के लिए कम से कम साठ देशों को ट्रीटी को अपनाना जरूरी होगा। यह साफ है कि इसमें अधिक समय लगता है। वहीं खुले समुद्र संरक्षित मित्र करना भी आसान नहीं होगा। ये अनुमान आकलन थोड़ा मुश्किल है कि गहरे खनन से पर्यावरण पर क्या असर पड़ता है।