- दिलनवाज़ पाशा
- बीबीसी संवाददाता
भारत ने शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के अप्रैल में होने जा रहा सम्मेलन के लिए पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ को भी निमंत्रण भेजा है। भारत ने अन्य सदस्य देशों को भी न्योता दिया है।
ओएससी के विदेश मंत्री के हो सकता है गोवा में होने जा रहे सम्मेलन के लिए भारत ने पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो ज़रदारी को न्योता दिया है।
हालांकि पाकिस्तान ने अभी तक दोनों मंत्रियों के भारत में सम्मेलन में हिस्से लेने की पुष्टि की पुष्टि नहीं की है।
ओएससी में भारत और पाकिस्तान के अलावा चीन, रूस, किर्गिस्तान, कज़ाख़स्तान, ताजिकिस्तान और उज़्बेकिस्तान के सदस्य हैं। आठ देशों के संगठन एससीओ का मौजूदा राष्ट्रपति भारत है।
पाकिस्तान के रक्षा मंत्री अगर भारत आते हैं तो ये आपके लिए एक दुर्लभ मौका हो सकता है क्योंकि इससे पहले पाकिस्तान के रक्षा मंत्री एक बार ही भारत आए थे।
बीबीसी बात करते हुए सैन्य परिमाण के इतिहासकार सिंह बाजा कहते हैं, “पाकिस्तान के रक्षा मंत्री पहले कभी भारत नहीं आए थे। खुले एक बार भरा हुआ समझौते के वक्त जून 1972 में जुल्फिकार अली भुट्टो भारत आए थे, उस समय वो राष्ट्रपति थे और उनके पास थे रक्षा मंत्रालय भी था। इसके अलावा पाकिस्तान का कोई रक्षा मंत्री कभी भारत नहीं आया।”
मंदी बाजवा उम्मीद करते हैं कि पाकिस्तान के रक्षा मंत्री इस सम्मेलन में आ सकते हैं।
वो कहते हैं, “ये पाकिस्तान को तय करना है कि एससीओ उनके लिए कितना अहमियत रखता है, अब तक वो एससीओ को अहमियत देते हैं, ऐसे में मुझे लगता है कि वो अपने रक्षा मंत्री को भारत भेजेंगे।”
पाकिस्तान और भारत के बीच राजनयिक संबंध पूरी तरह पुराने हैं। ऐसे में ये सवाल उठ सकता है कि क्या पाकिस्तान को लेकर भारत का नजारा बदल रहा है?
भारत के न्योते के क्या मायने हैं?
श्रृंगार को लगता है कि ऐसा नहीं है। मनोहर पर्रिकर इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस में यूरोप एंड यूरेशिया सेंटर के एसोसिएट फेलो डॉक्टर स्वास्ति राव कहते हैं, “भारत सरकार पाकिस्तान पर बिलकुल भी नहीं पड़ रही है, भारत अपनी अंतरराष्ट्रीय साझेदारी शुरू कर रहा है।”
स्वास्ति राव कहते हैं, “पाकिस्तान के साथ भारत के अपने मुद्दे हैं। ये अनुसूची मुद्दे हैं लेकिन भारत एससीओ की अध्यक्षता कर रहा है, ऐसे में उसके बहुउद्देश्यीय उद्देश्यों को आगे बढ़ाने का निर्णय है। इसी के तहत पाकिस्तान को न्योता भेजा गया है। “
राव दावे कर रहे हैं, “शंघाई कॉर्पोरेशन संगठन भारत की बहुपक्षीय वरीयता को चित्रित करता है। चाहे ही भारत के पाकिस्तान से अभी भी रिश्ते बहुत अच्छे ना हों, लेकिन एससीओ सम्मेलन के लिए पाकिस्तान को बुलाना भारत की प्राथमिकता है।”
ओएससी के घोषित उद्देश्यों में एक आतंकवाद के खिलाफ फ्रैंचाइजी भी बना रहा है। इसी के लिए एससीओ की एक स्थायी संरचना है जिसे रैट्स (रीजनल एंटी टेररिज्म स्ट्रक्चर) कहते हैं। भारत ने इस पर हस्ताक्षर किए हैं और पाकिस्तान ने भी.
भारत में होने जा रहे एससीओ सम्मेलन में क्षेत्रीय सुरक्षा, अफगानिस्तान के मामले और आतंकवाद से जुड़े मुद्दों पर चर्चा हो सकती है।
स्वास्ति राव कहते हैं कि “अफगानिस्तान के हालात और क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए देशों की बात करना जरूरी है। अफगानिस्तान में अपनी नीति फेल होने के बाद भी पाकिस्तान बड़ा स्टेकहोल्डर है और अपनी भौगोलिक स्थिति की वजह से भी महत्वपूर्ण है, ऐसे में अगर अफगानिस्तान या तालेबान को लेकर कोई चर्चा होती है तो इसमें शामिल पाकिस्तान को सुना जाना चाहिए।”
स्वास्ति राव कहते हैं, “भारत बहुपक्षीय शेयरिंग में एकसमान भी बहाल करना चाहता है। भारत ये भी दिखा रहा है कि पाकिस्तान से उसकी जो प्रजातियां हैं वो अलग हैं और बहुपक्षीय शेयरिंग के लिए शर्त अलग है।”
पाकिस्तान की राजनीति पर सेना का भी प्रभाव पड़ रहा है। पाकिस्तान में कई मामलों में सेनानायक के फ़ैसले प्रधानमंत्री और सरकार पर भी हावी हो जाते हैं। ऐसे में ये सवाल भी उठता है कि पाकिस्तान के रक्षा मंत्री को क्या बुलाना काल्पनिक है?
घटप बाजवा कहते हैं, “पाकिस्तान में रक्षा मंत्री का बहुत प्रभाव नहीं है। वहां बड़े जजमेंट सेनाध्यक्ष ही करते हैं। कई मामलों में पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष के प्रधान मंत्री से भी आगे बढ़ते हैं। भुट्टो के बाद कभी कोई बड़ा ताक़तवर नेता पाकिस्तान का रक्षा मंत्री नहीं हो रहा है। ऐसे में भारत को अगर सुरक्षा के मामले पर बात करनी है तो पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष को चाहिए।”
संबंध पटरी पर आने का मौका?
इस तरह के कॉन्फ्रेंस में सिर्फ लीडर्स के मिलने का ही नहीं बल्कि मोर्चों पर बातचीत शुरू होने का भी मौका होता है।
स्वास्ति राव कहते हैं, “अगर पाकिस्तान के रक्षा मंत्री भारत आते हैं तो इस बैठक के दौरान कुछ और बातें भी हो सकती हैं।”
पाकिस्तान और भारत के बीच मंत्री की यात्रा हम नहीं कर रहे हैं। इससे पहले आख़िरी बार पाकिस्तान की विदेश विदेश मंत्री हिना रब्बानी ख़ास 2011 में भारत आईं थीं।
पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ 2014 में नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण में शामिल हुए थे। 2015 में भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज दो दिन के दौरे पर पाकिस्तान गईं थीं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी दिसंबर 2015 में अचानक पाकिस्तान आ गए थे।
मंदी बाज़वा कहते हैं, “भारत और पाकिस्तान के बीच मंत्री के दौरे बहुत कम हुए हैं। वर्ष 1965 में युद्ध के तुरंत बाद पाकिस्तान के सम्मान मंत्री राणा अब्दुल हमीद भारत के गणतंत्र दिवस परेड में मुख्य अतिथि थे। वहीं भारत के प्रतिष्ठा सेन सम्मान फ़ील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ ने भी युद्ध बंदियों के मुद्दों पर चर्चा के लिए 1971 में पाकिस्तान का दौरा किया था।”
भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध खत्म हो गए हैं। सेंट्रीमेंट 2019 में समझौते में हमले के बाद से दोनों देशों के बीच रिश्ते में आई तलखी भारत के जम्मू-कश्मीर के विशेष संवैधानिक स्तर को समाप्त करने के बाद बढ़ा दी गई है।
पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मंचों से कश्मीर का मामिला रहा है जबकि भारत इसे अंतरराष्ट्रीय मुकदमों के दो देशों के बीच का दौरा दिखाई देता है।
विश्लेषक मानते हैं कि अगर पाकिस्तान के मंत्री भारत आते हैं तो इससे बातचीत के नए पहलू ज़रूर खुलेंगे।
स्वास्ति राव कहते हैं, “भले ही भारत अपनी अंतरराष्ट्रीय और बहुपक्षीय संभावनाओं के चलते पाकिस्तान को आमंत्रित कर रहा है, लेकिन ये दोनों देशों के बीच बात शुरू करने का एक मौका ज़रूर है। हां, भारत की इस बात को लेकर सोच हमेशा स्पष्ट कर रही है है कि जब तक पाकिस्तान आतंकवाद के मुद्दों का समाधान नहीं करता है, तब तक दोनों देशों के बीच कोई सार्थकता वार्ता नहीं होगी।”
एससीओ क्या है?
अप्रैल 1996 में शंघाई में चीन, रूस, कज़ाख़स्तान, किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान में एक बैठक हुई, आपस में एक दूसरे के नस्लीय और धार्मिक तनाव से निपटने के लिए सहयोग करने पर सहमत हुए।
तब इसे शंघाई-फाइव के नाम से जाना जाता था।
वास्तविक रूप से एससीओ का जन्म 15 जून 2001 को हुआ। तब, चीन रूस और चार मध्य एशियाई देशों कज़ाख़िस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और उज़्बेकिस्तान के नेताओं ने शंघाई सहयोग संगठन की स्थापना और नस्लीय और धार्मिक चरमपंथ से समझौता और व्यापार और निवेश को बढ़ाने के लिए समझौता किया।
इस संगठन का उद्देश्य नस्लीय और धार्मिक अतिपंथ से समझौता और व्यापार-संयोजन बढ़ाना था। एक तरह से एससीओ अमेरिकी प्रभुत्व वाले नेटो का रूस और चीन की ओर से जवाब था।
हालांकि, 1996 में जब शंघाई इनिशिएटिव के तौर पर इसकी शुरुआत हुई थी तब ये ही उद्देश्य था कि मध्य एशिया के नए मुक्त देशों के साथ मिलकर रूस और चीन की सीमाओं पर कैसे तनाव रोकें और धीरे-धीरे किस तरह से उन सीमाओं को सुधार करें और उनका फॉर्म भरें।
ये मकसद तीन साल में ही हासिल कर लिया गया। इसकी वजह से ही इसे काफ़ी प्रभावी संगठन माना जाता है. अपने उद्देश्य को पूरा करने के बाद उज़्बेकिस्तान को संगठन में जोड़ा गया और 2001 से एक नए संस्थान की तरह शंघाई को-ऑपरेशन संगठन का गठन किया गया।
वर्ष 2001 में नए संगठन के उद्देश्य से बदले गए। अब इसका अहम मक़सद बिजली से जुड़े मुद्दों पर ध्यान दिया गया है और आतंकवाद की पैरवी की गई है। ये दो मुद्दे आज तक बने हुए हैं। शिखर वार्ता में इन पर लगातार बातचीत होती है।
ओएससी और भारत
भारत वर्ष 2017 में एससीओ का पूर्ण सदस्य बना। पहले (2005 से) उन्हें पर्यवेक्षक देश का स्तर प्राप्त हुआ था। 2017 में एससीओ की 17वीं शिखर बैठक में इस संगठन के विस्तार की प्रक्रिया के तहत एक महत्वपूर्ण चरण के तहत भारत और पाकिस्तान को देश का स्तर दिया गया। इसके साथ ही इसके सदस्यों की संख्या आठ हो जाएगी।
वर्तमान में एससीओ के आठ सदस्य चीन, कज़ाख़स्तान, किर्गिस्तान, रूस, तज़ाकिस्तान, उज़्बेकिस्तान, भारत और पाकिस्तान हैं। इसके अलावा चार ऑब्जर्वर देश अफगानिस्तान, प्रवासन, ईरान और मंगोलिया हैं।
छह डायलॉग सहयोगी आर्मेनिया, अज़रबैजान, कंबोडिया, नेपाल, श्रीलंका और तुर्की हैं। ओएससी का मुख्यालय चीन की राजधानी बीजिंग में है।