- सौतिक विश्वास और राजू गोसाईं
- बीबीसी संवाददाता
उत्तराखंड के जोशीमठ में रहने वाले 52 साल प्रकाश भोयल की दो जनवरी की सुबह एक तेज आवाज के साथ नींद खुली।
भोयल ने लाइट ऑन करके अपने हाल में बने घर को चेक किया तो उनमें से 11 में नौ दरारें दिखाई दीं।
इसके बाद से भोतियाल का परिवार अपने घर के दो हिस्सों में रह रहा है, जहां सबसे कम दरारें हैं।
भोयाल कहते हैं, “हम देर रात तक जागते रहते हैं। छोटी सी आवाज़ हमें डराती है। जब हम सोने जाते हैं तब भी किसी भी काम के लिए तैयार रहते हैं।”
लेकिन भोतियाल और जोशीमठ में रहने वाले उनके जैसे दूसरे लोगों के लिए घरों से बाहर भी सुरक्षित नहीं हैं।
स्थानीय अधिकारी कहते हैं कि दो लोगों घाट के मिलने की जगह पर 6,151 फीट की ऊंचाई पर पहाड़ के किनारे बसे बीस हजार लोगों की आबादी वाले जोशीमठ शहर की जमीन धीरे-धीरे-धीरे धंस रही है
अब तक जोशीमठ की 4500 इमारतों में से 670 से ज्यादा इमारतों में दरारें पड़ी हुई हैं जिनमें एक स्थानीय मंदिर शामिल है।
गिरती दीवारों को संभालने की कोशिश
दो होटल झुककर एक दूसरे पर धंस गए हैं। और खेतों से पानी निकल रहा है जिसकी वजह अब तक साफ नहीं है।
स्थानीय प्रशासन अब तक इस शहर में रहता है।
केंद्र से लेकर राज्य स्तर की आपदा प्रबंधन टीमें जोशीमठ पहुंच चुकी हैं और जिम्मेदारी पर बचाव अभियान को अंजाम देने के लिए हेलीकॉप्टर मांगे गए हैं।
उत्तराखंड के प्रश्न पुष्कर सिंह धामी ने कहा है, “हमारी पहली प्राथमिकता जिंदगी बचाना है।”
लेकिन लोग यहां जिस तरह रहते हैं, उस सीढ़ी से ये काफ़ी मुश्किल लगता है।
52 साल दिहाड़ी मज़दूर दुर्गा प्रसाद सकलानी के तीन खुले वाले घरों में दरारें पड़ने के बाद प्रशासन ने उन्हें एक स्थानीय होटल में शिफ्ट कर दिया है।
लेकिन सकलानी दिन में अपने गायों को कर्ज़ जमा और खाना बनाने के लिए अपने खेत में समाते हुए घर लौट आते हैं।
सकलानी के परिवार ने अपनी गिरती दीवारों को संभालने के लिए लकड़ी के लट्ठे लगा दिए। सकलानी की पत्नी की हाल ही में एक स्थानीय क्लिनिक में सर्जरी हुई है। और परिवार को यह समझ नहीं आ रहा है कि वह उस छलनी से कैसे ठीक हो जाएंगे।
इस परिवार के सदस्य नेहा सकलाना बोलते हैं, “हम धीरे-धीरे-धीरे अपने घर को दिखाते हुए देख रहे हैं क्योंकि हर आंकड़ेते दिन के साथ दरारें चौड़ी होती जा रही हैं। ये देखने का भय है।’
मामूली के विवरण पर टिका जोशीमठ?
जोशीमठ पर इस बार जो संकट मंडरा रहा है, उस पर आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
जोशीमठ कुछ ऐसे ही भौगोलिक स्थिति में अस्तित्व में आया था। ये पूरा कस्बा एक पहाड़ की रजिस्ट्री पर कुछ सौ साल पहले आया था, जिसकी वजह से मलबे के मलबे पर टिका हुआ है। यही नहीं, ये ज़ब्त भूकंप प्रभावित क्षेत्र में भी आता है।
ऐसे में इस क्षेत्र की जमीं कई कारणों से धसक सकती है। ये पृथ्वी के फफोले में होने वाली गतिविधियों से लेकर भूकंप आदि शामिल होते हैं इस वजह से जमीन की ऊंचाई में बदलाव हो सकते हैं।
यही नहीं, भूगर्भीय जल के लगातार सूखने की वजह से ज़मीन की सतह के नीचे ठीक होने से धंस सकता है।
भूगर्भ शास्त्री मानते हैं कि भूगर्भीय जल प्रकाश के अति-दोहन से भी भूगर्भ धंस हो सकता है। इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता इसका उदाहरण है जो दुनिया के किसी दूसरे शहर से पूरी तरह से जमीन में समा रही है।
अमेरिकी जियोलॉजिकल सर्वे के मुताबिक, दुनिया भर में 80 अलग-अलग हिस्सों से ज़मीन भूगर्भीय जल के अति टैपन की वजह से धंस रही है।
जोशीमठ में जो कुछ हो रहा है, उसके लिए प्राथमिक रूप से अस्पष्ट जिम्मेवार नज़र आता है। पिछले कुछ दशकों में खेती के लिए काफ़ी ज़्यादा मात्रा में जल दोहन किया गया है जिससे यहाँ की ज़मीन कमज़ोर हो गई है। और मिट्टी नीचे जाने की वजह से ये पूरा कस्बा धंस रहा है।
क्यों दरक रहा है जोशीमठ?
भूगर्भ शास्त्री डीपी डोभाल इस स्थिति को काफ़ी चेतावनी देने वाले दावे हैं। साल 1976 में हुए एक अध्ययन में सामने आया कि जोशीमठ कस्बा जम में धंस रहा है। इस अध्ययन के बाद इस क्षेत्र में भारी निर्माण पर रोक लगाने का सुझाव दिया गया था।
इस अध्ययन में यह भी सामने आया कि जल निकासी की पर्याप्त व्यवस्था न होने से यहां दिखाई देने वाली घटनाएं सामने आ रही हैं। इसके साथ ही चेतावनी दी गई थी कि जोशीमठ लोगों के रहने के लिए उचित स्थान नहीं है।
लेकिन इन चेतावनियों पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया। पिछले कुछ दशकों में ये शांत सा कस्बा हज़ारों लोगों की आबादी वाला शहर बन गया है जहाँ लाखों पर्यटक दिखाई दे रहे हैं। बद्रीनाथ धाम और हेमकुंड साहिब जाने वाले तीर्थयात्रियों से लेकर अली में शिकार करने वाले लोगों को इस कस्बे से ठोकर मारना पड़ता है।
इस कस्बे के आसपास कई हाइड्रो-इलेक्ट्रिक पावर प्रोजेक्ट दिए गए हैं। बुनियादी स्थिति से लेकर चिंताओं को लेकर तैरने का जाल बिछाया गया है और सुरंगें बनाई गई हैं।
इस क्षेत्र में सबसे बड़ी चिंता का विषय तपोवन विष्णुगढ़ जलविद्युत परियोजना जिसकी खदाने जोशीमठ शहर की जमीन के नीचे स्थिर क्षेत्र हैं।
भूगर्भशास्त्री एमपीएस बिष्ट और पीयूष राजतेला ने वर्ष 2010 में क्लाइमेट साइंस में प्रकाशित अपने लेख में चेतावनी दी थी कि जोशीमठ पर एक बड़ा ख़तरा मंदरा रहा है।
सुरंग खोदने वाला की गलती?
भूगर्भशास्त्री रेखांकन करते हैं कि वर्ष 2009 के दिसंबर में सुरंग खोदने वाली मशीन ने एक भूगर्भीय जल स्रोत में छेद कर दिया था जिसकी वजह से प्रतिदिन 7 करोड़ लीटर पानी बहता रहा जब तक कि उसे रोक नहीं दिया गया।
फरवरी 2021 में बाढ़ आने से हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट की दो में से एक सुरंग बंद हो गई थी। इस हादसे में 200 से ज्यादा लोग घायल या लापता हो गए थे।
उत्तराखंड का जोशीमठ क्षेत्र अपने विशेष भौगोलिक पहलुओं, शामिल नदियां, पहाड़ और गहरे खाइयां में शामिल हैं, की वजह से एक कमजोर स्थलाकृति तैयार करता है।
ये राज्य पहले भी प्रकृतिक शिकार होता रहा है। इन झुग्गियों ने इस पूरे क्षेत्र में लगभग चार सौ लोगों को अस्वाभाविक रूप से संक्रमित कर दिया है।
आपदा प्रबंधन सुशील खंडूरी के एक अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2021 में उत्तराखंड में अचानक बाढ़ आने और हिमस्खलन (बर्फ की भारी मात्रा का तेज रफ़्तार से नीचे की ओर आना) से तीन सौ से अधिक लोगों की मौत हुई है।
खंडूरी के अनुसार, “इन घटनाओं के लिए अत्यधिक जोख़िमभरे क्षेत्रों में अंधाधुंध मानवीय गतिविधियों के साथ-साथ बारिश होने के तरीके और मौसम को मुख्य रूप से ज़िम्मेदारियाँ ठहराया जाता है।”
आज जोशीमठ में रहने वाले हैं. उनके घरों के जमीं में वैसे ही कितने धब्बे हैं…ज़मीन धंसने की प्रक्रिया काफ़ी धीमी हो सकती है।
किसी को पता नहीं चलता कि हर दशक में उनके घरों की ज़मीन कितनी इंच नीचे जा रही है। इस क्षेत्र में भी कोई अध्ययन नहीं किया गया है कि किसी कस्बे का कितना हिस्सा जमीं में धंस सकता है।
इससे भी बड़ी बात ये है कि क्या इस कस्बे को कायम रखा जा सकता है? एक स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता ने कहा कि यदि ये चल रहे हैं तो इस शहर में कम से कम 40 खतरनाक बाशिंदों को पुनर्वासित करना होगा।
अतुल सती कहते हैं कि “अगर यह सच है, तो शहर के बाकी हिस्सों को बचाना मुश्किल होगा।”
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