- दिलीप कुमार शर्मा
- बीबीसी हिंदी के लिए, गुवाहाटी से
असम के नौजवान बिस्वा सरमा सरायघाट की प्रसिद्ध लड़ाई में मुग़लों को हराने वाली अहोम सेना में शामिल मुस्लिम योद्धा इस्माइल सिद्दी के अस्तित्व पर सवाल खड़ा करके एक और विरोध छेड़ दिया है।
सिद्दीकी को असम टाइगर के नाम से जानते हैं।
सर सरमा का दावा है कि सरायघाट के युद्ध में मुगलों के खिलाफ अहोम जनरल लचित बरफुकन के नेतृत्व में लड़ने वाले टाइगर हजारिका एक ‘काल्पनिक चरित्र’ थे।
उनके इस बयान पर मुस्लिम समुदाय ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए इसे ‘सांप्रदायिक’ बताया है जबकि इस विवाद से जहां बाघ हजारिका के अनापत्ति हैं, वहीं असमिया मुस्लिम नेताओं के एक वर्ग के इस दावे को ‘असमिया समाज को विभाजित करने की दक्षिणपंथी चाल’ ‘ के रूप में देख रहा है।
आठ जनवरी को गुवाहाटी में अखिल भारतीय छात्र परिषद के एक सम्मेलन को संदेश देते हुए हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा था, “अगर आप सरायघाट की लड़ाई के पूरे इतिहास को समझते हैं, तो आप टाइगर हजारिका का कहीं भी उल्लेख नहीं करेंगे।”
यह बात एक बार फिर 12 जनवरी को भारतीय जनता युवा मोर्चा, असम परिषद के एक कार्यक्रम में दोहराई गई थी।
सरायघाट का युद्ध
टाइगर हजारिका के परिवार की 10 पीढ़ी के 83 वार्षिक अहमद हजारिका बड़ी नाराज़गी के साथ कहते हैं, “सरायघाट का युद्ध हुए साढ़े तीन सौ साल से अधिक हो चुका है। आज तक किसी ने भी ऐसा विरोध खड़ा नहीं किया।”
वे कहते हैं, “बाघ हज़ारिका एक मुस्लिम योद्धा थे इसलिए उनके योगदान को मिटाने की कोशिश की जा रही है। ताज़ा विवाद से हमारे मन में यह संदेह पैदा हो गया है।”
सरायघाट की लड़ाई 1671 में अहोम साम्राज्य और मुगल साम्राज्य के बीच सरायघाट (अब असम) के क़रीब ब्रह्मपुत्र नदी पर एक नौसैनिक युद्ध था।
अहोम सेना का नेतृत्व लचित बरफुकन कर रहे थे जबकि राम सिंह मुगल सेना के प्रमुख सेनापति थे।
आज़ादी के तुरंत बाद 1947 में ही असम सरकार ने प्रसिद्ध सूर्य कुमार भुइयां की लचित बरफुकन पर लिखित पुस्तक ‘लचित बरफुकन ऐंड हिज टाइम्स’ प्रकाशित की थी जिसमें जल सेना की आज्ञा टाइगर हजारिका यानी इस्माइल सिद्दीकी के हाथ में देने का जिक्र है।
इसके अलावा डॉ. लीला गोगोई और भुवन चन्द्रमांडिक जैसे इतिहासकारों ने भी टाइगर हजारिका का ज़िक्र अपनी किताबों में किया है।
दरअसल, असम के इतिहास और ख़ास तौर पर ‘स्वदेशी’ असमिया के लिए टाइगर हज़ारिका की वीरता की कहानियों का महत्वपूर्ण सांस्कृतिक महत्व है, लेकिन राज्य के सत्ता में आने के बाद बीजेपी ने हिंदू योद्धा लचित बरफुकन की कहानी को अपनाया है।
क्या कहते हैं सूचनाएं?
असम में बीजेपी की राजनीति को समझने वाले सूचनाएं कहती हैं कि मुस्लिम योद्धा टाइगर हजारिका की कहानी बीजेपी की हिंदुत्ववादी राजनीति में फिट नहीं बैठ रही है, वे इस ताज़ा विवाद को हिंदू बनाम मुस्लिम राजनीति से जोड़कर देख रहे हैं।
असम की राजनीति पर लंबे समय से नज़र रखते हुए वरिष्ठ पत्रकार बैकुंठ नाथ गोस्वामी कहते हैं, “असम में राजनीति करने वालों के बहुत प्रयास के बाद भी जमीनी स्तर पर हिंदू-मुस्लिम के बीच विभाजन देखने को नहीं मिलता है। समझाने की कोशिश में लगे हैं कि हिंदू का देश रह रहा है और इसे लचित बरफुकन ने मुगलों के हाथों में जाने से बचा लिया था।
वे कहते हैं, “मुग़लों के ख़िलाफ़ बाघ हज़ारिका की लड़ाई की कहानी कई इतिहासकारों की किताबों में है। इस तरह का विरोध एक तरह से मुस्लिम के ख़िलाफ़ हिंदू को खड़ा करने की राजनीति का हिस्सा है और ऐसी राजनीति कर हिमंत बिस्वा सरमा अपनी पार्टी। आरएसएस के बहुत अधिक वफ़ादार बनने की कोशिश कर रहे हैं।”
2016 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने घोषणा की थी कि असम की पहचान की रक्षा के लिए ‘यह चुनाव सरायघाट की आखिरी लड़ाई है‘ है। तब चिपकने वाले दस्तावेजों को अपने पक्ष में राजनीतिक हिस्सेदारी के लिए चलाया गया था जो बहुत सफल रहा था।
वैसे तो 2016 के विधानसभा चुनाव से पहले सरायघाट की लड़ाई को हिंदू बनाम मुस्लिम के रूप में कभी नहीं देखा गया, लेकिन उस चुनाव प्रचार के दौरान रैलियों में लोगों को यह कहा गया कि अगर यह चुनाव हार गए तो असम की गुड्डी पर मुस्लिम कब्ज़ा कर लें कार।
मुस्लिम जानकारी की नज़र में सीएम का बयान
दरअसल, सरायघाट की लड़ाई भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ माना जाता है।
राजनीतिक कार्यकर्ता में हादी आलम बोरा कहते हैं, “यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक इस तरह का बयान दे रहे हैं। टाइगर हजारिका का नाम असम के इतिहास में दर्ज है। यदि किसी को संदेह है तो अनावश्यक विवाद पैदा करने के बजाय इस पर अधिक शोध करें करके पता लगाया जा सकता है।”
असमिया मुस्लिम बुद्धिजीवियों के एक समूह ने 11 जनवरी को बयान जारी करके राज्य सरकार से असम में एक विश्वविद्यालय के तहत इतिहासकारों की एक समिति करने का अनुरोध किया ताकि टाइगर हजारिका के बारे में और पता लगाया जा सके।
इस विवाद पर सदौ असोम गोरिया-मोरिया-देशी जातीय परिषद के कार्यकारी अध्यक्ष नुरुल हक ने बीबीसी से कहा, “मुख्यमंत्री हिमंत का टाइगर हज़ारिका पर दिया गया बयान उनके राजनीतिक एजेंडे का हिस्सा है क्योंकि इससे पहले राज्य में बीजेपी सरकार के आर्टिकल रहे सर्बानंद सोनोवाल असम विधानसभा में टाइगर हजारिका के बारे में रिकॉर्ड में कहा गया था कि सरायघाट के युद्ध में लचित बरफुकन के साथ टाइगर हजारिका ने भी अहम भूमिका निभाई थी।”
वे याद करते हैं, “इसके बाद बीजेपी ने सरकार ही 2016 में लचित दिवस के अवसर पर जो सरकारी संकल्प वाली चिट्ठियां बांटी थी उसमें लचित बरफुकन के साथ टाइगर हजारिका की भी तस्वीर थी तो मौजूदा बेरोजगारी का एक काल्पनिक पात्र कहना असमिया के लिए ख़तरे की घंटी की तरह है.”
नरुल हक कहते हैं, “दरअसल, यह सब कुछ लचित बरफुकन को जुड़ाव हिंदू योद्धा स्थापित करने के लिए किया जा रहा है। इसी कारण टाइगर हजारिका के योगदान को समाप्त करने का प्रयास किया जा रहा है, ताकि बीजेपी अपनी ध्रुवीकरण वाली राजनीति का फैसला करे उठा सके लेकिन असम में बाघ हजारिका को एक काल्पनिक पात्र बनाना कभी संभव नहीं हो सकता है।”
टाइगर हजारिका के अस्तित्व को नकारने वाले
असम में बीजेपी पर आरोप लग रहे हैं कि वो अहोम सेनापति लचित बरफुकन को हिंदू राष्ट्रवादी नायक के रूप में पेश करने की कोशिश कर रहे हैं।
पिछले साल 24 नवंबर को लचित बरफुकन की 400वीं जयंती पर राज्य सरकार ने जिस तरह का आयोजन किया उसे लेकर भी कई सवाल खड़े किए।
नई दिल्ली में आयोजित इस समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने हिस्सा लिया था।
उस समारोह को लेकर हिमंत ने तब कहा था कि ये समारोह अहोम जनरल लचित के लिए ‘सम्मान का सही स्थान’ सुनिश्चित करने के लिए किया गया क्योंकि उन्हें ‘वो सम्मान नहीं मिला जो देश ने छत्रपति शिवाजी को दिया है।’
ताई अहोम युवा परिषद असम के सचिव दीपज्योति ट्वीट टाइगर हजारिका को लेकर उठे विवाद पर कहते हैं, “हमारे योद्धाओं का किसी भी तरह से राजनीतिक उपयोग नहीं होना चाहिए। हजारिका फंतासी नहीं, एक सच्चाई है क्योंकि ताई अहोम का एक गौरवशाली इतिहास रहा है और हमें अपने इतिहास पर पूरा भरोसा है। अपने राजनीतिक लाभ के लिए किसी योद्धा को काल्पनिक कह देने से यह सच नहीं होगा। यह सभी को पता है कि महान अहोम योद्धा ने बरफुकन हिंदू नहीं, अहोम थे।
डिब्रूगढ़ के हनुमानबख्श सूरजमल्ल कनोई कॉलेज के इतिहास के प्रोफेसर अभिजीत बरुआ कहते हैं, “सरायघाट के युद्ध में असमिया मुस्लिम के योगदान को नकारा नहीं जा सकता, लेकिन मेरा व्यक्तिगत मानना है कि टाइगर हजारिका नाम का कोई स्पष्टीकरण नहीं था, हालांकि तब हिंदू-मुसलमान के इस बीच सहस्राब्दी के लिए कुछ लोगों ने अपनी किताब में इस तरह का जिक्र किया था।”
इतिहासकार सूर्य कुमार भुइयां की पुस्तक ‘लचित बरफुकन ऐंड हिज़ टाइम्स’ का ज़िक्र करते हुए प्रोफ़ेज़र अभिजीत बरुआ कहते हैं, “इतिहासकार भुइयां की 1935 में असमिया में जो किताब प्रकाशित हुई थी उसमें सीधे तौर पर टाइगर हज़ारिका के नाम का कोई ज़िक्र नहीं था। 1947 में जो किताब प्रकाशित हुई, उसका पेज नंबर 231 में उन्होंने लिखा कि मौलवी मुफिजुद्दीन अहमद से उन्होंने मुस्लिम योद्धा टाइगर हजारिका की बहादुरी की कहानी सुनी थी। जिनको अहोम सेनापति लचित की जीत में आंशिक कारक माना गया था। का कोई निजी अध्ययन के आधार पर नहीं था।”
असम में अहोम शासन
असम के हिमंत ने बाघ हजारिका के बारे में कहा था, “सरायघाट की लड़ाई के बारे में हमें कभी किसी ने कुछ नहीं बताया। वामपंथी हमें केवल यह बताएं चाहते थे कि एक तरफ लचित और बाघ हजारिका थे, और दूसरी तरफ औरंगजेब और राम सिंह थे, दोनों तरफ़ से हिंदू और मुसलमान दोनों थे।”
टाइगर हज़ारिका लेकर सांप्रदायिक राजनीति करने के झूठ का जवाब देते हैं असम प्रदेश बीजेपी के वरिष्ठ नेता विजय कुमार गुप्ता कहते हैं, “हमारे आलेख ने कहा है कि वो बिल्कुल सही है। जो लोग इसे बहुत बड़ा विवाद बनाने का प्रयास कर रहे हैं। उन्हें इतिहास के लिए ठीक से खंगोल कर देखना चाहिए। हमारी पार्टी किसी भी तरह की सांप्रदायिक राजनीति नहीं करती है और हम सभी समुदायों को साथ लेकर आगे बढ़ने में विश्वास रखते हैं।”
इतिहास के चक्कर में लिखा है कि तेरहवीं सदी में असम में अहोम वंश का प्रभुत्व स्थापित हो गया था।
ताई राजवंश की शान शाखा के अहोम योद्धाओं ने सुखापा के नेतृत्व में स्थानीय नागाओं को पराजित कर वर्तमान असम पर कब्ज़ा किया और अगले 600 वर्षों तक असम पर उनका आधिपत्य रहा।
इसके अनुसार अहोम वंश का आरंभिक धर्म बांगफी ताई धर्म, बौद्ध धर्म और स्थानीय धर्म का मिला-जुला रूप था।