- मोहम्मद सरताज आलम
- बीबीसी हिंदी के लिए, जमशेदपुर से
झारखंड के पश्चिम सिंहभूम जिले के खूंटपानी ब्लॉक स्थित कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय की 61 लड़कियों ने अपनी बात रखने के लिए वह रास्ता चुना जिस पर यकीन करना मुश्किल है।
लेकिन हकीकत यही है कि बीते रविवार को रात लदान:के बाद ये लड़कियां अपने आवास से निकलीं और 18 किलोमीटर पैदल चलकर जिला उपायुक्त कार्यालय में पहुंच गईं।
इन छात्राओं में शामिल कविता महतो कहती हैं, “मकर संक्रांति के दौरान हम सभी ने तय कर लिया था कि डीसी सर से प्रिंसिपल मैडम (जो वर्डन भी हैं) की शिकायत करेंगे। इस लिए रात लदान सुबह सुबह स्कूल ऑफिस से नंबर गेट की चाबी प्राप्त करें निकाली और दबे पैर अपने शूज हाथों में लेकर गेट खोला। उसके बाद बाहर शूज पहनकर उपायुक्त कार्यालय के लिए पैदल निकल गए।”
क्या इन छात्राओं को कुछ करते हुए किसी ने नहीं देखा?
इस सवाल पर कविता कहती है, “स्कूल में किसी ने नहीं देखा। हम सड़क के रास्ते न दौड़ के रास्ते निकले। यही कारण है कि रास्ते में किसी ने नहीं देखा।”
ये अनुबंधित प्रभावित क्षेत्र है, आप लोगों को डर नहीं लगता? इस सवाल पर मोनिका सत्यापन नाम के होस्ट ने कहा, “ये बात आसान है, लेकिन हम लोग डर नहीं सकते।” उसी समय कविता और ईव महतो ने कहा कि वे सहज नहीं थे कि ये क्षेत्र असुरक्षित है।
क्या पहले रात बाहर जाने के रास्ते में उन्हें ठंड नहीं लगी? कविता कह रही हैं कि थोड़ी ठंड लगी लेकिन पैदल चलने कर जाने की वजह से परेशानी कम हुई।
ये होस्टें सुबह सात बजे हम सभी चाईबासा पहुंचते हैं।
कविता कहती हैं, “वहां कुछ लोगों ने देखा लेकिन हम से किसी ने कुछ नहीं पूछा। बाद में उनके उपायुक्त कार्यालय पहुंचे।”
छाज्ञा मुस्कान तांती कहती हैं, “जब हम सभी उपायुक्त कार्यालय पहुंचते हैं तो वहां एक अधिकारी ने क्षति देते हुए कहा कि हमारी समस्या का समाधान हो जाएगा। उसके हम सभी को वाहन के लिए वापस स्कूल पहुंच गए।”
मुस्कान का कहना है कि जिस अधिकारी से उनकी मुलाक़ात हुई वह उन्हें नहीं चाहते। अपने अगले वाक्य पर ज़ोर देते हुए वे कहते हैं, “अधिकार के नुकसान से हम तो हैं, लेकिन हमारी समस्या का समाधान होना चाहिए।”
प्रशासन ने की कार्रवाई
पश्चिम सिंहभूम जिले के उपायुक्त अनंत मित्तल सोमवार की सुबह अपने दफ्तर में नहीं थे। लेकिन जानकारी मिलने के बाद उन्होंने इस पूरे मामले पर कार्रवाई शुरू की।
उन्होंने बीबीसी से कहा, “ज़िले में घिसे-पिटे ‘कस्तूरबा गांधी आवासीय बालिका विद्यालय’ हैं। लेकिन खूंटपानी स्थित इस स्कूल में यह घटना घटती है। इसलिए सबसे पहले स्कूल के प्रमुख, लेखपाल और सभी शिष्यों की किसी प्रत्यक्ष क्षेत्र में स्थूलता कर दी गई है। ताकि यहां की पूरी व्यवस्था बदल सके।”
“साथ ही प्रमुख व लेखपाल को कारण बताता है कि नोटिस जारी किए गए हैं कि उनका एक्ट्रसिस्ट्रेशन क्यों नहीं किया जाएगा। साथ ही हमने रात में प्रहरी को स्कीन सेवा करते हुए दो होमगार्ड को प्रतिनियुक्त करने का आदेश दिया है।”
बीबीसी ने जब 11वीं की इन 61 छात्राओं से समस्या जानने की कोशिश की तो ज्यादातर छात्र फ्रैंक बोलने की हिम्मत नहीं कर रहे थे।
डेरी-सहमी सोनाली जोजो ने सबसे पहले बोलने की हिम्मत दिखाई। उन्होंने कहा, “हम लोग डीसी ऑफिस इसलिए गए क्योंकि यहां जब शौचालय की नालियां जाम हो जाती हैं तब हम लोगों से पांच रुपये लिए जाते हैं।”
उनके बोलने के तुरंत बाद ही कई छात्राओं की आवाज़ गूंज उठी कि “शौचालय की सफ़ाई का काम छात्राओं से उजागर होता है।”
एक अन्य होस्ट ने कहा, “शौचालय तो अधिकतर हम लोग ही तीतरे करते हैं।”
छात्राओं के आरोप
बडेया गांव के इस आवासीय बालिका विद्यालय में कक्षा छह से 12वीं तक 498 होस्ट हैं। इनके लिए 51 शौचालय हैं लेकिन इनमें वाईफाई के लिए स्कूल में फाईकर्मी नहीं हैं।
हालांकि एक दिलचस्प बात यह है कि रविवार की देर रात इनमें से केवल 11वीं कक्षा के होस्ट ही उपायुक्त ऑफिस पहुंचे थे।
इन छात्राओं से बात करने से पता चला कि एक दिन पहले वर्डन ने 11वीं कक्षा की छात्राओं से ही छेड़खानी का आरोप लगाया था और बाद में कुछ मैदान के चक्कर लगाने की सज़ा भी सुनी थी।
स्कूल की प्रिंसिपल सुशीला टॉपनो छात्राओं से शौचालयों की सफ़ाई की बात स्वीकार करते हुए कहती हैं, “यहां सफाई कर्मचारी का पद सृजित नहीं है, इसलिए यहां सफ़ाई कर्मचारी नहीं हैं। ऐसे में छात्राओं को सफ़लते हैं, क्योंकि हर दिन सफ़ाईकर्मी को हम ड्यूटी करते हैं।” बुला नहीं सकते।”
प्रति होस्ट पांच रुपये के लिए जाने के आरोप पर प्रधान का कहना है कि होस्टें पैसे जामकर बाल संसद (विद्यार्धियों का एक मंच है) में जाम करती हैं और उन्हें स प्रतिबद्ध कार्यकर्ता बुलाए जाते हैं।
प्रिंसिपल ने कहा, “हम लोगों के पास बजट नहीं, मैं तीन महीने से वेतन नहीं ले सका। इसलिए मैंने इस बार छात्राओं को चाहा कि तुम लोगों को सहयोग करना। पैसे के लिए मैंने किसी पर दबाव नहीं डाला। जिन छात्राओं ने सहयोग किया उन्होंने अपने बाल संसद से स्वीपर को पैसे दिए।”
लेकिन ज़िला के प्रभार शिक्षा ललन सिंह ने स्कूल में छात्राओं से शौचालय संबंधी आरोप लगाने के आरोप को खारिज कर दिया।
शिक्षा अधिकारी यह भी कहते हैं, “ये आवासी विद्यालय है। इसका उद्देश्य यह नहीं है कि यहां पढ़ाई करना हो, वह रोजमर्रा की आजीविका कैसे जिएंगे, समाज में कैसे रहेंगे। इसलिए इन सभी को अलग-अलग तरह के काम दिए जाते हैं बागवानी जैसे हैं, ताकि उनकी कुल पर्सनालाइट डेवलप हों।”
प्रिंसिपल टैपानो कहते हैं, “मैं प्रत्येक फैला में अधिकारी से बहुत अधिक मांग करता हूं क्योंकि यहां बच्चियां ग्रामीण इलाकों से आती हैं जहां वह शौचालय का उपयोग नहीं करती हैं। ऐसे में समझाने के बावजूद वह शौचालयों में कुछ-कुछ डाल देते हैं जिससे शौचालय हर दो-तीन दिन में जाम हो जाता है।
छात्राओं को समय पर नहीं मिलीं यूनिफॉर्म
इसके अलावा छात्राओं की दूसरी झलक भी हैं।
एक चंचल मुस्कान तांती का दावा है कि कई छात्राओं को यूनिफॉर्म नहीं मिला है। हालांकि उन्हें फ़िट वर्दी मिल गई है, लेकिन वे कहते हैं, “सवाल मेरा नहीं है, यहां पढ़ने वालों को सभी चेहरों को कपड़े मिलने चाहिए।”
स्कूल के प्रिंसिपल ने इस आरोप से इनकार करते हुए कहा “जब यूनिफॉर्म आया तो तीन से चार बालिकाएं छाईं, वो आ गए थे तो उन्हें ड्रेस मिल।”
मुस्कान एक और आरोप लगाती है कि एक-दो छात्राओं को छोड़कर सभी छात्राओं के पास किताबें नहीं हैं।
किन विषयों की पुस्तकें नहीं हैं? इस सवाल पर मुस्कान आती हैं कि किसी भी विषय की किताब नहीं हैं। लेकिन स्कूल की ओर से किताबों को लेकर इन भ्रमों को ख़ारिज कर दिया गया।
दरअसल कस्तूरबा बालिका आवासीय बालिका विद्यालय में आर्थिक रूप से पकड़े गए छात्रों को पढ़ने का अवसर मिलता है। छात्राओं का कहना था कि यहां हम अपना भविष्य बनाने के लिए आते हैं। लेकिन उन्हें वह सुविधा नहीं मिलती जिससे वह हक़दार हैं।
ज्यादातर छात्राओं का आरोप है कि हम लोगों को मेन्यू के हिसाब से नाश्ता और खाना नहीं मिलता है।
मोनिका खुलासा करती हैं, “नाश्ते में अंडा, खाने में अंडा करी, मछली और मीठा पहले नहीं मिल रहा।”
इस पर प्रिंसिपल टॉपानो भी स्वीकार करते हैं कि पैसे की कमी के चलते पहले की तरह छात्रों को मीट नहीं दी जा रही है।
बजट कम करने की बात होती है
इस पर उपायुक्त अनंत मित्तल ने एक जांच कमेटी बनाई है जो यह पता लगाने की कोशिश करती है कि दूसरे स्कूलों की तुलना एक समान बजट के बाद इसी स्कूल में बजट कम कैसे हो रहा है।
वैसे तो स्कूल में शिक्षकों की कमी भी एक छोटी सी है।
ई महतो कहते हैं, “स्कूल में शिक्षकों की कमी है। संस्कृत, कुरमाली, हो भाषा, नृत्य व कला की शिक्षा नहीं हैं।”
लेकिन उनके आरोपों को नकारते हुए जिला शिक्षा अधिकारी ललन कुमार ने वैसी बात नहीं कही है। खुली हुई भाषा ‘हो’ में शिक्षक नहीं हैं।
जबकि प्रिंसिपल टॉपानो ने कहा कि स्कूल में खुले गणित, विज्ञान, भौतिक शिक्षा और सामाजिक विज्ञान विषयों से संबंधित कुल चार स्थायी शिक्षक हैं।
वे कहते हैं, “कुछ पार्ट टाइम शिक्षक आते हैं, लेकिन ऊपर से आदेश है कि उनमें भी कमी की जाए। जब इन पार्ट टाइम शिक्षकों में कमी आएगी तो छात्रों की पढ़ाई प्रभावित होगी।”
पांच एकड़ में आवासीय इस स्कूल में 498 छात्राओं की सुरक्षा के लिए दिन में दो महिलाएं और रात में एक पुरुष प्रहरी हैं।
51 छात्राओं के रात कैंपस से बाहर जाने के मामलों में प्रमुख कहते हैं, “उस रात उन्हें या स्कूल के अन्य कर्मचारियों को आभास तक नहीं हुआ कि होस्ट दबे पैर कैसे निकल गए और हम किसी बड़ी अनहोनी से बच गए।”
स्कूल की सभी चार शिक्षाओं के तबादला को लेकर 11वीं की होस्ट कविता कह रही हैं कि “हम डीसी ऑफिस के प्रिंसिपल मैम को हटवाने के लिए गए थे। लेकिन सभी शिक्षिका के तबादले से हम सभी दुखी हैं।”
स्कूल कमिटी के मैनेजर दोनो बानसिंघ कहते हैं कि “मैं अक्सर यहां छात्रों से मिलने आता हूं। लेकिन किसी ने मुझसे कोई शिकायत नहीं की। जबकि खूंटपानी ब्लॉक के बीडीओ जागो महतो कहते हैं कि जो भी उस रात हैरान करने वाली बात है।”
वे कहते हैं, “सवाल ये है कि कैसे इतनी बड़ी संख्या में आवास निकले बाहर निकलीं? सुरक्षा की दृष्टि से ये अति संवेदनशील मामला है। इसलिए सभी घूस की गहराई से जांच की जा रही है। उपायुक्त ने भी इसकी जांच की बात कही है। “