केंद्रीय बजट 2023: मोदी सरकार का दूसरा कार्यकाल का आखिरी और अब तक अपना 10वां पूर्ण आम बजट एक फरवरी 2023 को पेश करने जा रहा है। मोदी सरकार के 8 साल के कार्यकाल में देश में बढ़ती बरोजगारी का सबसे बड़ा चेहरा उभरा है। ऐसे में 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले मोदी सरकार शहरी इलाकों में बेरोजगारी की समस्या से निपटने के लिए मौजूदा मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना) उन पर शहरी मनरेगा की घोषणा की जा सकती है।
कोरोना महामारी के बाद देश में लगे लॉकडाउन के बाद महानगरों से पैदल चलकर अपने घर जाने वालों की तस्वीरें अब तक हर किसी के जेहन में है। जब लोगों को रोजगार छोड़ना पड़ा तो प्रवासी कामगारों को वापस जाना पड़ा। इससे नौकरी की समस्या पैदा हुई है। जो लोग शहरों से गांवों में गए उन्हें ग्रामीण क्षेत्र के लिए मनरेगा योजना ने ही रोजगार उपलब्ध कराए। ऐसे में अब शहरी क्षेत्र के लिए अर्बन मनरेगा लक्ष्य करने की मांग की जा रही है। आर्थिक सलाहकार समिति ने मनरेगा के दायरे पर अर्बन जॉब पर रोक की घोषणा की है। इससे पहले श्रम मंत्रालय से संबंधित मंडल समिति ने भी ग्रामीण क्षेत्रों के लिए मनरेगा जैसी नौकरियों के लिए संविदा योजनाओं के लिए शहरी क्षेत्रों के लिए अर्बन नेशनल जॉब मिलने की संभावना है, जिससे शहरी क्षेत्रों में नौकरी की समस्या से सबंधित हो सकते हैं।
शहरी क्षेत्र के लिए मनरेगा जैसी योजना के घोषणा की संभावना इसलिए भी बढ़ गई है क्योंकि ई-श्रम पोर्टल पर असंगठित क्षेत्र के नामांकन का पंजीकरण बड़ी संख्या में किया गया है। सरकार इस डाटाबेस में शहरी क्षेत्र में पंजीकरण कराने वालों को संबंधित क्षेत्रों के लिए शहरी मनरेगा योजना के तहत नामांकन प्राप्त कर सकता है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के आंकड़े शहरी रोजगार में रोजगार की दर के अनुसार दिसंबर 2022 में 10.1 प्रतिशत पर पहुंचेंगे। नॉन COVID-19 समय में पिछले पांच साल में शहरी बरोजगारी का ये सबसे बड़ा पात्र है। नवंबर 2022 में भी ये 9 प्रतिशत थे।
शहर में बेरोजगारी की समस्या और कोरोना महामारी के दौरान रोजगार पाने वालों को रोजगार के लिए उपलब्ध दावे के मकसद से सरकार शहरी क्षेत्र के लिए मनरेगा जैसी योजना का आवंटन बजट में कर सकते हैं। राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के मजदूर संगठन भारतीय मजदूर संगठन यानी बीएमएस भी पूर्व में शहरी क्षेत्रों के लिए मनरेगा जैसी योजना लाने की मांग की थी। बीएमएस ने कहा था कि शहरी क्षेत्रों में रोजगार के लिए मनरेगा जैसी योजना समय की मांग है।
आपको बता दें कि राजस्थान सहित छह राज्यों से पहले अर्बन मनरेगा जैसे निर्धारित किए गए हैं। राजस्थान में मार्च 2022 में 800 करोड़ रुपये के सात योजना की शुरुआत की गई थी। लेकिन इन राज्यों के रोजगार मिलने को मनरेगा की वैधानिक मान्यता प्राप्त नहीं है। 2008 में तात्कालीन यूपीए सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार को कवर करने का मकसद से मनरेगा उपलब्ध योजना लेकर आई थी। जिसमें एक साल में 100 दिनों के लिए संभवत: रोजगार दिया जाता है। माना जाता है कि इससे ग्रामीण क्षेत्र में बेरोजगारी की समस्या से निपटने में मदद तो मिली ही ग्रामीण रोजगार को मिला है।
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