जी-20 के विदेश मंत्री की बैठक में हिस्सा लेने का अधिकार भारत ब्रिटेन के विदेश मंत्री आए पिछले महीने बीबीसी के भारतीय दफ़्तरों पर दस्तावेज़ विभाग की कार्रवाई के लिए लागू है।
ब्रिटेन के विदेश मंत्री जेम्स क्लेवरली ने बुधवार को भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर से मुलाकात की.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार जेम्स क्लेवरली ने एक साक्षात्कार के दौरान ये जानकारी दी है।
पिछले महीने बीबीसी के दिल्ली और मुंबई के दफ़्तरों पर लागू विभागों ने क़रीब तीन दिनों तक सर्वे किया था।
समाचार एजेंसी एएनआई ने सूत्रों के संबंध में ये जानकारी दी है कि जयशंकर ने ब्रिटेन के विदेश मंत्री से कहा है कि जो भी कंपनियां भारत में काम कर रही हैं, उन्हें भारत के कयादे-कानून का पालन करना होगा।
हाल ही में बीबीसी ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर एक डॉक्यूमेंट्री प्रसारित की थी। इसका प्रसारण किसी भी तरह से भारत में नहीं किया गया था, यह केवल ब्रिटेन में रहने वाले दर्शकों के लिए था।
भारत सरकार ने इस डॉक्यूमेंट्री को ‘शत्रुतापूर्ण दुष्प्रचार’ कहे गए भारत में देखे जाने को रोकने का प्रयास किया था क्योंकि कई लोग इसे जिद्दी तरीके से अपलोड करके सोशल मीडिया के खाते शेयर कर रहे थे।
आयकर विभाग की कार्रवाई के बाद भारत के सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्सेज ने कहा है कि उसे ‘विसंगतियों’ के प्रमाण मिले हैं।
इसके बाद बीबीसी ने कहा था कि ऐसा कोई भी आधिकारिक संदेश उचित उत्तर दिया जाएगा जो उसे विभाग से प्रत्यक्ष रूप से प्राप्त होगा।
पिछले महीने ब्रिटेन की संसद में भी ये याचिका दायर की थी। विरोधी सांसदों ने बीबीसी के भारतीय दस्तावेज़ों पर संबंधित विभाग की कार्रवाई को चिंता का विषय बताया था।
ब्रिटेन में विदेश मंत्रालय के मंत्री ने भारत के संबंध विभाग के झूठ पर टिप्पणी नहीं की, लेकिन ये ज़रूर कहा कि वे इस मामले पर अपनी नज़र से नज़र रखते हैं और बीबीसी के स्वतंत्र जर्नल का संपूर्ण समर्थन करते हैं।
सर्वे के दौरान क्या हुआ
बीबीसी के दिल्ली और मुंबई के दफ़्तरों पर पादप विभाग ने 14 फरवरी को सर्वे शुरू किया था।
जिल्द विभाग ने अपने बयानों में कहा था कि ‘सर्वे’ इस तरह से किया गया था ताकि लगातार चलने वाले मीडिया/चैनल की प्राप्ति को बनाया जा सके।
हालांकि इस दौरान कई घंटे के दौरान बीबीसी के पापी को काम नहीं दिया गया। कई कागजात के साथ विभाग के कर्मचारी और पाइपलाइन भी लग गए।
पापारापेंट के कंप्यूटरों की छान-बीन की गई, उनके फोन रखवाए गए और उनसे उनके काम के तरीके के बारे में जानकारी ली गई।
इसी के साथ दिल्ली दफ्तर में वैध पारापिट को इस सर्वे के बारे में कुछ भी टाइट से रोक लिया गया है।
सीनियर रेक्टेस के सीधे कहने के बाद जब काम शुरू किया गया, तब भी हिंदी और अंग्रेजी के पापाचारी को काम करने से रोक दिया गया।
जब वे प्रसारण के समय के सामने पहुँचे तो इन दोनों कल्पित कथाओं को इस तरह से काम दिया गया।
मंगलवार 14 फरवरी को शुरू हुआ आयकर विभाग का ‘सर्वे’ 16 फरवरी की रात करीब दस बजे पूरा हुआ।
इस सर्वेक्षण के बाद बीबीसी ने बयान जारी कर कहा था- हम अजनबी, निष्पक्ष, अंतर्राष्ट्रीय और स्वतंत्र मीडिया हैं, हम आपके उन सहयोगियों और पापाराज़ी के साथ खड़े हैं जो लगातार आप तक बिना भय और साझेदारी के समाचार पहुंचेंगे।”
बीबीसी के अजीबोगरीब ईमेल भेजे गए थे
पिछले दिनों बीबीसी के अनुमान टिम डेवी ने भारत में स्टॉफ़ को लिखे एक ईमेल में कहा था कि बीबीसी बिना किसी डर और पक्षपात के रिपोर्ट के पीछे नहीं हटेगा।
ये ईमेल बीबीसी के दिल्ली और मुंबई के दफ़्तरों पर अधिकृत विभागों के अधिकारियों के सर्वे के बाद आया था।
टिम डेवी ने कर्मचारियों को उनके हौसले के लिए धन्यवाद दिया और कहा कि फेयर कमिशन से अधिक महत्वपूर्ण और कुछ नहीं।
उन्होंने यह भी दावा किया कि बीबीसी दस्तावेज़ विभाग की जांच में पूरा सहयोग कर रहा है।
टिम डेवी ने कहा है कि बीबीसी अपने कर्मचारियों को प्रभावशाली और सुरक्षित तरीके से काम करने में मदद करेगा।
उन्होंने लिखा, “बिना किसी डर या बंटवारे को लेने से ज्यादा जरूरी कुछ भी नहीं है। हमारा कर्तव्य दुनिया भर में आपके ऑडियंस के सामने सटीक ढंग से स्वतंत्र और फेयर वृत्तांत के दावे को पेश करना और सबसे अच्छा और रचनात्मक बनाना और सबसे अच्छा और रचनात्मक बनाना और यह लोगों तक पहुंच जाता है। हम इस काम से पीछे नहीं हटेंगे।”
उन्होंने कहा, “मैं ये कह रहा हूं: बीबीसी का कोई रूपरेखा नहीं है। हमारा एक उद्देश्य को लेकर लिखा गया है। हमारा पहला उद्देश्य लोगों को फेयर न्यूज और जानकारी फैलाना है ताकि वे अपने आस-पास की दुनिया को समझ सकें।”
ब्रिटेन की संसद में मामला उठा
पिछले हीने में बीबीसी के भारतीय दस्तावेज़ों पर आंशिक रूप से विभाग की कार्रवाई को लेकर ब्रिटेन की संसद में सवाल उठे थे।
संसद में ब्रिटनी सरकार के एक मंत्री ने सवाल के जवाब में कहा है कि वो भारत की सरकार से संपर्क में हैं और इस मामले को उठाया है।
21 फरवरी को ब्रिटनी के सांसद ने लोअर हाउस ऑफ़ कॉमन्स के नियमित कामकाज के दौरान ‘अर्जेंट क्वेश्चन’ के माध्यम से ब्रिटनी सरकार से पूछा कि विदेश मंत्री इस कार्रवाई पर किसी तरह के बयान जारी क्यों नहीं करते?
ब्रिटनी लेबर पार्टी के नेता फ़ैबियन हेमिल्टन ने भारत सरकार की इस कार्रवाई पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा, ”जहाँ सही तरीके से प्रेस अपना काम करने के लिए स्वतंत्र हो, ऐसे लोकतांत्रिक देश में बिना किसी कारण के आलोचनात्मक आवाज़ों को नहीं दायर किया जा सकता है . अभिव्यक्ति की आज़ादी की हर क़ीमत पर रक्षा होनी चाहिए।”
उन्होंने कहा था, ”पिछला प्रयास बीबीसी के भारत स्थित दफ़्तरों पर छापा मारा जाने वाला खतरनाक है, हालांकि इसकी आधिकारिक वजह कुछ भी बताई जाए। बीबीसी दुनिया भर में अपनी उच्च किस्म की सस्ती देनदारी के लिए जाना जाता है और उसे बिना किसी भय के रिपोर्टिंग करने की छूट दी जानी चाहिए।”
ब्रिटेन की डेमोक्रेटिक यूनियनिस्ट पार्टी (डीयूपी) के सांसद जिम शैनन ने कहा, ”हमें इस बारे में बिल्कुल स्पष्ट होना चाहिए कि ये एक धमकाने वाली कार्रवाई थी, जिसे देश के नेता की प्रति आलोचनात्मक दस्तावेज़ीकरण जारी होने के बाद पूरा किया गया है। ”
भारतीय मूल के लेबर पार्टी के सांसद तनमनजीत सिंह ढेसी ने भी इस मुद्दे पर ब्रिटानी सरकार से सवाल पूछा।
उन्होंने कहा, “ब्रिटेन में हम प्रेस की स्वतंत्रता को लेकर गर्व की भावना रखते हैं। हम बीबीसी या अन्य सम्मानित मीडिया टैग की ओर से ब्रितानी सरकार, इसके प्रधान मंत्री और विपक्षी दलों की अधिकारिता के लिए अभ्यस्त हैं।”
विपक्षी दलों के सांसदों की ओर से दावों पर सवाल उठाने के बाद ब्रिटेन सरकार में मंत्री डेविड रटले ने अपनी सरकार का पक्ष रखा।
उन्होंने पहली बार यह जानकारी दी कि ब्रितानी मंत्री ने अपने भारतीय समकक्षों से इस बारे में बात की है।
डेविड रटले ने ये भी बताया, “भारत के साथ हमारे व्यापक और गहरे संबंधों की वजह से वे (ब्रितानी मंत्री) क्रिटेटर से भारत सरकार के साथ अलग-अलग मुद्दों पर बात करने में सक्षम थे और हम इस मुद्दे पर लगातार सर्वेक्षण करते रहे बीबीसी ने अपने बयानों में बताया है कि वो इस मामले में अपने कर्मचारियों की हर तरह से मदद कर रहे हैं.”
रटले ने ये भी कहा, ”हम बीबीसी के लिए राजी हैं. हम बीबीसी को फंड करते हैं। हमें लगता है कि बीबीसी वर्ल्ड सर्विस महत्वपूर्ण है। हम चाहते हैं कि बीबीसी के पास संपादकीय स्वतंत्रता रहे। बीबीसी आलोचना हमारी करता है। बीबीसी लेबर पार्टी की आलोचना करता है। बीबीसी के पास वो आज़ादी है, जिसे हम बहुत अहम मानते हैं। ये आजादी खास है और भारत सहित दुनिया भर में अपने मित्रों को इसकी अहमियत के बारे में बताना चाहते हैं।”
डॉक्यूमेंट्री
बीबीसी ने हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर एक डॉक्यूमेंट्री का प्रसारण किया था।
हालाँकि ये डॉक्यूमेंट्री भारत में प्रसारण के लिए नहीं थी।
यह डॉक्यूमेंट्री 2002 के गुजरात दंगों पर थी। उस समय भारत के मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात के नंबर थे।
इस डॉक्यूमेंट्री में कई लोगों ने गुजरात दंगों के दौरान नरेंद्र मोदी की भूमिका पर सवाल उठाए थे।
केंद्र सरकार ने इस दस्तावेज़ीकरण को प्रोपेगैंडा और औपनिवेशिक प्रवृत्ति के साथ भारत-विरोधी दावों वाले भारत में इसे ऑनलाइन शेयर करने से ब्लॉक करने की कोशिश की।
बीबीसी ने कहा था कि भारत सरकार को इस दस्तावेज़ पर अपना पक्ष रखने का मौक़ा दिया गया था, लेकिन सरकार की ओर से इस पेशकश पर कोई जवाब नहीं मिला।
बीबीसी का कहना है कि इस डॉक्यूमेंट्री को पूरी तरह से ग्रेब्रिएट्स के साथ जोड़ा गया है, कई आवाज़ों और गवाहों को शामिल किया गया है और रेटिंग की राय ली गई है और हमने बीजेपी के लोगों सहित कई तरह के विचारों को भी शामिल किया है।
पिछले महीने, दिल्ली में पुलिस ने इस दस्तावेज़ को देखने के लिए शामिल होने वाले कुछ छात्रों को जमा में भी लिया था।
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय सहित देश के कई विश्वविद्यालयों में इस दस्तावेजी की कल्पना की गई थी।
हालाँकि कई बार पुलिस और विश्वविद्यालय ने इसे रोकने की कोशिश की थी।