- सीटू तिवारी
- बीबीसी हिंदी के लिए, मुजफ्फरपुर (बिहार) से
मैं जब सुनीता से मिली तो, वो जमीं पर बैठ कर जापड़े की धूप सेंक रही थीं। सुनीता मुजफ्फरपुर के श्रीकृष्ण चिकित्सा कोलाज अस्पताल (एसकेएमसीएच) के आइसीयू में भर्ती हैं।
उनसे मिलवाने उनके पति अक्लौ राम वहां मुझे ले गए।
सुनीता का उस दिन चार घंटे तक डायलिसिस हुआ था। ट्रिप में तीन दिन होने वाले इसी डायलिसिस की वजह से सुनीता ज़िंदा हैं।
डायलिसिस के साथ तो कई लोग जीवन गुज़ारते हैं लेकिन बिहार की 28 साल की सुनवाई चार महीने से भी अधिक समय से बग़ैर किडनी के जी रहे हैं।
एसकेएमसीएच में चिकित्सा विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. एए मुमताज ने बीबीसी से इसकी पुष्टि करते हुए कहा, “सुनीता के दोनों गुर्दे नहीं हैं।”
क्या है पूरा मामला?
सुनीता देवी बिहार में मुज़फ़्फ़रपुर ज़िले के बरियारपुर पंचायत के मुथपुर सिहो गाँव में रहती हैं। तीन बच्चों की मां सुनीता का सबसे बड़ा बच्चा 11 साल का है। उनके पति अक्ल राम सहकर्मी हैं।
पिछले साल सितंबर की शुरुआत में सुनीता पेट दर्द की शिकायत से परेशान थीं। जब उन्होंने ये बात अपने घर को बताई तो वो सुनीता को इलाज के लिए लोकल स्किन पर ले गए।
इस क्लीनिक के संचालन पवन कुमार ने शिशुदानी के ऑपरेशन की सलाह दी।
इस सलाह पर अमल लाकर उन्होंने 20,000 रुपये का जैम क्रिएट किया और 3 सितंबर 2022 को चिल्ड्रनदानी का ऑपरेशन करवा लिया।
हालांकि सुनीता के पति अक्लू राम कहते हैं, “मैंने इसका ऑपरेशन काम से मना किया था लेकिन ये लड़ाई करके ज़बरदस्ती चली गई।”
लेकिन ऑपरेशन के कुछ घंटे बाद ही सुनीता की तबीयत खराब होने लगी। उन का उपयोग करना बंद हो गया।
जिस क्लिनिक में सुनीता का ऑपरेशन हुआ उसके कार्यकर्ता पवन कुमार ने परिवार को ये देशासा दिया कि वो सुनीता को इलाज के लिए ‘अपने पूरपुर वाले गुरुजी के पास ले जाएंगे।’
सुनीता को वे पटना के गंगाराम अस्पताल ले गए, लेकिन उस अस्पताल ने सुनीता को पीटना मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (पीएमसीएच) रेफर कर दिया।
स्थानीय थाने में सुनीता की मां तेतरी देवी ने जो एफ इर दर्ज किया है, उसमें लिखा है, “पवन उन लोगों को पूत के गाय घाट स्थित गंगाराम हॉस्पिटल ले गए। लेकिन इस अस्पताल ने भी 40,000 रुपये लेकर पीएमसीएच रेफर कर दिया।”
पुलिस का क्या कहना है?
एफ इर में पवन के अलावा डॉ. आरके सिंह (सर्जन), सहायक जितेंद्र कुमार पासवान और पवन की पत्नी नामजद अभियुक्त हैं।
मुजफ्फरपुर पुलिस अधीक्षक राकेश कुमार ने बीबीसी से कहा, “इस मामले में पवन की गिरावट हुई है। बाकी अभियुक्तों की गिरावट भी जल्द ही हो जाएगी। इर में जिस आर.के सिंह का जिक्र है, उनके विपरीत भी संकेत मिले हैं। पवन कुमार के पास डॉक्टरी इलाज से संबंधित योग्यता योग्यता नहीं हैं। उन्होंने बिहार में ही किसी डॉक्टर के पास कंपाउंडर का काम किया था। इन अभियुक्तों में किसी का भी आपराधिक इतिहास नहीं रहा है।”
“अस्पताल-दर-अस्पताल- फुटबॉल बन गए हैं हम”
सुनीता के पति अक्लो राम कहते हैं, “पटना के गंगाराम अस्पताल में सुनीता को भर्ती करने के बाद पवन भाग गया। उसके बाद हम कभी पीएमसीएच तो कभी एसकेएमसीएच और आईजीआईएमएस बातचीत करते रहे। आयुष्मान कार्ड के पैसे खत्म हो गए तो आईजीआईएमएस वालों ने नाम काट लिया।” दिया, उसके बाद से ये एसकेएमसीएच में भर्ती हैं। फुटबॉल बना के रखा है।”
सितंबर से रोज काम करने वाले खाने वाले अक्लौ राम को ही सुनने की डायलिसिस की वजह से लगातार अस्पताल में रहना पड़ रहा है।
वे कहते हैं, “हम मछुआरे हैं। गाँव ले जाएँगे तो यहाँ के अस्पताल में डायलिसिस के लिए सट्टा में तीन दिन कैसे आ खाता हूँ? ये मरा स्क्रिप्ट्स।”
दसवीं फेल, फल विक्रेता बन गया डॉक्टर
सुनीता के साथ जो तारा वो पहली नज़र में झोलाछाप डॉक्टर की करतूत है।
बरियारपुर के मुर्गी फार्म चौक के पास बना ये सड़क किनारे है. इसके चारों तरफ खेत हैं। बंद पड़ा ये क्लिनिक पहली नजर में पालने वाला एक फार्म लगता है।
एफ में इस दवा का नाम शुभकांत है।
दवा का एक पर्चा जो स्थानीय मीडिया में छपा है, जिसमें क्रीम के ऑपरेटरों के नाम डॉ. पवन कुमार और डॉ. नारायण यादव ने लिखा है।
साथ ही अलर्ट पर लिखा है, “यहां 24 घंटे आपातकालीन सेवा उपलब्ध है और सभी प्रकार के ऑपरेशन की व्यवस्था एवं सभी प्रकार की बीमारियों का सफल उपचार किया जाता है।”
बिना पंजीकरण के पिछले दो साल से चल रहे शुभकांत चिकित्सा के ठीक सामने सड़क के दूसरी तरफ ही कृतिका ऑटो स्पेयर्स की दुकान है।
ये दुकान पवन के छोटे भाई अविनाश कुमार दौड़ रहे हैं। पवन के पिता रघुनाथ पासवान कर्मचारी करते हैं। पवन का एक भाई बरियारपुर गांव में फैली हुई कक्षाएं हैं।
पवन के भाई अविनाशी बयान हैं, “ये दवा डॉ. आरके सिंह का है जो ऑपरेशन करते थे। पवन यहां बस झाड़ू और सफाई का काम करते हैं और कभी-कभी छोटे-मोटे रोग में दवाई देते हैं। बाकी भाभी संगीता देवी ( पवन की पत्नी) तो घर पर रहती हैं। मेरा भाई फंस गया है।”
पवन कुमार दसवीं पास भी नहीं हैं। दवा चलाने से पहले वे भूटान गए, ख़ासतौर पर अनार की पैकेजिंग करके बिहार लाकर बेचते थे।
मुजफ्फरपुर ज़िले के सिविल सर्जन ओसी शर्मा बीबीसी से कहते हैं, “डॉ. आर के सिंह के नाम का कोई डॉक्टर हमारे ज़िले में पंजीकृत ही नहीं है। इस मैनीक्योर की भी कोई मान्यता नहीं थी। बाकी जिन अंग की तस्वीर परिवार ने मीडिया को दी थी, उन्होंने कहा उसे देखकर नहीं लगता कि ये मानव तस्कर के लिए है। ऐसा लगता है कि जिसने भी ऑपरेशन किया है उसके पेट के बारे में ठीक से जानकारी भी नहीं थी।”
कैसी है बरियारपुर की स्वास्थ्य सेवा?
शुभकांत चिकित्सा जिस बरियारपुर पंचायत में स्थित है, वहां पवन को लेकर बहुत सहानुभूति है। इसकी एक वजह जो समझ में आती है, वो है यहां की एक्सट्रीम हेल्थ सर्विस।
यहां एक हेल्थ ऐंड वेलनेस सेंटर है। पहला प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र इससे 12 किलोमीटर दूर सकारा में है, जहां जाने के लिए सड़क इतनी खस्ता है कि वहां काम में एक घंटे से भी ज्यादा काम करता है।
इस समुदाय के मुखिया पति रंजीत राय कहते हैं, “स्वास्थ्य ऐंड वेलनेस सेंटर में डॉक्टर नहीं हैं। सकारा तक का रास्ता इतना खस्ता है कि लोग पहुंच ही नहीं पोछते हैं, तो गांव में ही कुछ लोग प्राथमिक उपचार देते हैं।”
बिहार के 5 लाख झोलाछाप डॉक्टरों में केवल 21 हजार प्रशिक्षित हैं
साल 2015 में राज्य सरकार ने ये तय किया था कि इन झोलाछाप डॉक्टरों को प्रशिक्षित करके ‘ग्रामीण चिकित्सक’ बनाया जाए.
अपने व्यवसायिक पाठ्यक्रम को तय करने के लिए राज्य ने एक ऐसी सरकार बनाई है जिसके अध्यक्ष डॉ एल.बी. सिंह हैं।
एल.बी सिंह बताते हैं, “बिहार में इस व्यस्त क़रीब 4 से 5 लाख डॉक्टर सक्रिय हैं। जिसमें से 21 हज़ार प्रशिक्षित ग्रामीण चिकित्सक हैं। और 30 हज़ार प्रशिक्षण में हैं। ग्रामीण चिकित्सक बनने में दसवीं पास होना अनिवार्य है। उनका काम मरीज़ प्राथमिक उपचार देना और सरकार की स्वास्थ्य योजनाओं को लेकर लोगों को जागरूक करना है। ग्रामीण चिकित्सक इससे ज्यादा कुछ नहीं कर सकते।”
“हमको पवन की किडनी लगवा दें, हम भी 10 साल जी देंगे”
चार महीने से ज्यादा समय से बिना किडनी के जी रहे हुए सुनने के चेहरे पर सूजन का कारण बनता है। वे कहते हैं, “बाकी शरीर में कोई परेशानी नहीं है। बस डॉक्टर आधा लीटर पानी पीते हैं। बिना पानी के कोई कैसे जिएगा।”
स्थानीय मीडिया में सुनीता की सूचना आने के बाद कई लोग किडनी दान करने के लिए आए, लेकिन बात अब तक नहीं बनी है।
स्थायी सुनता बस बार-बार यही दोहराती हैं, “हमको पवन का गुर्दा लगवा दें। होने की जांच के लिए भी तैयार नहीं हैं।”
सुनीता का इलाज जिस एसकेएमसीएच में चल रहा है, वहां इसके कार्यक्षेत्र नेफ्रा सहयोगी नहीं हैं। पिछले साल दिसंबर में अस्पताल के एकमात्र नेफ्रो डॉक्टर धर्मेन्द्र प्रसाद का भी आवंटन हो गया।
अस्पताल के अधीक्षक बी.एस. झा बीबीसी को दिए गए हैं, “अभी भी सुनवाई की स्थिति ठीक है। लेकिन ये ट्रांस प्लांट के मामले हैं। हमारे संस्थान में ट्रांसप्लैट की सुविधा नहीं है, इसकी हमने जानकारी सरकार को दी है। बाकी हमारे पास जो डायलिसिस हैं या अन्य सामान हैं, वो उन्हें फ्री दी जा रही है।”
इस मामले में राज्य ही नहीं राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी नाम लिया है।
आयोग में ये मामला देख रहे अधिवक्ता एसके प्रतिनिधि हैं, “राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग महिला के उपचार, नामजद अभियुक्तों की सदस्यता, ट्रांस प्लांट और झारखंड झा को लेकर सरकार से रिपोर्ट है।”
सच्ची सुनीता के जीने का तरीका क्या है?
इस सवाल पर पीएसएचसी और आईजीआईएमएस के नेफ्रोलॉजी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष हेमन्त कुमार कहते हैं, “बिना किसी किडनी के भाई और किसका किडनी फेल हुआ है, ये दोनों ही मामले बराबर हैं। इस मामले में रिश्ते की उम्र कम है, इसलिए ट्रांसप्लांट करना बेहतर विकल्प है।” “